Chaitra Navratri 2023: यूपी के इस जिले में है मां शैलपुत्री का सबसे प्राचीन मंदिर, नवरात्रि के पहले दिन देवी मां साक्षात देती हैं भक्तों को दर्शन
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Chaitra Navratri 2023: यूपी के इस जिले में है मां शैलपुत्री का सबसे प्राचीन मंदिर, नवरात्रि के पहले दिन देवी मां साक्षात देती हैं भक्तों को दर्शन

Chaitra Navratri 2023 1st Day Maa Shailputri:​ नवरात्रि के पहले दिन (प्रथमा) को मां दुर्गा को शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है. शैलपुत्री मां के दर्शन से भक्तों के सारे दुःख, पाप कट जाते हैं. मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल रहता है. काशी में शैलपुत्री माता का मंदिर है, मान्यता है कि यहां दर्शन से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. 

मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर, वाराणसी

Chaitra Navratri 2023: आज यानी 22 मार्च से नवरात्रि के पावन पर्व शुरू हो गए हैं. भक्तों ने अपने घरों में विधिपूर्वक घटस्थापना कर ली है. देश भर के सभी मंदिरों में सुबह से ही देवी मां के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है. पहला दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप को समर्पित होता है. यूपी के वाराणसी में स्थित मां शैलपुत्री के सबसे प्राचीन मंदिर में भी भक्त दर्शन को पहुंच रहे हैं. 

बनारस में है यह मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर
वाराणसी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. यहां स्थित मां दुर्गा के 'शैलपुत्री' रूप का यह पहला मंदिर बताया गया है. यह प्राचीन मंदिर सिटी स्टेशन से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर अलईपुर में है. मान्यता है कि मां शैलपुत्री खुद इस मंदिर में विराजमान हैं और नवरात्रि के पहले दिन भक्तों को साक्षात दर्शन देती हैं. नवरात्रि के पहले दिन इस मंदिर में पैर रखने की जगह नहीं होती. इस मंदिर में सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. भक्त देवी मां के लिए लाल चुनरी, लाल फूल और नारियल लेकर आते हैं और महाआरती में शामिल होकर दांपत्य जीवन की सभी परेशानियों को दूर करने की कामना करते हैं. मां शैलपुत्री के दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से लोग आते हैं. 

क्या है मंदिर के पीछे की मान्यता
यह मंदिर कब स्थापित हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं है. हालांकि, यहां के सेवादारों का दावा है कि इसके अलावा पूरी दुनिया में ऐसा मंदिर और कहीं नहीं है, क्योंकि यहां मां शैलपुत्री खुद विराजमान हुईं थीं. मान्यता है कि माता पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया था. इसलिए उनका नाम मां शैलपुत्री हुआ. माता एक बार महादेव की किसी बात से नाराज थीं और कैलाश छोड़कर काशी आ गईं. लेकिन भोलेनाथ देवी को नाराज कैसे रहने देते? ऐसे में वह खुद उन्हें मनाने के लिए वाराणसी आए. उस समय माता ने शिवजी को बताया कि उन्हें यह स्थान बहुत पसंद आया. अब वह यहीं रहना चाहती हैं. यह कहकर वह इसी मंदिर के स्थान पर विराजमान हो गईं. तब से यह प्राचीन मंदिर बना हुआ है. यूं तो यहां अक्सर भक्तों की भीड़ रहती है लेकिन नवरात्रि के पहले दिन यह भीड़ दोगुनी हो जाती है. 

मां शैलपुत्री के हैं कई नाम
शैलपुत्री माता का वाहन वृषभ है. यही वजह है कि उन्हें देवी 'वृषारूढ़ा' भी कहा जाता है. मां के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है. इस रूप को प्रथम दुर्गा भी कहा गया है. बता दें कि मां शैलपुत्री को ही सती के नाम से भी जाना जाता है. पार्वती और हेमवती भी इसी देवी रूप के नाम हैं. 

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