Ballia Shiv Mandir: सावन के महीने में शिव मंदिरों में भक्तों का सैलाब उमड़ता है. हर शिव भक्त महादेव को खुश करने के लिए तरह-तरह के जतन करते हैं. पूजा-पाठ और व्रत करते हैं. जगह-जगह के शिव मंदिरों में जाकर अपनी हाजिरी लगाते हैं. हर शिव मंदिर की अपनी-अपनी पौराणिक कहानी है. ऐसा ही एक शिव मंदिर बलिया में भी है. जिसे कामेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है. यह एक अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर है. शिव पुराण में भी इस मंदिर का जिक्र मिलता है. आइए जानते हैं कि आखिर इसका नाम कामेश्वर धाम क्यों पड़ा? 


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शिव पुराण में क्या है कहानी?
शिव पुराण में इसकी अनोखी कथा कही गई है. यहां आज भी एक जला हुआ आम का पेड़ है, जो इस धाम की कहानी कहता है. शिव पुराण की कथा में जिक्र है कि पति के अपमान में जब महादेव की पत्नी माता सती यज्ञ में कूद गईं तो शिव क्रोधित होकर तांडव करने लगे. जिसके बाद संसार में हाहाकार मच गया. स्वर्ग में देवतागण परेशान हो गए. उनको मनाते हैं जिसके बाद शिव तपस्या करने लगे. इसी बीच ताड़कासुर का आतंक बढ़ने लगा. वह स्वर्ग पर भी आधिपत्य करने की कोशिश करने लगा. 


कामदेव को जलाकर किया भस्म
देवताओं ने ताड़कासुर से मुक्ति के लिए शिव जी को याद किया. लेकिन वो तो तपस्ता में लीन रहे. फिर उनको तपस्या से जगाने के लिए देवताओं ने कामदेव से मदद मांगी. सबसे पहले कामदेव अप्सराओं के जरिए महादेव की तपस्या भंग करना चाहते थे, लेकिन असफल होने पर काम खुद ही एक आम के पेड़ के पत्तों में छिप गए और भोलेनाथ पर पुष्प वाण चला दिए. वह वाण भगवान शंकर के सीने में जा लगा. इससे शिव बहुत नाराज हो गए और अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को जलाकर भस्म दिए.


यहां रखी है श्रीराम की चरण पादुका
कामेश्वर धाम की दूसरी कहानी त्रेतायुग से जुड़ी हुई है. वाल्मिकी रामायण के मुताबिक, महर्षि विश्वामित्र ताड़का वध के लिए इसी जगह पर भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को लेकर आये थे. यहीं पर दोनों ने विश्राम किया था. कहते हैं यहां पर श्रीराम की चरण पादुका आज भी रखी है.


कामेश्वर धाम की मान्यता
कामेश्वर धाम बलिया मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर है. यह कारो गांव के पास है. कामेश्वर धाम की महिमा दूर-दूर तक मशहूर है. यहां रानी पोखरा है. कामेश्वर धाम जैसे पवित्र स्थल को अयोध्या के राजा कमलेश्वर ने स्थापित किया था. कहा जाता है वो कुष्ठ रोग से पीड़ित थे. इस रोग से मुक्ति के लिए उन्होंने एक तालाब खुदवाया और उसे ही रानी पोखरा कहा जाता है. इस तालाब में दूर-दूर से आये श्रद्धालु भी स्नान करते हैं. हजारों साल से यहां का आम का पेड़ और रानी तालाब लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. ऐसी मान्यता है कि यहां आकर मत्था टेकने के बाद भक्तों की सारी कामना पूरी हो जाती है. जिसके चलते देश भर के शिव भक्त यहां बड़ी संख्या में श्रद्धा के साथ आते हैं और बाबा को बेल पत्र और पुष्प चढ़ाते हैं. 


Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां लोक मान्यताओं/ पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं. इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. Zeeupuk इसकी किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है.


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