सनातन धर्म में दिवाली की रात मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विधान है. इसके लिए लोग बाजार से नई प्रतिमा को लेकर आते हैं. लेकिन, लोग पुरानी प्रतिमा के पूजन को लेकर काफी कन्फ्यू रहते हैं. जानिए पुरानी प्रतिमा की पूजा करें या ना करें.
Laxmi-Ganesha Pujan On Diwali: सनातन धर्म में दिवाली के त्योहार का खास महत्व है. ये त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर बड़े ही धूमधाम से पांच दिनों तक मनाया जाता है. इसकी शुरुआत धनतेरस से होती है.
31 अक्टूबर को इस बार दिवाली का त्योहार है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक, दिवाली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा से घर में खुशियों का आगमन होता है. साथ ही, परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है.
दिवाली को मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के लिए सभी हर साल बाजार से नई प्रतिमा लेकर आते हैं. फिर वो पुरानी प्रतिमा की पूजा को लेकर कंफ्यूज रहते हैं कि आखिर दिवाली पूजा में पुरानी लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा को रखे या ना रखें?
मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के दौरान शास्त्रों में वर्णित कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है. शास्त्रों में लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति को लेकर भी कुछ नियमों का जिक्र किया गया है.
ज्योतिषियों की मानें तो दिवाली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पुरानी प्रतिमा का इस्तेमाल करना गलत साबित हो सकता है. ऐसे में लक्ष्मी और गणेश जी की नई प्रतिमा को ही घर में लाना चाहिए.
शास्त्रों में नई प्रतिमा की स्थापना का जिक्र किया गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि पुरानी प्रतिमा को दोबारा बैठाने से ग्रह और वास्तु दोष लग सकता है.
दिवाली पूजा में पुरानी लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा स्थापित करने से जातकों को पूजा का पूर्ण फल भी नहीं मिल पाता है. इसलिए नई प्रतिमा ही घर में स्थापित करना शुभ और लाभकारी माना जाता है.
अगर प्रतिमा पीतल, सोना, चांदी या अष्टधातु की है तो आप इसका दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि, ऐसी प्रतिमा का इस्तेमाल कर रहे हैं तो इसे गंगाजल से शुद्ध करने के बाद ही पूजा में स्थापित करें.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. इसकी विषय सामग्री और एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का Zeeupuk हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.