नई दिल्ली: शबनम मामले में फांसी की चर्चा एक बार फिर पूरे देश में हो रही है. इससे पहले निर्भया के गुनहगारों की सजा के वक्त लोगों के जहन में फांसी की सजा को लकेर कई सवाल जहन में आए थे. दरअसल, 1983 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक केवल 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयरट' के मामलों में ही सजा का प्रावधान है. शबनम की फांसी का वक्त भी बेहद करीब है. ऐसे में शबनम को फांसी देने की तैयारियों के बीच ये जानना और समझना बहुत जरूरी है कि भारत में फांसी देने के क्या नियम हैं. सजा मुकर्रर होने से लेकर डेथ वॉरंट जारी होने के बाद उस वक्त होता है जब जल्लाद मुजरिम को फांसी देता है. जल्लाद आखिरी वक्त में दोषी के कान के पास आकर जो कहता है उसके बारे में भी बहुत कम ही लोग जानते हैं.


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डेथ वॉरंट से हेग्ड टिल डेथ तक
फांसी की सजा मुकर्रर होने के बाद डेथ वॉरंट जारी होता है. दया याचिका के माध्यम से फांसी पर रोक लगाने के लिए गुहार लगाई जाती है. दया याचिका खारिज होने के बाद डेथ वॉरंट जारी होता है, जिसमें फांसी की तारीख और समय तय होता है. फांसी दिए जाने की आगे की प्रक्रिया जेल मैनुअल के हिसाब से होती है. बिना नियमों के पालन किए फांसी नहीं दी जा सकती. डेथ वारंट जारी होने के बाद कैदी को फांसी की तारीख के बारे में इतल्ला दी जाती है. इतना ही नहीं जेल सुप्रीटेडेंट प्रशासन को भी जानकारी देते हैं.


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फांसी के पहले लटकाया जाता है पुतला
इससे पहले जल्लाद कैदी के वजन का पुतला लटकाकर ट्रायल करता है. फांसी देने वाली रस्सी का ऑर्डर दिया जाता है. रस्सी, लिवर सब कुछ एक दिन पहले चेक किया जाता है. कैदी के परिजनों को 15 पहने सूचना भेजवा दी जाती है. जिससे वह उससे आखिरी बार मिल सकें.


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फांसी का वक्त और पहर तय
फांसी सुबह के वक्त ही दी जाती है. इसके पीछे वजह ये होती है कि सुबह सब कैदी सो रहे होते हैं. मुजरिम को पूरा दिन इंतजार नहीं करना पड़ता. फांसी के बाद परिवार वालों को अंतिम संस्कार का भी वक्त मिल जाता है. फांसी वाले दिन सुबह-सुबह जेल सुप्रीटेंडेंट की निगरानी में गार्ड कैदी को फांसी कक्ष में लाते हैं. फांसी के वक्त जल्लाद के अलावा तीन अधिकारी मौजूद रहते हैं. ये तीन अफसर जेल सुप्रीटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर और मजिस्ट्रेट होते हैं. सुप्रीटेंडेंट फांसी से पहले मजिस्ट्रेट को बताते हैं कि कैदी की पहचान हो गई है और उसे डेथ वॉरंट पढ़कर सुना दिया गया है. डेथ वॉरंट पर कैदी के साइन कराए जाते है.


कैदी को नहलाया और दिए जाते हैं नए कपड़े 
फांसी वाले दिन कैदी को नहलाया जाता है और उसे नए कपड़े दिए जाते है. इसके बाद उसे उस जगह लाया जाता है जहां फांसी दी जानी है. फांसी देने से पहले कैदी से उसकी आखिरी इच्छा पूछी जाती है. लेकिन इच्छाएं वही पूरी की जाती हैं, जो जेल मैनुअल में होती हैं. आखिरी वक्त में फांसी देते वक्त सिर्फ जल्लाद उसके साथ होता है. जल्लाद फांसी देते हुए लीवर को खींचता है लेकिन उससे पहले उसके कान में कुछ कहता है.


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कैदी के कान में जल्लाद के आखिरी शब्द
ठीक फांसी देने से चंद सेकेंड पहले जल्लाद कैदी के पास आता है और उसके कान में कहता है कि हिंदुओं को राम-राम और मुसलमानों को सलाम. 'मैं अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं'. मैं आपके सत्य की राह पर चलने की कामना करता हूं. यह कहने के बाद जल्लाद लीवर खींच देता है. जब तक दोषी के प्राण नहीं चले जाते उसे लटकाए रखा जाता है. फिर डॉक्टर दोषी की नब्ज टटोलते हैं. मौत की पुष्टि होने के बाद जरूरी प्रक्रिया पूरी करने के बाद शव परिजनों को सौंप दिया जाता है.


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