उत्तराखंड का जायका: कभी खाए हैं ‘जखिया’ तड़के के साथ आलू के गुटके, कुमाऊं का ऐसा स्वाद जो हमेशा रहेगा याद
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उत्तराखंड का जायका: कभी खाए हैं ‘जखिया’ तड़के के साथ आलू के गुटके, कुमाऊं का ऐसा स्वाद जो हमेशा रहेगा याद

आलू के गुटके विशुद्ध रूप से कुमाऊंनी स्नैक्स है. इसके लिए उबले हुए आलू को इस तरह से पकाया जाता है कि आलू का हर टुकड़ा अलग दिखे. इसमें पानी का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता

आलू के गुटके

उत्तराखंड का जायका: भारत विविधताओं का देश है यहां हर राज्य की अपनी एक अलग सभ्यता और संस्कृति है. खान पान के मामले में भी हर राज्य एक दूसरे से बिल्कुल अलग है. कुछ राज्यों का खाना तो अब हर किसी की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है जैसे सिक्किम के मोमोज, बिहार का लिट्टी चोखा, कश्मारी के दम आलू और उत्तरप्रदेश की बेडमी. तो आज हम देवभमि उत्तराखंड का फेमस खाना बता रहे हैं. ये खाना है आलू के गुटके, सुनने में ये जितना अच्छा लगता है उतना ही खाने में मजेदार होता है. 

  1. उत्तराखंड का विशेष खाना है आलू के गुटके
  2. इसका ‘जखिया’ तड़का बनाता है इसका स्वाद स्पेशल
  3. किसी भी समय खा सकते हैं आलू के गुटके
  4.  

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उत्तराखंड की खूबसूरती का हर कोई दीवाना है लेकिन यहां का जायका भी आपको दीवाना बना देगा. गर्मागरम आलू के गुटके, कापा, जंगूरा की खीर, गहत की दाल के परांठे, भांग की चटनी लोग खूब खाते हैं. कुमाऊं में शायद ही कोई फेस्टिवल हो जब आलू के गुटके न बनते हों.

आलू के गुटके
कहा जा सकता है कि ‘आलू के गुटके’ विशुद्ध रूप से कुमाऊंनी स्नैक्स हैं. उबले हुए आलू को इस तरह से सब्जी के रूप में पकाया जाता है कि आलू का हर टुकड़ा अलग-अलग दिखता है. इसमें पानी का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता. यह मसालेदार होता है और लाल भुनी हुई मिर्च और धनिए के पत्तों के साथ इसे सर्व किया जाता है. आलू के गुटके के स्वाद को कई गुना बढ़ाने में ‘जखिया’ (एक प्रकार का तड़का) की बेहद अहम भूमिका होती है. आलू के गुटके मडुए की रोटी के साथ भी खाए जाते हैं और शाम की चाय के साथ भी इसका भरपूर लुत्फ उठाया जा सकता है.

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कभी भी खा सकते हैं आलू के गुटके 
इसको बनाने और खान का कोई समय नहीं है. इसे सुबह नाश्ते के दौरान, दिन में खाना खाते समय, शाम को कभी भी बनाया जा सकता है. यह सबसे कम मेहनत में जल्दी तैयार होने वाली रेसिपी है. सामूहिक आयोजन में भी इसे परोसा जाता है.

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इस तरह बनाया जाता है
इसे बनाने के लिए आलू को उबाला जाता है. इसके बाद जीरे, प्याज, हींग व हरी मिर्च का छौंक लगाते हैं फिर इसमें गरम मसाले डालकर पकाते हैं. और आखिर में आलू छोटे-छोटे टुकड़ों को मसाले के साथ पकाया जाता है.  इसमें विशेष प्रकार का ‘जखिया’ (एक प्रकार का तड़का) लगाया जाता है. तड़के के बाद हरी धनिया डालकर गर्मागर्म सर्व किया जाता है. 

अगर आप कोई भी पहाड़ी व्यंजन खा रहे हों तो उसको आप उसकी खुशबू से उसे आसानी से पहचान सकते है. खाने को स्वादिष्ट बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका तड़के की होती है. यहां के मसाले भी अलग किस्म के होते हैं जो भोजन का स्वाद बढ़ाते हैं.

आलू एक, उपयोग अनेक
आलू से अनेक खाद्य सामग्री बनती है जैसे वड़ापाव, चाट, आलू भरी कचौड़ी, चिप्स, पापड़, फ्रेंचफ्राइस, समोसा, टिक्की, चोखा आदि. आलू को अन्य सब्जियों के साथ मिला कर तरह-तरह कि पकवान बनाये जाते हैं.

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वैसे तो आलू भारत में ज़्यादातर लोगों की पसंदीदा सब्जी है लेकिन कई लोग इसे अधिक चर्बी वाला समझकर खाने से परहेज करते हैं. परंतु आलू में कुछ उपयोगी गुण भी हैं. आलू में विटामिन सी, बी कॉम्पलेक्स तथा आयरन , कैल्शियम, मैंगनीज, फास्फोरस तत्त्व होते हैं.

अनुसंधान बताते हैं की पेरू में 7000 साल से आलू की खेती की जा रही है. पेरू से ही आलू ने पहले यूरोप और बाद में पूरी दुनिया में अपने पांव पसारे. जब यह भारत पहुंचा तो यहां इससे समोसा, टिक्की, कचौड़ी, चिप्स, भरवा परांठे, नान जैसे ढेरों व्यंजन बना डाले. 

पीढ़ियों से लिया जा रहा है इसका स्वाद
इसी कड़ी में पहाड़ में आलू के गुटके ठीक-ठीक कब से बनना शुरू हुए इसकी जानकारी नहीं लेकिन पीढ़ियों से इन्हें खाया जा रहा है. इस दौरान खानपान में कई बदलाव हुए लेकिन पहाड़ी रसोई में आलू का दर्जा कभी कम नहीं हुआ. यदि कभी आप कुमाऊं-गढ़वाल की तरफ जाएं तो यहां के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद लेना न भूलें. 

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