लखनऊ: निर्भया के चार दोषियों को फांसी देने वाले पवन जल्लाद एक बार फिर चर्चा में आ गए. वजह है अमरोहा की शबनम. जी हां, प्रेम में अंधी होकर अपने ही परिवार के सात लोगों की बेरहमी से हत्या करने वाली शबनम को कभी भी फांसी हो सकती है.  उसे सूली पर चढ़ाने की जिम्मेदारी मेरठ के पवन जल्लाद को दी गई है. वैसे तो भारत में फांसी की सजा ब्रिटिश काल के पहले से है. हालांकि, 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केस' में फांसी की सजा दी जाती है. भले ही फांसी की सजा कोर्ट में बैठे जज देते हैं लेकिन अंजाम तक एक जल्लाद ही पहुंचाता है. 


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मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक भारत में इस समय केवल दो ही पंजीकृत जल्लाद परिवार हैं, जो सालों से ये काम करते आ रहे हैं. पहला उत्तर प्रदेश का पवन कुमार और दूसरा पश्चिम बंगाल का बाबू अहमद. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे जल्लाद की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसके नाम पर 25 लोगों को फांसी देने का रिकॉर्ड दर्ज है. वह फांसी देने के बाद इस्तेमाल की गई रस्सी से लॉकेट बनाने के लिए भी मशहूर था. हम बात कर रहे हैं जल्लाद नाटा मल्लिक की. हालांकि, साल 2008 में उसकी मौत हो चुकी है.


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फांसी पर चढ़ाना था पुश्तैनी काम
2000 के दशक तक नाटा मल्लिक पश्चिम बंगाल राज्य का मशहूर जल्लाद हुआ करता था. वह मूलत: कोलकाता का रहने वाला था. उसके लिए फांसी देना एक पुश्तैनी पेशा था. ब्रिटिश राज में नाटा के पिता ने 500 से भी ज्यादा लोगों को फांसी पर लटकाया था, जिसमें अधिकतर बंगाली क्रांतिकारी शामिल थे. वहीं, नाटा के पिता के पहले दादा ने भी कई लोगों को फांसी पर चढ़ाया था.


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इतनी मिलती थी सैलेरी
वेस्ट बंगाल सरकार सैलेरी के तौर पर नाटा मल्लिक को 10 हजार रुपये देती थी. इसके अलावा उसे हर फांसी पर भी 5000 रुपये से लेकर 10000 रुपये मिला करते थे. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस जल्लाद ने फांसी देने वाली रस्सियों के जरिए भी बहुत कमाई की. 


फंदे की रस्सी के लिए घर के बाहर लगता था लोगों का तांता 
14 अगस्त 2004 को नाटा मल्लिक ने अपनी 25वीं और आखिरी फांसी धनंजय चटर्जी को अलीपुर जेल में दी थी. आपको बता दें कि जिस रस्सी से अपराधी को फांसी पर लटाकाया जाता था, उसका एक छोटा टुकड़ा पाने के लिए नाटा मल्लिक के घर के बाहर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी. सुनने में भले ही यह अटपटा लग रहा होगा लेकिन यह बिल्कुल सच है.


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रस्सी के ताबीज़ बनाकर बेचता था नाटा मल्लिक
दरअसल, अपराधी को फांसी देने के बाद नाटा उस रस्सी को घर ले आता था. फिर उस रस्सी के टुकड़े को ताबीज़ में भर कर बेचा करता था. हैरान करने वाली ये है कि खरीददारों में केवल गरीब और अनपढ़ लोग ही नहीं बल्कि पढ़े-लिखे और अमीर लोग भी आया करते थे. ऐसे ही लॉकेट बेचते हुए नाटा मल्लिक ने हजारों रुपये कमाये. इसकी वजह लोगों का विश्वास या अंधविश्वास कह सकते हैं. दरअसल, लोगों का मानना था फांसी के फंदे की रस्सी से दमा जैसी कई असाध्य बीमारियां ठीक हो जाती हैं. बस यही कारण था कि लोग उस रस्सी के ताबीज़ के लिए नाटा जल्लाद से खरीदते थे. आपको बता दें कि उसने अपने घर के बाहर एक तौलिए से फांसी की गांठ बनाकर भी टांग रखा था.


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फांसी की रस्सी में होते हैं औषधिय गुण
नाटा मल्लिक का मानना था कि फांसी के पहले इन रस्सियों पर साबुन, केला और घी लगाने के कारण इनमें औषधीय गुण आ जाते हैं. उसका दावा था कि उनके पास जितने भी मरीज आए वो सब ताबीज़ पहनने के बाद एकदम स्वस्थ हो गए. आपको बता दें ऐसा करने वाले वह पहले जल्लाद नहीं था उसके दादा भी इन रस्सियों के ताबीज़ बना कर बेचा करते थे. 


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