Diwali Significance in Jain and Sikhs: दिवाली का पर्व न केवल हिन्दू धर्म में, बल्कि जैन और सिख समुदायों में भी विशेष महत्व रखता है. हर साल यह महापर्व अंधकार पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई का प्रतीक बनकर हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है. इसकी शुरुआत के विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ हैं, जो इसे तीन प्रमुख धर्मों के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण बनाते हैं.


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जैन धर्म में दिवाली का महत्व
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का निर्वाण भी दिवाली के दिन ही हुआ था. जैन मान्यताओं के अनुसार, भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या के दिन ही मोक्ष प्राप्त किया और इसी घटना के उपलक्ष्य में जैन समुदाय इस दिन को 'महावीर निर्वाण दिवस' के रूप में मनाता है. भगवान महावीर की शिक्षाओं के आधार पर जैन धर्म ने अपने सिद्धांतों को वर्तमान स्वरूप दिया, जो अहिंसा, सत्य, और आत्मज्ञान पर आधारित हैं. दिवाली के इस दिन जैन अनुयायी उपवास रखते हैं और भगवान महावीर के उपदेशों का स्मरण करते हैं.


सिख धर्म में दिवाली का महत्व
सिख धर्म में दिवाली का पर्व ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी को मुगल सम्राट जहांगीर ने कैद कर लिया था. सन 1619 में, दिवाली के दिन उन्हें रिहाई मिली थी, जिसमें गुरु साहिब अपने 52 राजाओं के साथ कारागार से बाहर आए. इस दिन गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अपने अनुयायियों के पास लौटकर समाज में स्वतंत्रता का संदेश दिया, जिसे याद करते हुए सिख समुदाय आज भी दिवाली को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में इस दिन विशेष सजावट की जाती है और दीप जलाए जाते हैं.


हिन्दू धर्म में दिवाली का महत्व
हिन्दू धर्म में दिवाली को मुख्य रूप से भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी से जोड़ा जाता है. किंवदंतियों के अनुसार, भगवान श्रीराम अपने 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब नगरवासियों ने उनकी स्वागत के लिए दीप जलाए थे और इसी दिन को दिवाली के रूप में मनाना शुरू किया गया. इसके अलावा दिवाली पर देवी लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व है. 


पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं और उन्होंने धन, ऐश्वर्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान किया था. इसलिए, दिवाली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा कर लोग उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं.


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नरकासुर वध की कथा और छोटी दिवाली
एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन असुर नरकासुर का वध कर उसकी कैद से 16,000 महिलाओं को मुक्त कराया था. इस उपलक्ष्य में ‘नरक चतुर्दशी’ या छोटी दिवाली का पर्व मनाया जाता है, जो दिवाली के ठीक एक दिन पहले पड़ता है.


इस तरह दिवाली का यह महापर्व जैन, सिख और हिन्दू धर्मों में अलग-अलग संदर्भों में विशेष महत्व रखता है. यह पर्व हमें ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से जोड़ता है, तो वहीं यह समाज में सौहार्द और भाईचारे का संदेश भी देता है.


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Disclaimer
यहां बताई गई सारी बातें धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री का जी यूपीयू का पुष्टि नहीं करता.