Parsi Funeral: पारसी थे रतन टाटा, न जलाना-न दफनाना तो फिर कैसे होता है पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार

जैसे हर धर्म में जन्म और शादी से जुड़े अलग-अलग रीति रिवाज हैं, ठीक वैसे ही हर धर्म में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार का भी अलग परंपरा है. ऐसे जानिए पारसी धर्म में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है.

पूजा सिंह Thu, 10 Oct 2024-10:45 am,
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Parsi Funeral: भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं. ऐसे में यहां कई धर्म हैं और हर धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने-अपने रीति रिवाज और परंपराएं है. जैसे जन्म और शादी से जुड़ी सबकी अपनी-अपनी परंपराएं हैं, ठीक वैसे ही मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार को लेकर भी अलग-अलग रीति रिवाज हैं. ऐसे जानिए पारसी धर्म में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है.

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पारसी समुदाय

बेशक भारत में पारसी समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन उनके योगदान की वजह से उन्हें समाज में एक अलग रुतबा मिला है. पारसी धर्म में मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार करने का तरीका भी दूसरे धर्मों से अलग होता है.

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न जलाना, न दफनाना

जिस तरह हिंदू और सिख धर्मों में शव का दाह संस्कार किया जाता है. वहीं, मुस्लिम और ईसाई शव को दफनाते हैं, लेकिन पारसी धर्म में न तो दाह संस्कार किया जाता है और न ही शव को दफनाया जाता है.

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क्या है मान्यता?

पारसी धर्म में माना जाता है कि मृत शरीर अशुद्ध होता है. पारसी धर्म में पृथ्वी, जल और अग्नि को बहुत पवित्र माना गया है इसलिए शवों को जलाना या दफनाना धार्मिक नजरिए से पूरी तरह गलत बताया गया है. 

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पर्यावरण को लेकर सजग

पर्यावरण को लेकर सजग पारसियों का मानना है कि मृत शरीर को जलाने से अग्नि तत्व अपवित्र हो जाता है और पारसी शवों को इसलिए नहीं दफनाते क्योंकि इससे धरती प्रदूषित होती है. पारसी शवों को नदी में बहाकर भी अंतिम संस्कार नहीं कर सकते क्योंकि इससे जल प्रदूषित होता है.

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शव को खुले में रखकर प्रार्थना

जब किसी पारसी समुदाय में व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके शव को टावर ऑफ साइलेंस यानी कि दखमा ले जाया जाता है. टावर ऑफ साइलेंस में शव को ऊपर खुले में रख दिया जाता है और प्रार्थना शुरू की जाती है. 

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पारसी समुदाय की परंपरा

प्रार्थना के बाद शव को गिद्ध और चील के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है. ये पूरी प्रक्रिया ही पारसी समुदाय की परंपरा का हिस्सा है. पारसी धर्म में किसी शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को गंदा करना माना गया है.

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क्या है टावर ऑफ साइलेंस?

जैसे हिंदू धर्म में श्मसान और मुस्लिम धर्म में कब्रिस्तान होता है. ठीक वैसे ही पारसी धर्म में टानप ऑफ साइलेंस होता है. टावर ऑफ साइलेंस एक गोलाकार स्थान होता है. जहां शव आसमान के हवाले कर रख दिया जाता है, जिसके बाद गिद्ध और चील मृत शरीर को खाते हैं.

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कब से चली आ रही है परंपरा?

पारसी धर्म में अंतिम संस्कार की ये परंपरा करीब 3 हजार सालों से चली आ रही है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में कम हुई गिद्ध की संख्याओं की वजह से पारसी समुदाय के लोगों को अंतिम संस्कार करने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

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सालों की परंपरा में बदलाव

पिछले कुछ सालों में पारसी लोग अपने रिवाज को छोड़कर शवों को जलाकर अंतिम संस्कार भी कर रहे हैं.  ये लोग शवों को अब टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर नहीं रखते हैं बल्कि हिंदू श्मसान घाट या विद्यत शवदाह गृह में ले जाते हैं.

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रतन टाटा का अंतिम संस्कार

रतन टाटा पारसी समुदाय से आते हैं, लेकिन उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाजों से नहीं किया जाएगा. उनके पार्थिव शरीर को शाम 4 बजे मुंबई के वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा. यहां करीब 45 मिनट तक प्रेयर होगी, इसके बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी होगी.

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