भारतीय संस्कृति में छठ पर्व का विशेष महत्व है. यह पर्व चार दिन का होता है. यह पर्व नहाय- खाए से शुरू होकर समाप्त ऊषा का अर्घ्य देने के बाद समाप्त होता है. छठ पर्व में बांस के सूप का प्रमुख तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. आइए जानते हैं छठ पर्व के विशेष महत्व के बारे में.
तमाम पौराणिक मान्यताओं के इतर एक किवदंती प्रचलित है. पुराणों के अनुसार प्रियव्रत नामक राजा की कोई संतान नहीं थी. हर प्रकार का जतन करने के बाद भी उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ. तब राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया . पुत्र तो हुआ लेकिन मरा हुआ, जब अपने मृत्यु पुत्र को दफनाने के लिए राजा गये. तभी आसमान से ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा इसमें बैठी देवी ने कहा मैं सभी बालकों की रक्षिका हूं. इतना कहकर देवी नें बच्चों को स्पर्श किया और बच्चा जीवित हो गया. तभी से यह व्रत किया जाता है.
हिंदू मान्यताओं की मानें तो छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. इस पर्व को सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शूरू किया था. कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे. सूर्य की कृपा से ही कर्ण महान योद्धा बना था.
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो जब प्रभु श्री राम वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे , तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए माता सीता ने सूर्य भगवान की उपासना की थी.
पारिवारिक सुख- समृद्धि और मनोकामना पूर्ण होने के लिए यह पर्व मनाया जाता है. इस पर्व का एक अलग ऐतिहासिक महत्व है.
ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. पहली चैत्र में और दूसरी कार्तिक में, चैत्र पक्ष में षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिक छठ कहा जाता है.
छठ सिर्फ पर्व नहीं बल्कि महापर्व है. जो पूरे चार दिन का त्योहार होता है. नहाए- खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है.