Radha Ashtami 2023: राधा, राधिका, राधे, वृषभानु सुता, माधवी, केशवी, रासेश्वरी, देवी राधिका के अलग अलग नाम हैं. देवी राधा को दिव्य प्रेम, कोमलता, करुणा और भक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है. माना जाता है राधा के बिना कान्हा और कान्हा के बिना राधा का नाम अधूरा है. इसलिए राधा श्याम एक दूसरे के पूरक है. हर मंदिर में कान्हा राधा के साथ मुरली लिए खड़े पूजा जाते हैं. बहुत से लोग लड्डू गोपाल के साथ नन्ही राधिका की भी सेवा करते हैं.  राधा रानी का उल्लेख पद्मपुराण में मिलता है, वह बरसाना गांव के वृषभानु गोप की बेटी थीं. उनकी माता का नाम कीर्ति था. हालाँकि श्रीमद्भागवत में राधा की का नाम कहीं नहीं हैं लेकिन अन्य कई पुराणों और सहिंताओं में राधा जी का उल्लेख है.  राधा और कृष्ण की पहली भेंट का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी लिखित है. 


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राधा और कान्हा की पहली भेंट 
एक कथा के अनुसार देवी राधा और श्री कृष्ण की पहली भेंट उस समय हुई थी जब नंदलाला का जन्मोत्सव धूम धाम से मनाया जा रहा था. तब देवी राधा ग्यारह माह की थी और भगवान श्री कृष्ण सिर्फ एक दिन के थे. इस जन्मोत्सव में शामिल होने आए वृषभानु गोप अपनी पत्नी और पुत्री के साथ पहुंचे थे. जब राधा ने पहली बार कान्हा को देखा तो वह पालने में झूल रहे थे. नन्ही राधा ने उन्हें देखा और देखती रही.


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राधा कृष्ण विवाह से जुड़ी कथा 
गर्ग संहिता के अनुसार राधा और कृष्ण की दूसरी मुलाकात के समय उन्होंने विवाह कर लिया था. इस कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण और देवी राधा की दूसरी मुलाकात लौकिक न होकर अलौकिक थी यह बात उस समय की है  जब भगवान श्री कृष्ण नन्हे बालक थे.एक बार नंदराय जी बालक श्री कृष्ण को लेकर भांडीर वन से गुजर रहे थे. उसी समय वहां देवी राधा प्रकट हुई और उन्होंने कान्हा को अपनी गोद में माँगा. नंदराय जी ने श्री कृष्ण को राधा जी की गोद में दे दिया. इसी समय  श्री कृष्ण बाल रूप छोड़कर किशोर बन गए. ब्रह्मा जी वहां उपस्थित हुए और उन्होंने कृष्ण का विवाह राधा से करवा दिया. कुछ समय तक कृष्ण राधा के संग इसी वन में रहे और फिर देवी राधा ने कृष्ण को उनके बाल रूप में नंदराय जी को सौंप दिया. 


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