दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर  बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई. CJI की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. 2005 में दिए फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने AMU को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से मना कर दिया था. इसके खिलाफ यूनिवर्सिटी की अपील पर अब सुनवाई हुई है. संविधान पीठ को यह तय करना है कि क्या संसदीय कानून के तहत स्थापित किए गए किसी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया जा सकता है और अगर किसी संस्थान को संविधान के आर्टिकल 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है तो उसके क्या मापदंड होंगे.  


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प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात न्यायाधीशों की पीठ ने आठ दिन तक दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं. इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं. गौरतलब है कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मामला पिछले कई दशकों से कानूनी दांव-पेंच में फंसा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी, 2019 को विवादास्पद मुद्दे को निर्णय के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया था. इसी तरह का एक संदर्भ 1981 में भी दिया गया था. वर्ष 1967 में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि चूंकि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. 


हालांकि, जब संसद ने 1981 में एएमयू (संशोधन) अधिनियम पारित किया तो इसे अपना अल्पसंख्यक दर्जा वापस मिल गया. बाद में जनवरी 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एएमयू (संशोधन) अधिनियम, 1981 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके द्वारा विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था. केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर की. विवि ने भी इसके खिलाफ अलग से याचिका दायर कीय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने 2016 में शीर्ष अदालत को बताया था कि वह पूर्ववर्ती संप्रग सरकार द्वारा दायर अपील वापस ले लेगी. 


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