Jawaharlal Nehru Biography: बैरिस्टर के बेटे पंडित नेहरू कहां से की पढ़ाई? इलाहाबाद में करते थे बग्घी की सवारी
Jawaharlal Nehru Biography: देश की आजादी के संघर्ष में प्रयागराज यानि इलाहाबाद का अहम योगदान रहा. इस शहर ने न सिर्फ आजादी से पहले बल्कि आजादी के बाद भी कई महापुरुषों और शीर्ष राजनेताओं को जन्म दिया है. उन्हीं में से एक पंडित जवाहरलाल नेहरू थे. आज हम उनका इस शहर से क्या कनेक्शन था वह जानेंगे. पढ़िए
Jawaharlal Nehru Biography:देश की आजादी के संघर्ष में कभी इलाहाबाद के नाम से मशहूर प्रयागराज की बड़ी भूमिका रही. इस शहर ने आजादी से पहले और आजादी के बाद कई महापुरुषों और शीर्ष राजनेताओं को जन्म दिया है. उन्हीं में से एक थे पंडित जवाहर लाल नेहरू. 14 नवंबर, 1889 को प्रयागराज में नेहरू का जन्म एक कश्मीरी पण्डित परिवार में हुआ था. उनका बचपन इसी शहर में बीता था और उनका इस शहर से हमेशा जुड़ाव रहा. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर पर प्राइवेट टीचर्स से ली. फिर दुनिया के कुछ बेहतरीन स्कूलों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा ली. जानकारी के मुताबिक, नेहरू ने अपनी स्कूली शिक्षा इंग्लैंड में हैरो स्कूल और कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज (लंदन) से पूरी की थी. इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की. 1912 में जवाहरलाल नेहरू भारत लौटे और वकालत शुरू की. फिर 1916 में उनकी शादी कमला नेहरू से हुई.
पंडित नेहरू 1917 में होम रुल लीग में शामिल हुए. 1919 में उनकी दो साल बाद राजनीति में असली दीक्षा हुई. जब वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए. उस समय महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियम के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था. नेहरू, महात्मा गांधी के सक्रिय लेकिन शांतिपूर्ण, सविनय अवज्ञा आंदोलन से आकर्षित हुए. फिर उन्होंने महात्मा गांधी के उपदेशों के अनुसार अपने परिवार को भी ढाल लिया.
कहां बनती थी रणनीतियां?
जवाहरलाल और मोतीलाल नेहरू ने वेस्टर्न ड्रेस और महंगी संपत्ति का त्याग कर दिया. वे खादी का कुर्ता और गांधी टोपी पहनने लगे. 1920-1922 में जवाहर लाल नेहरू ने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया. इस दौरान पहली बार वो गिरफ्तार किए गए. हालांकि, कुछ महीनों के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. 1924 में पंडित नेहरू इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए और उन्होंने शहर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में दो सालों तक सेवा की. फिर 1926 में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से सहयोग की कमी का हवाला देकर इस्तीफा दे दिया. प्रयागराज में ही आजादी की लड़ाई के वक्त भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मुख्यालय हुआ करता था. जिसका नाम था स्वराज भवन. ठीक इसके बगल में पंडित जवाहर लाल नेहरू का आवास आनंद भवन था. इसी भवन में बैठकर महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, पंडित नेहरू, आचार्य कृपलानी, पुरुषोत्तम दास टंडन, मदन मोहन मालवीय, मौलवी लियाकत अली खान और इंदिरा गांधी जैसे नेता अंग्रेजों के खिलाफ रणनीतियां बनाया करते थे. यहीं पर तीन बार कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन हुए थे.
कैसा था नेहरू का परिवार?
पंडित जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू एक धनी बैरिस्टर थे. मोती लाल नेहरू सारस्वत कौल ब्राह्मण समुदाय से थे, स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गए. उनकी माता स्वरूप रानी थुस्सू लाहौर के कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थी. स्वरूप रानी मोतीलाल की दूसरी पत्नी थी. पहली पत्नी की प्रसव के दौरान निधन हो गया था. मोतीलाल नेहरू के तीन बच्चे थे, जिनमें जवाहरलाल सबसे बड़े थे, बाकी दो लड़कियां थी. बड़ी बहन थी विजया लक्ष्मी, जो बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली महिला अध्यक्ष बनी. सबसे छोटी बहन थी कृष्णा, जो मशहूर लेखिका बनी और उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं.
नेता करते थे बग्घी की सवारी
पुराने इलाहाबाद के त्रिपौलिया इलाके में पंडित नेहरू, हरिवंश राय बच्चन, मदन मोहन मालवीय जैसे कई नेताओं का आवास हुआ करता था. उस वक्त सभी के पास मोटर कारें नहीं होती थी. ऐसे में ये नेता बग्घियों की सवारी कर शहर का दौरा किया करते थे. सिविल लाइंस में अंग्रेज रहते थे और वहां आम लोगों के जाने पर पाबंदी थी. पास ही में लोकनाथ मोहल्ला था, जहां रबड़ी-जलेबी खाने वालों और अखाड़ेबाजों का मजमा लगता था. इसी मोहल्ले से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा भी फेमस है. कहते हैं जिस समय आजादी की जंग चल रही थी तब इलाहाबाद में एक और जंग चल रही थी.
अजब-गजब थी ये शर्त
दरअसल, यहां चौधरी महादेव प्रसाद खाने और खिलाने के बड़े ही शौकीन थे, वह अक्सर अपने यहां आने वालों को बड़ा ईनाम देते थे, लेकिन शर्त यह थी कि उसे उनकी ओर से दी गई भरपूर मिठाइयां खानी होती थी. शर्त के मुताबिक, जो व्यक्ति जितनी मिठाइयां खाता था, उसे उतना बड़ा ईनाम मिलता था. इस जंग में पंडित नेहरू भी बग्घी में सवार होकर कई बार उनकी मिठाइयां खाने गए थे. चौधरी महादेव प्रसाद विद्वान और शिक्षाविद् थे. उनके नाम से ही एक बड़ा डिग्री कॉलेज है, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध है.
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