नवरात्रि में 'जौ' का रंग, लंबाई बताएंगे कैसे रहेंगे आपके आने वाले दिन! ऐसे जानें शुभ-अशुभ संकेत
Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि में कलश के सामने गेहूं और जौ को मिट्टी के पात्र में बोया जाता है और इसका पूजन भी किया जाता है. आइए जानते हैं कि जौ बोने के पीछे क्या कारण है.
Shardiya Navratri 2024: शारदीय नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग अलग 9 शक्ति स्वरूपों की पूजा की जाती है. साल में चार बार पौष, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन महीने में नवरात्रि आते हैं. चैत्र और आश्विन में आने वाले नवरात्रि प्रमुख होते हैं. जबकि अन्य दो महीने पौष और आषाढ़ में आने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्रि के रूप में मनाये जाते हैं.
कब शुरू हो रही नवरात्रि
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इस बार शारदीय नवरात्रि 3 अक्तूबर से प्रारंभ हो रहे हैं जो कि 11 अक्टूबर तक चलेंगे. नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है. पहले दिन ही पूजा के कलश के पास मिट्टी में जौ (Navratri Jau) बोए जाते हैं. नवरात्रि समापन के बाद इनको प्रवाहित किया जाता है. नवरात्रि में जौ बोने को लेकर मान्यता है कि इससे घर-परिवार में सुख, समृद्धि आती है.
जौ की फसल होना सौभाग्य का प्रतीक
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ऐसा कहा जाता है कि जौ जितने बड़े और सीधे उगते हैं, उतनी ही कृपा मां दुर्गा की हम पर होती है. नवरात्रि में जौ की फसल होना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है.इस लेख में जानते हैं कि आखिर नवरात्रि के पहले जौ क्यों बोया जाता है औऱ इसकी परंपरा की शुरुआत कैसे हुई.
क्यों बोते हैं जौ?
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धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की तो उस समय की पहली वनस्पति 'जौ' ही था.धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि सृष्टि की रचना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी चैत्र नवरात्रि के पहले दिन हुई थी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जौ को सृष्टि की पहली फसल माना गया है और इसे अन्नदेवी या अन्नपूर्णा का प्रतीक माना जाता है.
क्या संकेत देते हैं जौ?
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अगर जौ घनी नहीं उगती है या ठीक से नहीं उगती है तो ये एक अशुभ संकेत माना जाता है. अगर जौ का रंग सफेद है और ये बिल्कुल सीधी उगे तो ये जीवन में तरक्की और खुशहाली का प्रतीक है. अगर जौ का रंग काला है और ये टेढ़ी-मेढ़ी उगती है तो इसे अशुभ माना जाता है.
पौराणिक कथा
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पौराणिक कथा के मुताबिक, जब धरती पर दैत्यों का अत्याचार बढ़ गया था तब मां दुर्गा ने उनका संहार कर मानव जाति के जीवन की रक्षा की. मां के द्वारा दैत्यों के संहार के बाद जब धरती फिर से हरी-भरी हुई, तब सबसे पहले जौ उगे, इसलिए जौ को समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है.
संस्कृत में कहते हैं यव
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संस्कृत भाषा में इसे यव कहा जाता है. अधिकांश लोग जौ को ज्वारे भी कहते हैं. नवरात्रि के दौरान घर, मंदिर और अन्य पूजा स्थलों पर मिट्टी के बर्तन में जौ बोए जाते हैं. नवरात्रि के समाप्त होने पर इसे किसी पवित्र किसी या तालाब में प्रवाहित करते हैं.
नवरात्रि में 'जौ' बोने का महत्व
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नवरात्रि के पहले दिन जौ बोने की परंपरा सदियों पुरानी बताई जाती है. इसके साथ ही कुछ और बातें भी जुड़ी हुई हैं. जौ जातक के भविष्य में आने वाले संकेतों को भी दर्शाती हैं. मतलब उनका उगना कुछ संकेत देता है.
क्या करते हैं जौ का
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नवरात्रि के बाद इस जौ को नवमी और दसवीं तिथि के दिन बड़े धूमधाम से जवारा का विर्सजन किया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि, कुछ ज्वारों को घर के तिजोरी में रख सकते हैं. घर के सभी लोग अपने पर्स में एक या दो ज्वारे रख सकते हैं. मंदिर में भी रख सकते हैं.
Disclaimer
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यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं,वास्तुशास्त्र पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता हइसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.
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