महाभारत युद्ध के बाद लाखों करोड़ों शवों का क्या हुआ, कुरुक्षेत्र की मिट्टी हो गई थी लाल
महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने. युधिष्ठिर ने सारा राज-पाठ अपने प्रपोत्र परिक्षित को सौंप दिया और स्वर्गलोक की यात्रा पर निकल पड़े .
महाभारत का युद्ध
महाभारत के युद्ध को युग प्रवर्तक माना जाता है. इस युद्ध में कई पहलु और पात्र देखने को मिले जिनसे आपको सीख भी मिलती है. चाहे वह भीष्म पितामाह हो या भगवान कृष्ण. महाभारत का युद्ध केवल कौरव और पांडवों के बीच का युद्ध नहीं था बल्कि महाभारत हमें ऐसे कई पात्रों की कहानियां को जानने का मौका मिलता है, जिनके जीवन को जानकर हमें धर्म और अधर्म को समझने में मदद भी मिलती है.
कुरुक्षेत्र की धरती पर युद्ध
महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र की धरती पर हुआ था. ऐसा कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में इतने सैनिक मारे गए थे और उनका खून बहा था कि कुरुक्षेत्र की मिट्टी का रंग लाल हो गया था. ये भी कहते हैं कि कुरुक्षेत्र में जिस जगह पर महाभारत का युद्ध हुआ वहां की मिट्टी का रंग अभी भी लाल है.
हर दिन की अपने विशेषता और रहस्य
महाभारत के युद्ध के हर दिन की अपने विशेषता और रहस्य हैं. हमने इनके बारे में पढ़ा भी होगा. उस दौरान के चरित्रों और घटनाओं को आप जानते होंगे. पर क्या आप जानते हैं कि युद्ध के बाद भी ऐसी घटनाएं हुई थीं, जिनके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं.
18 दिन चला महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था. महाभारत के युद्ध के बाद इसकी त्रासदी देखने को मिली. आइए, जानते हैं महाभारत के बाद की कुछ घटनाएं.
मारे गए सैनिकों के शवों का क्या हुआ
ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में हर रोज हजारों योद्धाओं का खून बहा था. इनकी संख्या इतनी ज्यादा थी शव मैदान में ही पड़े रह जाते थे.
क्या होता था
जिन सैनिकों की पहचान हो जाती थी, उन्हें उनके परिजनों को सौंप दिया जाता था. ऐसा कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के समय शवों का दाह संस्कार रात के समय किया जाता था, जबकि शास्त्रानुसार दाह संस्कार सूर्यास्त के बाद नहीं किया जाता?
भीष्म पितामाह
ऐसा कहा जाता है कि अकेले भीष्म पितामाह पांडव की तरफ से युद्ध करने वाले 10 हजार सैनिकों को रोज मार देते थे.
कई खंडों में बंटा देश
महाभारत के युद्ध में पांडवों जीत तो गए थे लेकिन देश में बहुत विनाश हो चुका था. इसका विभाजन कई खंडों में बंट चुका था . और लोग अलग-अलग तरीकों से जीवन यापन कर रहे थे.
युद्ध के बाद शांति
किवदंती है कि इस युद्ध के बाद लोग काफी मौन रहने लगे थे. इसी समय में विदेशी धरती से आकर कई लोग भारत में बसने लगे और अलग-अलग धर्मों का प्रचार-प्रसार हुआ.
पांडवों ने किया हिमालय प्रस्थान
पांडवों के मन में वैराग्य की भावना आ चुकी थी. अंत में जब श्रीकृष्ण भी वैकुंठ गमन कर गए, तो पांडव सिंहासन परीक्षित को सौंपकर अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ हिमालय की ओर चल दिए.
डिस्क्लेमर
पौराणिक पात्रों की यह कहानी धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों में किए गए उल्लेख पर आधारित है. इसके एआई द्वारा काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.