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Ravan And Lord Shiv Uttarakhand Connections: उत्तराखंड के इस मंदिर में रावण ने शिव को चढ़ाए अपने 9 सिर, आज भी कई साक्ष्य मौजूद

Ravan And Lord Shiv Uttarakhand Connections: सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण ने उत्‍तराखंड में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 10 हजार साल तक तपस्‍या की थी और इस मंदिर में आज भी उसकी निशानियां आज भी मौजदू हैं.

Ravan And Lord Shiv Uttarakhand Connections

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Ravan And Lord Shiv Uttarakhand Connections

उत्तराखंड के इस मंदिर में रावण ने शिव को चढ़ाए अपने 9 सिर, आज भी कई साक्ष्य मौजूद 

 

Ravan And Lord Shiv Uttarakhand Connections

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Ravan And Lord Shiv Uttarakhand Connections

सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण ने उत्‍तराखंड में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 10 हजार साल तक तपस्‍या की थी और इस मंदिर में आज भी उसकी निशानियां आज भी मौजदू हैं.

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रावण भगवान भोलेनाथ का परम भक्त था. मान्यता है कि महादेव को प्रसन्न करने के लिए कभी रावण ने देवभूमि के पहाड़ों साधना की थी और शिव जी को यहीं पर अपने 9 सिर अर्पित कर दिए थे.  जब दसवां सिर अर्पित करने जा रहा था तब महादेव प्रकट को कर उसे रोक दिए थे. 

 

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उत्तराखंड के गोपेश्वर स्थित दशोली गढ़ में रावण के तपस्या करने की दंत कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है कि रावण ने करीब दस हजार साल तक तपस्या की थी और जब अपने  एक एक कर सिर को महादेव के नाम समर्पित किया था.

 

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यहां रावण से जुड़ी निशानियां आज भी मौजूद है. स्कंद पुराण के केदार खंड में भी दसमोलेश्वर के नाम से वैरासकुंड क्षेत्र का उल्लेख मिलता है. 

 

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मान्यता के अनुसार दशोली गढ़ में वैरासकुंड में रावण ने तप किया था और यहीं पर रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप 10 हजार सालों तक तप कर अपने नौ सिरों की आहुति दी थी.

 

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वैरासकुंड में जिस स्थान पर रावण ने तपस्या की थी वह कुंडए यज्ञशाला और शिव मंदिर आज भी यहां मौजूद है.

 

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स्‍थानीय लोगों के मुताबिक कुछ समय पहले यहां एक खेत में खुदाई की गई थी। जहां से एक और कुंड मिला था. उनका है कि जब भी यहां आस-पास के क्षेत्रों में जब भी खुदाई होती है कुछ न कुछ प्राचीन काल की चीजें मिलती हैं.

 

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यहां रावण शिला और यज्ञ कुंड है, जहां भगवान शिव के साथ रावण की पूजा भी होती है. शिव मंदिर में भगवान शिव का स्वयंभू लिंग भी है. 

 

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स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार यहां रावण ने भगवान शिव को प्रसन्‍न करने के लिए तपस्‍या के दौरान अपने नौ सिर यज्ञ कुंड को समर्पित कर दिए थे.

 

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जैसे ही वह अपने 10वें सिर की आहूति देने लगा तो भगवान शिव प्रकट हुए और प्रसन्‍न होकर रावण को मनवांछित वरदान दिया. 

 

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दस दौरान रावण ने भगवान शिव से इस स्थान पर हमेशा के लिए विराजने का वरदान मांगा था. तब से इसे भगवान शिव का स्‍थान माना जाता है.

 

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बैरासकुंड के पास रावण शिला है. जहां रावण की भी पूजा की जाती है. स्‍थानीय लोगों के मुताबिक दशोली शब्द रावण के 10वें सिर का अपभ्रंश है. 

 

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इसी के नाम पर क्षेत्र का नाम दशोली पड़ा है. इसके साथ ही दशहरे पर यहां रावण के पुतले का दहन नहीं किेया जाता है.