Parasi Dharma History: जब कुछ लोग देश छोड़ने लगे तो 18,000 जिन्होंने देश छोड़ा और भारत की शरण ली, बड़े ही शांति पूर्ण तरीके से ये लोग भारत में बस गए. ये इतिहास परसियों का और उनका भारत में शरण लेने की गाथा.
सातवीं शताब्दी में ईरान पर मुस्लिम विजय होने के बाद यहां पर कई पारसियों को देश छोड़कर भारत में शरण लिया.
त्रस्त पारसियों का पहला जत्था करीब 766 ईसा पूर्व दीव (दमण और दीव) पहुंचा और फिर वहां से इनका प्रवेश गुजरात में हुआ जहां ये लोग बस गए. कुछ मुंबई चले गए. आज भी गुजरात और मुंबई में पारसी परिवार रह रहे हैं. आज भारत में पारसियों की जनसंख्या 2011 में 22 प्रतिशत घटकर 57,264 रह गई है.
करीब 18,000 पारसियों को हिंदू राजा जादी राणा या जदेजा ने अपने राज्य में शरण दी थी और अपने धर्म और अपनी परंपरा के पालन की पारसियों को इजाजत भी दी थी.
भारत में पारसियों ने कई तरह से योगदान दिया. चाहे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की बात हो या फिर अर्थव्यवस्था, मनोरंजन में भागीदारी, सशस्त्र सेनाओं से लेकर अन्य कई क्षेत्रों में इस धर्म के लोगों का योगदान रहा है.
आइए पारसी धर्म का इतिहास विस्तार से जानें. पारसी धर्म (जरथुस्त्र धर्म) विश्व के पुराने धर्मों में से एक है जो 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व शुरुआत हुआ और इस धर्म का जन्म स्थान ईरान है. एक ऐसा भी समय था जब पारसी धर्म (जोरोएस्ट्रिनिइजम) ईरान का राजपंथ हुआ करता था.
पारसी धर्म की स्थापना महात्मा ज़रथुस्त्र ने की, ऐसे में इस धर्म को (जरथुस्त्र धर्म) भी कहा जाता है. इस एकेश्वरवादी धर्मों को पैगंबर जरथुस्त्र ने लगभग 2000 साल पुराना पहले (Zoroastrianism in Hindi) स्थापित किया था.
ज़रथुश्त्र (अहुरा मज़्दा) के सन्देशवाहक थे जिन्होंने सबसे पहले दाएवों (बुरी और शैतानी शक्तिओं) की निन्दा की व अहुरा मज़्दा को एक, अकेला व सच्चा ईश्वर मानते हुए पाससी पंथ शुरू किया. पारसी लोगों का पवित्र ग्रंथ का नाम अवेस्ता है.
पारसी धर्म के धर्मावलंबियों को पारसी या जोराबियन कहते हैं, इस धर्म को मानने वाले अपने ईश्वर को 'आहुरा माज्दा' कहते हैं. पारसी लोगों का धर्मग्रंथ 'जेंद अवेस्ता' है.
ऋग्वैदिक संस्कृत की एक पुरानी शाखा अवेस्ता भाषा में 'जेंद अवेस्ता' ग्रंथ को लिखा गया है जिसकी वजह से ही ऋग्वेद और अवेस्ता के कई शब्दों की समानता देखने को मिलती है. ईरान को ऋग्वेदिक काल में पारस्य देश कहते थे.
पारसी धर्म में अग्नि को बहुत पवित्र और पूजक माना जाता है. पृथ्वी, जल को भी पारसी धर्म में बहुत पवित्र माना गया है. ऐसे में इस धर्म में शवों को जलाना या दफन करना गलत बताया गया है.
पर्यावरण को लेकर सजग पारसी मानते हैं कि उनके मृत शरीर को अगर अग्नि में जलाया गया तो अग्नि तत्व अपवित्र होता है. पारसी शवों नहीं दफनाते हैं. वो मानते हैं कि इससे धरती प्रदूषित होती है.
नवरोज पारसी नववर्ष है. वैसे तो विश्वभर में इसे मार्च में मनाते हैं लेकिन भारत में 200 दिन बाद नवरोज़ आता है और अगस्त के महीने में इसे मनाया जाता है क्योंकि यहां पारसी शहंशाही कैलेंडर (Shahenshahi Calendar) को पारसी मानते जिसमें लीप वर्ष नहीं आता.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है.एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.