मोहब्बत ना- समझ होती है समझाना जरूरी है, जो दिल में है उसे आंखों से कहलाना जरूरी है.... वसीम बरेलवी साहब की यह शायरी हर आशिक अपनी दिलरुबा को सुनाना चाहेगा. शायरी की यही खासियत होती है कि वह कम शब्दों में बहुत कह जाती है. वसीम बरेलवी साहब उर्दु और हिंदी अल्फाज के बड़े शायर है. उनके शायरी आज भी जहां होते हैं भीड़ अपने आप को ताली मारने से रोक नहीं पाती है. वसीम साहब की ज्यातर शायरी प्रेम पर है.
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी
ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी
मुझको गुनहगार कहे और सजा न दे इतना भी इख़्तियार किसी को ख़ुदा न दे
किसी का साथ पाने की ललक में कोई हाथों से निकला जा रहा है
फूल तो फूल है आंखों से घिरे रहते हैं कांटे बेकार हिफ़ाज़त में लगे रहते हैं
आते हैं आने दो ये तूफ़ान क्या ले जाएंगे मैं तो जब डरता कि मेरा हौंसला ले जाएंगे