Eid Al Adha/Bakrid 2023: रमजान का महीना खत्म होने के लगभग 65 से 70 दिनों बाद ईद-उल-अजहा (बकरा ईद) मनाई जाती है. ईद-उल-अजहा अरबी शब्द है. इस शब्द का मतलब है कुर्बानी. इस त्यौहार के नाम से ही स्पष्ट है कि बकरा ईद इसलिए कहा जाता है कि इस दिन मुस्लिम समाज के लोग अल्लाह को बकरे की कुर्बानी देते हैं. इस दिन दी जाने वाली कुर्बानी को इस्लाम धर्म में बलिदान का प्रतिक माना जाता है. पूरी दुनिया में इस्लाम को मामने वाले इस महीने मक्का, सऊदी अरब में एकत्रित होते हैं. यहां हज मनाया जाता है. इसलिए इस त्यौहार का नाम ईद- उल- अजहा कहा जाता है. 


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असल में हज इस्लाम धर्म को मानने वाले के लिए बहुत बड़ी यात्रा है. ईद मुसलमानों के लिए भाव का दिन है. दुनिया भर में सभी मुस्लिम धर्म के लोगों का एक समूह मक्का में हज करता है तथा नमाज़ अदा करता है. रमजान के दिनों हज की यात्रा पर अनेकों मुस्लिम जाति के लोग सऊदी अरब जाते हैं और हज में शामिल होते हैं. इस्लाम धर्म में हज यात्रा का विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि जो भी इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति अगर इस यात्रा के कर लेता है तो वह अल्लाह का शुक्राना अदा करता है. इससे अल्लाह को उच्च दर्जा प्राप्त होता है. इस लिए इस्लाम में ईद- उल- फितर का बड़ा महत्व है. 


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ईद उल अजहा या बकरा ईद का त्यौहार मुस्लिम धर्म के लोगों द्वारा उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है. मुस्लिम समाज के लोग इस दिन नए कपड़े पहनते हैं और ईदगाह या मस्जिद में जमा होकर जमात के साथ 2 रकात नमाज़ अदा करते है. चलिए अब जानते है की साल 2023 में बकरा ईद कब है. 
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अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यदि देखा जाए तो यह पता चलता है कि बकरा ईद की तारीख हर साल 10 से 12 दिन पीछे खिसकती है. ईद कब मनानी है इसका पता चांद को देखकर लगाया जाता है. लेकिन बकरा ईद का दिन चांद के हिसाब से 10 दिन पहले भी देखा जा सकता है. बकरा ईद, मीठी ईद से लगभग 65 से 70 दिनों के बाद मनाई जाती है. साल 2023 की बकरा ईद भारत में 28 जून 2023 को मनाई जाएगी. मुस्लिम धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार. यह त्यौहार 3 दिनों तक चलता है. जिस कारण यह 28 जून से शुरू होकर 30 जून 2023 की शाम को समाप्त होगा.


क्यों मनाई जाती है ईद-उल-अजहा (बकरा ईद) 
इस दिन को मनाने के पीछे भी एक कथा भी प्रचलित है.  ऐसा माना जाता है की एक दिन अल्लाह हजरत इब्राहिम जी के सपने में आये थे जिसमें की अल्लाह ने हजरत इब्राहिम जी से सपने में उनकी सबसे प्यारी जो की उन्हें अपने प्राणो से भी अधिक प्रिय हो ऐसी वस्तु  की कुर्बानी मांगी. हजरत इब्राहिम को अपने पुत्र जिनका नाम इस्माइल था से सबसे अधिक प्यार था वो अल्लाह को सर्वोपरि मानते थे. इसलिए अल्लाह की आज्ञा मानते हुए उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला लिया. 


अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने उनके पुत्र की जगह एक बकरे की क़ुर्बानी दिलवा दी और वो हज़रत इब्राहिम जी से बहुत प्रसन्न हुए. हजरत इब्राहिम जी के पुत्र इस्माइल फिर आगे चल कर पैगम्बर बने. उसी दिन से मुस्लिम समुदाय में यह त्यौहार मनाया जाने लगा. जिसे बकरा ईद या ईद-उल-अज़हा कहा गया.  हज़रत इब्राहिम जी के पुत्र इस्माइल फिर आगे चल कर पैगम्बर बने. यह दोनों प्रकार की ईद, ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा (Bakra Eid) इस्लामिक धर्म में बड़े ही उत्साह के साथ मनाई जाती है. 


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