Top 5 Hanuman Mandir in UP: भारतीय शास्त्रों और पुराणों में भगवान हनुमान की बहुत बड़ी भूमिका रही है. जहां पवनपुत्र हनुमान ने प्रभु श्रीराम को रावण के खिलाफ युद्ध जीतने में अहम योगदान दिया था. तो वहीं महाभारत में भी अर्जुन के रथ ध्वज पर आसीन होकर हनुमान ने धर्म का साथ दिया था. भगवान हनुमान की ऐसा ही कहानियों और लीलाओं का वर्णन करते हुए यूपी में अनेकों मंदिर हैं. 


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हनुमानगढ़ी, अयोध्या
हिंदु धर्म ग्रंथों के अनुसार अयोध्या भगवान श्रीराम का जन्मस्थान है. यहां पर सबसे प्रमुख श्री हनुमान मंदिर को हम सब हनुमानगढ़ी के नाम से जानते हैं. भगवान हनुमान का यह मंदिर राजद्वार के सामने एक ऊंचे टीले पर मौजूद है. मंदिर में दर्शन करने के लिए भक्तों को 60 सीढियां चढनी पढ़ती हैं. इसके बाद ही भक्त श्री हनुमान जी के दर्शन कर पाते हैं. 


हनुमान जी का यह मंदिर काफी बड़ा है. मंदिर के चारों तरफ रहने के लिए स्थान बने हुए हैं. यहां पर साधु-संत रहते हैं. वहीं हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव टीला व अंगद टीला नाम के दो स्थान भी हैं. आपको बता दें कि मंदिर की स्थापना आज से लगभग 300 साल पहले स्वामी अभया रामदास जी द्वारा की गई थी.


हनुमान धारा, चित्रकूट
यूपी में सीतापुर के पास यह हनुमान मंदिर स्थापित है. सीतापुर से हनुमान धारा मंदिर सिर्फ तीन मील की दूरी पर है. यह मंदिर पर्वतमाला के बीचों बीच में है. यहां की खास बात यह है कि पहाड़ के सहारे मंदिर में हनुमानजी की एक विशालकाय मूर्ति के सिर के ऊपर जल के दो कुंड हैं. ये दोनों कुंड हमेशा जल से भरे रहते हैं. दोनों ही कुंड़ों में से लगातार पानी बहता रहता है. लगातार बहती हुई धारा का जल हनुमान जी को छूकर बहता है. इसी वजह से ही मंदिर को हनुमान धारा कहते हैं. मंदिर से निकलकर यह धारा पहाड़ में ही अपने आप विलीन हो जाता है. इस धारा को लोग प्रभाती नदी या पातालगंगा के नाम से बुलाते हैं. इस मंदिर के बारे में पौराणिक कथा इस प्रकार है.


प्रभु श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन पवनपुत्र ने भगवान श्री राम से पूछा - हे भगवन ! मुझे कोई एक ऐसी जगह बताइए, जहां जाकर मैं लंका के दहन करने के बाद से मेरे शरीर में चल रही इस ताप को मिटा सकूं. तो इसके जवाब में प्रभु श्री राम ने हनुमान जी को अस जगह के बारे में बताया था.


श्री संकटमोचन मंदिर, वाराणसी
विश्व की धार्मिक राजधानी में स्थित यह मंदिर अपने आप में एक अनोखा और निराला है. मंदिर के चारों तरफ एक छोटा सा वन है. इस जगह का वातावरण बहुत ही एकांत, शांत एवं भक्तों के लिए दिव्य साधना करने के स्थान के योग्य है. मंदिर में श्री हनुमान जी की एक दिव्य प्रतिमा स्थापित है. इस जगह को श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है. श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के पास में ही भगवान श्री नरसिंह का मंदिर भी है. लोगों की ऐसी मान्यता है कि मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के तप एवं पुण्य के कारण प्रकट हुई एक स्वयंभू प्रतिमा है. मंदिर में मौजूद मूर्ति में हनुमान जी का दांया हाथ भक्तों को आशीर्वाद दे रहा है तो वहीं बांया हात भगवान के हृदय पर है. 


हनुमान मंदिर, प्रयागराज
इलाहाबाद किले से एकदम सटा हुआ यह मंदिर भारत का सबसे निराला और अद्भुत मंदिर है. यह मंदिर दिखने में काफी छोटा मंदिर है परंतु इसका महत्व काफी प्राचीन समय से है. यह मंदिर बाकी सभी मंदिरों से इसलिए अलग है क्योंकि इस मंदिर में हनुमान जी की लेटे हुए की प्रतिमा है. यह पूरे भारत में केवल एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसके अंदर हनुमान जी लेटी हुई मुद्रा में हैं. मंदिर में स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा लगभग 20 फीट लंबी है. 


हनुमान मंदिर, नीम करौली बाबा आश्रम (कैंची धाम) नैनीताल 
देवभूमि में नैनीताल से करीब 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आश्रम और हनुमान जी के मंदिर को साल 1964 में नीम करौली बाबा जी ने बनवाया था. इसी जगह को आज के समय में कैंची धाम के नाम से दुनिया में जाना जाता है. ज्ञात हो कि बाबा नीम करौली भगवान हनुमान के भक्त थे. मान्यता है कि बाबा नीम करौली को भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है. साथ में आपको बता दें कि नीम करौली बाबा ने अपने जीवनकाल में 108 हनुमान मंदिरों का निर्माण करवाया था.


हनुमान चट्टी मंदिर, बद्रीनाथ
भागवान हनुमान का यह मंदिर ऋषिकेश से लगभग 286 किलोमीटर दूर है. इस मंदिर की पौराणिक कथा यह है कि जब महाभारत में भीम को अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया था. तो हनुमान जी एक बूढ़े बंदर के रूप में भीम से इसी जगह पर मिले थे. बाद में हनुमान जी ने भीम के अहंकार को चूर-चूर किया था. हालांकि, सर्दियों में भगवान हनुमान चट्टी मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं.


11 मुखी हनुमान मंदिर, देहरादून
देहरादून के जामुनवाला में स्थित यह मंदिर पूरे उत्तराखंड और भारत में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ पर 11 मुखी हनुमान जी की मूर्ति है. इसी मंदिर में लंका नरेश रावण ने भगवान शिव के दस रुद्रों की पूजा की थी. उसकी पूजा से खुश होकर भगवान शिव ने रावण को वरदान दिया था. किंतु जब रावण ने भगवान शिव के वरदान का दुरुपयोग किया. तो स्वयं भगवान शिव जी ने रावण के विनाश और प्रभु श्री राम की सेवा के लिए अपने 11वें रुद्र अवतार हनुमान जी के रूप में जन्म लिया था. 


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