हिमालय क्षेत्र में हवाई यात्रा अब पहले से ज्यादा सेफ, खराब मौसम का चल जाएगा पता
राडार की मदद से हिमालय क्षेत्र की हवा की गति व दिशाओं का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा.
नैनीताल: आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वैज्ञानिकों ने 8 सालों की मेहनत के बाद एसटी रडार बनाने में सफलता पाई है. यह रडार हिमालय क्षेत्र में उठने वाले वायुमंडलीय विक्षोभ का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम है. भारत में यह दूसरा ऐसा एसटी रडार है जिसकी मदद से मौसम की सटीक भविष्यवाणी की जा सकेगी.
कैसे फायदेमंद होगा यह एसटी रडार
एरीज के वैज्ञानिकों ने हिमालय के वायुमंडल में होने वाली एयर डिस्टर्बेंस का अध्ययन किया है. वैज्ञानिकों को शोध में पता चला है कि मैदानी इलाकों की बजाय हिमालयी क्षेत्रों में एयर डिस्टर्बेंस ज्यादा है. एरीज के वैज्ञानिक मनीष नाजा ने बताया कि यह रडार जमीन से करीब 20 किमी. की ऊंचाई तक हवा की गति, दिशा व नमी का आसानी से पता लगा सकता है. वायुमंडलीय विक्षोभ, विमान और हेलीकॉप्टर के लिए काफी खतरनाक होता है. अक्सर इसकी चपेट में आने से दुर्घटनायें हो जाती हैं. .
मौसम की करेगा भविष्यवाणी
एसटी रडार की मदद से हिमालय में हवा की गति और दिशा का भी पता लग सकेगा, जिससे मौसम की सटीक भविष्यवाणी करने में भी मदद मिलेगी. एसटी रडार की मदद से 24 घंटे 365 दिन की हवा की स्पीड और दिशा की जानकारी मिल सकेगी. खास बात यह है कि इससे मौसम में हो रहे बदलाव की भी जानकारी मिल सकेगी. ऐसे में यह उन क्षेत्रों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा जहां अक्सर बादल फटने, अति वृष्टि सहित अन्य कई प्राकृतिक आपदाओं से जान माल का भारी नुकसान होता है. एरीज जल्द ही ये डाटा मौसम विभाग के साथ भी साझा करेगा.
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क्या होता है वायुमंडलीय विक्षोभ?
वायुमंडलीय विक्षोभ जिसे Atmospheric Turbulence या हवा में बनने वाला भंवर भी कह सकते हैं. वायुमंडलीय विक्षोभ 2 तरह के होते है. पहला जो सतह से 3 किमी की ऊंचाई तक जाते है जबकि दूसरा इससे ऊपर विपरीत दिशाओं से आने वाली हवाओ के टकराने से पैदा होता है. ये वायुमंडलीय विक्षोभ विमान सेवाओं के लिए घातक होता है. विमानों के उड़ान के लिए यह विक्षोभ बेहद खतरनाक होता है.अब एसटी राडार की मदद से इसका पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा जिससे विमान दुर्घटनाओं में कमी होने की उम्मीद है. राडार की मदद से हिमालय क्षेत्र की हवा की गति व दिशाओं का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा साथ ही इससे मौसम की सटीक जानकारी मिल सकेगी.
स्थापित करने में लगे 15 करोड़
एसटी रडार को लगाने की शुरुआत आठ साल पहले शुरू की गई और इसे स्थापित करने में 15 करोड़ रुपये की लागत लगी है. बता दें कि हिमालय क्षेत्र में पहली बार इसका परीक्षण किया गया है .इससे पूर्व यह सुविधा सिर्फ दक्षिण भारत में ही थी. एरीज के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी ने इस सफलता पर कहा कि एसटी रडार का ट्रायल सफल होना एरीज के लिए बड़ी उपलब्धि है. इससे वायुमंडल संबंधित कई अहम जानकारियां हमारे पास होगी. साथ ही वायुमंडलीय शोध संबधी कार्य भी आसान होंगे.
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