‘बाल मिठाई’ को देखकर मुंह में आ जाता है पानी, अंग्रेज भी करते थे पसंद, जानिए इसका इतिहास!
बाल मिठाई को उत्तराखंड की चॉकलेट भी कहा जाता है. एक ऐसी चॉकलेट जिसे कोको बीन्स से नहीं, बल्कि खोए से बनाया जाता है. बाल मिठाई की ख़ासियत ये है कि ये खाने में कुरकुरी लगती है. इस मिठाई का स्वाद इतना लाजवाब है कि पर्यटक और यहां के लोगों की ये फ़ेवरेट मिठाई बन गई.
Baal Mithai: दुनिया का कोई कोना ऐसा नहीं होगा जिनके व्यजनों में मिठाई न आती हो. भारत की ही बात करें तो यहां के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न प्रकार की मिठाईयां काफी मशहूर है. चाहे बंगाल के रसगुल्ले हों, आगरा का पेठा या मथुरा का पेड़ा. उसी प्रकार उत्तराखंड में मिठाईयों में बाल मिठाई काफी पंसद की जाती है. खासकर कुमाऊं प्रांत के अल्मोड़ा शहर जो कि बाल मिठाई के शहर के नाम से भी जाना जाता है.
जिस तरह हैदराबाद की बिरयानी और लखनऊ के टुंडे कबाब उनकी पहचान बन गए हैं. उसी तरह उत्तराखंड की बाल मिठाई भी उसकी पहचान बन गई है. चॉकलेट के जैसी दिखाई देने वाली बाल मिठाई खाकर लोग इसका स्वाद सालों तक नहीं भूल पाते. आज हम आपको उत्तराखंड के कुमाऊ क्षेत्र की पहचान बन चुकी बाल मिठाई का इतिहास बताएंगे.
चॉकलेट जैसी दिखती है ये मिठाई
बाल मिठाई को उत्तराखंड की चॉकलेट भी कहा जाता है. एक ऐसी चॉकलेट जिसे कोको बीन्स से नहीं, बल्कि खोए से बनाया जाता है. बाल मिठाई की ख़ासियत ये है कि ये खाने में कुरकुरी लगती है. इस मिठाई का स्वाद इतना लाजवाब है कि पर्यटक और यहां के लोगों की ये फ़ेवरेट मिठाई बन गई.
ये है बाल मिठाई का इतिहास
इतिहासकारों का कहना है कि ये मिठाई 7वीं-8वीं सदी में नेपाल से उत्तराखंड आई. उसके बाद ये अल्मोड़ा कैसे पहुंची इसके प्रमाण तो नहीं हैं पर ये अल्मोड़ा की पहचान है. विद्वानों का यह भी मानना है कि बाल मिठाई शुरू में सूर्य देवता को अर्पित किया जाने वाला प्रमुख प्रसाद रहा होगा.
जोगाराम को जाता है बाल मिठाई को शुरू करने का श्रेय
बाल मिठाई को 20वीं सदी में प्रसिद्ध करने का श्रेय जाता है, लाला जोगाराम को. बताते हैं कि अल्मोड़ा के लाल बाज़ार में उनकी दुकान हुआ करती थी. उस समय सिर्फ उनकी दुकान में ही ये मिठाई बनाई जाती थी. ऐसा कहते हैं कि जोगाराम जी बाल मिठाई बनाने के लिए डेयरी प्रोडक्ट्स के लिए मशहूर एक गांव से स्पेशल क्रीम वाला दूध मंगवाते थे. इस गांव का नाम था फालसीमा. यहां से आए दूध से वो खोया बनाते थे. इससे वो पहले भूरे रंग की बर्फ़ी तैयार करते थे और फिर बाद में उस पर चाशनी में भीगे हुए खसखस के दाने लपेट देते थे.
और भी हैं रोचक तथ्य
इस संबंध में एक रोचक तथ्य ये भी है कि अल्मोड़ा की बाल मिठाई अंग्रेजों को खूब पसंद आती थी. ऐसे संकेत मिले हैं जिससे पता चलता है कि अंग्रेज अफसर क्रिसमस के मौके पर एक दूसरे को भेंट के तौर पर बाल मिठाई भेजते थे.
ऐसे तैयार होती है ये स्पेशल मिठाई
खोये को चीनी मिलाकर तब तक पकाया जाता है, जब तक कि वह दिखने में चॉकलेट के रंग जैसे नहीं हो जाता. उसे कुछ समय तक जमने दिया जाता है, और फिर आयताकार टुकड़ों में काट कर चीनी की सफेद गेंदों (खसखस) से सजाया जाता है. आज बाल मिठाई सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी बड़े ही चाव से खाई जाती है.
दो अड्डे विशेष रूप से प्रसिद्ध
एक जोगा शाह की बाल मिठाई दूसरा खीम सिंह मोहन सिंह की बाल मिठाई. इनमें पहले बाल मिठाई निर्माता इस बात का दावा करते हैं की सन 1865 में पहली बार बाल मिठाई का आविष्कार उनके पूर्वजों द्वारा किया गया.
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अल्मोड़ा में 50 से ज्यादा बाल मिठाई की दुकानें
अल्मोड़ा शहर में बाल मिठाई लगभग पचास से अधिक स्थानों पर उपलब्ध होती है. चटख, कत्थई बर्फी पर चिपके मोती से दाने वाली यह मिठाई काउंटर में अलग ही कंट्रास्ट पैदा करती हैं. अल्मोड़ा की बाल मिठाई का डिब्बा भी स्थानीय स्तर पर निर्मित होता है जो कि हल्के लाल रंग में बना होता है. जिस पर स्पष्ट सूचना होती है अल्मोड़ा की प्रसिद्ध बाल मिठाई है.
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प्रोटीन लैक्टोज, ग्लूकोज और वसा का ऐसा प्राकृतिक समायोजन
ऐसा माना गया है कि बाल मिठाई प्रोटीन लैक्टोज, ग्लूकोज और वसा का ऐसा प्राकृतिक समायोजन है जो शुद्ध दूध से 5 गुना ज्यादा पौष्टिक तत्वों से युक्त हो जाता है. लचीलेपन के कारण इसको खाना काफी आसान होता है.
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