वैसे तो परंपरागत रूप से ये माना जाता है कि अल्‍पसंख्‍यक मुस्लिम तबका मोटेतौर पर बीजेपी का समर्थक नहीं है. लेकिन जब से खासकर यूपी में बीजेपी के प्रचंड बहुमत के साथ योगी आदित्‍यनाथ की सरकार सत्‍ता में आई है तब से मुस्लिम तबके के शिया समुदाय की बीजेपी के साथ नजदीकियां बढ़ती देखी गई हैं. भारत में मुस्लिम समुदाय में सुन्‍नी और‍ शिया दो बड़े समूह हैं. मुस्लिमों में सुन्नियों की तुलना में शिया अल्‍पसंख्‍यक हैं. अक्‍सर इन दोनों समूहों में भी टकराहट की खबरें आती रहती हैं.


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अब इस शिया समुदाय के नेताओं के योगी आदित्‍यनाथ के हिंदुत्‍व एजेंडे के करीब आने का विश्‍लेषण विद्दान क्रिस्‍टोफे जेफरलोट और हैदर अब्‍बास रिजवी ने द इंडियन एक्‍सप्रेस में लिखे अपने आर्टिकल A curious friendship में किया है. उन्‍होंने अपने आर्टिकल में शिया नेताओं की योगी सरकार से करीबी का सिलसिलेवार ढंग से उल्‍लेख‍ किया है. उनके मुताबिक यूपी में बीजेपी ने सत्‍ता में आने के बाद सबसे पहले शिया नेता मोहसिन रजा नकवी को अल्‍पसंख्‍यक मंत्री बनाया. वह बीजेपी सरकार में एकमात्र मुस्लिम मंत्री हैं.


26 अप्रैल को दो अन्‍य शिया नेताओं को बीजेपी ने एमएलसी बनाया है. इनमें से बुक्‍कल नवाब(पहले सपा में थे) ने डिप्‍टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के लिए अपनी सीट से इस्‍तीफा दे दिया था. अब उसके बदले उनको फिर से उच्‍च सदन भेजा गया. मोहसिन रजा और बुक्‍कल नवाब दोनों को मंदिरों में जाकर हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते भी देखा गया.


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मार्च में मौलाना कल्‍बे जव्‍वाद ने लखनऊ में शिया-सूफी एकता कांफ्रेंस का आयोजन किया था. इसमें चीफ गेस्‍ट के रूप में यूपी के दूसरे डिप्‍टी सीएम दिनेश शर्मा को आमंत्रित किया गया. इस मौके पर आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में इन दोनों समूहों के प्रतिनिधियों ने कहा कि ये दोनों समूह ही मिलकर भारत के बहुसंख्‍यक मुस्लिमों का नुमाइंदगी करते हैं...और शियाओं और सूफियों ने सबसे पहले आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाई. इस दौरान दिनेश शर्मा ने नवाब आसफ-उद-दौला के मॉडल के आधार पर गंगा-जमुनी तहजीब को फिर से पुनर्जीवित करने की जरूरत पर बल दिया. नवाब आसफ-उद-दौला ने रामलीला और ईदगाह के लिए बराबर जमीन दी थी.


अगस्‍त, 2017 में शिया वक्‍फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि अयोध्‍या मसले के समाधान के लिए विवादित जगह से हटाकर मस्जिद को किसी मुस्लिम बाहुल्‍य इलाके में शिफ्ट किया जा सकता है.(फाइल फोटो)

अयोध्‍या विवाद
अप्रैल, 2017 में आल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड(एआईएसपीएलबी) ने गो-हत्‍या रोकने के समर्थन में एक प्रस्‍ताव पारित किया था. इसी तरह के दूसरे प्रस्‍ताव में केंद्र सरकार से तीन तलाक पर बैन लगाने के लिए कानून बनाने की मांग की गई. इस आर्टिकल में यह भी कहा गया कि अगस्‍त, 2017 में शिया वक्‍फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि अयोध्‍या मसले के समाधान के लिए विवादित जगह से हटाकर मस्जिद को किसी मुस्लिम बाहुल्‍य इलाके में शिफ्ट किया जा सकता है. इसमें यह भी कहा गया कि इसमें बाबरी मस्जिद के पक्ष में पैरोकारी करने वाले सुन्‍नी धड़े का सुन्‍नी सेंट्रल वक्‍फ बोर्ड का इसके लिए वैधानिक अधिकार नहीं है क्‍योंकि उस मस्जिद का निर्माण बाबर के जनरल मीर बांकी ने कराया था और वह शिया था. इस कारण इसमें शिया सेंट्रल वक्‍फ बोर्ड यूपी ही इस मुकदमे में एकमात्र वैधानिक पक्षकार है. यह हलफनामा ऐसे वक्‍त में पेश किया गया है जब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई निर्णायक दौर में पहुंच रही है.


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क्रिस्‍टोफे जेफरलोट और हैदर अब्‍बास रिजवी के मुताबिक हालिया दौर की इन घटनाओं से यह पता चलता है कि एक तरफ तो मुस्लिमों में संप्रदाय के आधार पर ही विभाजन है और दूसरा इससे यह भी स्‍पष्‍ट होता है कि मुस्लिम समुदाय के एक धड़े से संघ परिवार को अपनी योजनाओं के लिए वैधानिक आधार मिल रहा है. शियाओं की संघ परिवार से दोस्‍ती कितनी टिकेगी और क्‍या ये अपेक्षित नतीजे देगी, यह देखने वाली बात होगी?


हालांकि आर्टिकल में यह भी कहा गया कि कई शिया नेताओं को अवसरवादी नेता के रूप में भी देखा जाता है. उनकी बीजेपी से दोस्‍ती का एक कारण यह भी बताया जाता है कि इनमें से कई शिया नेता वक्‍फ संपत्तियों की अनियमितताओं से जुड़े मामलों में भी आरोपी हैं. इन सब वजहों से कई शिया नेता अपनी राजनीतिक वफादारी भी बदलते रहे हैं और इस कारण उनकी लोकप्रियता का ग्राफ भी गिरा है. लेकिन इन सबके बीच संघ परिवार को उनके समर्थन की दरकार इसलिए हो सकती है क्‍योंकि वह तब यह कहने की स्थिति में होंगे कि अयोध्‍या में राम मंदिर के समर्थक केवल केवल हिंदू ही नहीं हैं.