Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज 12 मार्च 2024 को लिव इन रिलेशनशिप पर बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट को मानना है कि हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार जब तक पति- पत्नी जिंदा हैं या उनका तलाक नहीं हो जाता तब तक उनकी दूसरी शादी नहीं हो सकती. कोर्ट ने सख्ताई से अपनी बात रखते हुए कहा कि कानून ऐसे किसी भी संबंध का समर्थन नहीं कर सकता जो कानून के विरूद्ध हो. कोर्ट में याचिका दायर करने वाली महिला को इलाहाबाद हाईकोर्ट लिव इन रिलेशनशिप वाले फैसले से बड़ा झटका लगा है. महिला ने अपनी सुरक्षा को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. लेकिन कोर्ट ने आज इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हिन्दू विवाह अधिनियम मुताबिक महिला बिना तलाक के लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकती है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कासगंज की पूजा कुमारी ने सुरक्षा की मांग को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसे जस्टिस रेनू अग्रवाल की सिंगल बेंच ने सिरे से खारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बगैर तलाक विवाहिता लिव इन में नहीं रह सकती है, ऐसे रिश्तों को मान्यता देने से समाज में अराजकता बढ़ेगी. कोर्ट ने कहा है कि कानून के विरुद्ध संबंधों को अदालत का समर्थन नहीं मिल सकता. हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत यदि पति-पत्नी जीवित है और तलाक नहीं लिया गया है तो दूसरी शादी नहीं कर सकते. कोर्ट ने आगे कहा कि पहले से शादीशुदा के संबंधों को अदालत से समर्थन मिला तो समाज में अराजकता फैल जाएगी और देश का सामाजिक ताना-बाना नष्ट हो जाएगा. न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल ने कासगंज की पूजा कुमारी व अन्य की लिव-इन रिलेशनशिप की सुरक्षा की मांग में दाखिल याचिका दो हजार रुपये हर्जाने लगाते हुए खारिज कर दी है. 


इस खबर को भी पढ़ें- UP Police: यूपी पुलिसकर्मियों की सारी छुट्टी रद, होली-रमजान से लेकर लोकसभा चुनाव तक बड़ा फैसला


कोर्ट में अपील करने वाले ने सबसे पहले एसपी कासगंज से सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन कोई सुनवाई. इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में इसकी गुहार लगाई. याचिका करने वाले की पत्नी अनीता कुमारी के अधिवक्ता ने आधार कार्ड पेश कर कहा कि वह उसकी शादीशुदा पत्नी है. कोर्ट में यह भी बताया गया कि प्रथम याची पुष्पेंद्र की पत्नी है. किसी याची का अपने पति या पत्नी से तलाक नहीं हुआ है. प्रथम याची दो बच्चों की मां है और याची दो के साथ संबंध में रह रही है. कोर्ट ने इसे विधि विरूद्ध माना और सुरक्षा देने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी. 


इससे पहले भी ऐसा ही मामला आया समाने
जस्टिस रेनू अग्रवाल की सिंगल बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा था कि मुस्लिम महिला किसी दूसरे व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकती है. ये इस्लाम में हराम है, क्योंकि मुस्लिम कानून में लिव इन रिलेशनशिप में रहना जिना ( व्यभिचार ) कहलाता है. जस्टिस रेणु ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता को सिक्योरिटी नहीं देने का आदेश दिया. जानकारी के लिए बता दें कि इससे पहले भी पिछले साल 26 जून को  इलाहाबाद हाईकोर्ट 29 साल की एक हिंदू लड़की और 30 साल के मुस्लिम लड़के की तरफ से दायर की गई सुरक्षा याचिका पर सुनवाई करते हुए सिक्योरिटी देने से इनकार दिया था.