बस एक चुटकी चावल से गरीबी होगी दूर, जानें क्यों पूजा के लिए जरूरी है अक्षत!
चावल को सबसे शुद्ध अन्न माना जाता है क्योंकि ये धान के अंदर बंद रहता है. इसलिए पशु-पक्षी इसे जूठा नहीं कर पाते. इसके अलावा ये भी मान्यता है कि प्रकृति में सबसे पहले चावल की ही खेती की गई थी.
सभी देवी-देवताओं की पूजा में चावल (Rice) का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है, इसके बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती है. चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो. अर्थात किसी भी पूजा में गुलाल, हल्दी, अबीर और कुंकुम के साथ ही अक्षत भी चढ़ाए जाते हैं. अपने शुभ कार्यों में हम चावल का उपयोग जरूर करते हैं. पूजन कर्म में देवी-देवता को चावल चढ़ाए जाते हैं, साथ ही किसी व्यक्ति को जब तिलक लगाया जाता है, तब भी चावल का उपयोग किया जाता है. शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से शिवजी अतिप्रसन्न होते हैं और भक्तों अखंडित चावल की तरह अखंडित धन, मान-सम्मान प्रदान करते हैं.
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चावल देवताओं का प्रिय अन्न
चावल यानी अक्षत यानी चावल को हमारे ग्रंथों में सबसे पवित्र और श्रेष्ठ अनाज माना गया है. इसे देवान्न भी कहा गया है. देवताओं का प्रिय अन्न चावल माना जाता है. अगर पूजा पाठ में किसी सामग्री की कमी रह जाए तो उस सामग्री का स्मरण करते हुए चावल चढ़ाए जा सकते हैं.
नहीं होना चाहिए टूटा
अक्षत पूर्णता का प्रतीक है यानी यह टूटा हुआ नहीं होता है. पूजा में अक्षत चढ़ाने का भाव यह है कि हमारा पूजन भी अक्षत की तरह पूर्ण हो, इसमें कोई परेशानी न आए. चावल को अन्न में श्रेष्ठ माना गया है. इसका सफेद रंग शांति का प्रतीक है. चावल चढ़ाकर भगवान से प्रार्थना की जाती है कि हमारे सभी कार्य की पूर्णता चावल की तरह हो, हमें जीवन में शांति मिले.भगवान को चावल चढ़ाते समय ये ध्यान रखना चाहिए कि चावल टूटे हुए न हों. अक्षत पूर्णता का प्रतीक है अत: सभी चावल अखंडित होने चाहिए. चावल साफ और स्वच्छ होने चाहिए.
सभी भगवान को चढ़ा सकते हैं चावल
किसी ना किसी सामग्री को किसी ना किसी भगवान को चढ़ाना निषेध है जैसे तुलसी को कुंकु नहीं चढ़ता और शिव को हल्दी नहीं चढ़ती. गणेश पर तुलसी नहीं चढ़ती तो दुर्गा को दूर्वा नहीं चढ़ती लेकिन चावल हर भगवान को चढ़ाए जाते हैं.
ईश्वर की संतुष्टि का साधन है अन्न
शास्त्रों में अन्न और हवन को ईश्वर को संतुष्ट करने वाला साधन माना गया है. अन्न अर्पित करने से भगवान के साथ-साथ पितर भी तृप्त होते हैं. ऐसे में ईश्वर के साथ पितरों का भी आशीर्वाद मिलता है और घर में खुशहाली आती है.
पूजा के दौरान अक्षत क्यों अर्पित किया जाता है!
आपने गौर किया होगा कि भगवान को जब भी अक्षत अर्पित किया जाता है तो वो साबुत अक्षत होता है, टूटा हुआ नहीं. अक्षत का अर्थ है, जिसकी क्षति न हुई हो यानी जो पूर्ण हो वो अक्षत है. पूजा में अक्षत चढ़ाने का भाव ये है कि हमारा पूजन भी अक्षत की तरह पूर्ण हो. इसमें कोई बाधा न आए.
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सबसे शुद्ध अन्न है अक्षत
चावल को सबसे शुद्ध अन्न माना जाता है क्योंकि ये धान के अंदर बंद रहता है. इसलिए पशु-पक्षी इसे जूठा नहीं कर पाते. इसके अलावा ये भी मान्यता है कि प्रकृति में सबसे पहले चावल की ही खेती की गई थी. ऐसे में लोग इस भाव के साथ अक्षत अर्पित करते हैं कि हमारे पास जो भी अन्न और धन है, वो आपको समर्पित है.
एक अन्य कारण यह भी है कि शास्त्रों और पुराणों में बताया गया है कि अन्न और हवन यह दो साधन है जिनसे ईश्वर संतुष्ट होते हैं. मानव की तरह अन्न से देवता और पितर भी तृप्त होते हैं. इनकी तृप्ति से ही घर में खुशहाली और अन्न धन की वृद्घि होती है. इसलिए भगवान को अक्षत के रुप में अन्न अर्पित किया जाता है. इन धार्मिक कारणों के अलावा एक व्यवहारिक कारण भी जिससे भगवान को अक्षत अर्पित किया है.
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