Rani Lakshmi Bai Biography: जब भी झांसी की रानी का जिक्र होता है, लोगों के जहन में एक तस्वीर उभरती है. वह तस्वीर है पीठ पर अपने पुत्र को बांध, अंग्रेजों के सीने को चीरते हुए अपना रास्ता बना रही रानी की. रानी लक्ष्मीबाई को जब भी कोई याद करता है, उसके सामने ये तस्वीर जरूर आ जाती होगी. हालांकि, आज भी लोग रानी लक्ष्मी बाई की कई बातों से अनजान हैं. आज हम झांसी की रानी के जीवन से जुड़े कुछ रोचक जानकारी साझा करेंगे. बात करेंगे उस रानी की, जिसने अपनी असाधारण प्रतिभा से दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह देश को अपनी नीतियों को बदलने पर मजबूर कर दिया था. वो रानी जो आज भी दुनिया को महिला सशक्तिकरण की राह दिखाती है. वो क्रांतिकारी महिला, जो झांसी की रानी के नाम से आज भी भारत की बहादुर महिलाओं में जिंदा है. 


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" बुंदेलों हर बोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी"...सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियां सभी ने पढ़ी होगी. बचपन से ही बच्चों को रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी या शौर्य  गाथा सुनाई जाने लगती है. वह झांसी की रानी, जिसने अपने पति और पुत्र को खोने के बाद दत्तक पुत्र के बड़े होने तक खुद सत्ता की कमान अपने हाथों में ली. हालांकि, झांसी पर कब्जे की अंग्रेजी हुकूमत ने तमाम कोशिशें की. झांसी के किले पर आक्रमण भी किया, लेकिन रानी ने आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब दिया. घोड़े पर सवार रानी अपनी पीठ पर पुत्र को लिए अंग्रेजों से अपनी मातृभूमि के लिए आखिरी सांस तक लड़ी.


झांसी की रानी की कहानी
19 नवंबर 1828 को बनारस में मोरोपंत तांबे और भागीरथी सप्रे के घर लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ था. उन्हें बचपन में मणिकर्णिका कहा जाता था. प्यार से उन्हें मनु कहते थे. जब वह चार साल की थीं, तब उनकी मां का निधन हो गया. उनके पिता बिठूर जिले के पेशवा बाजी राव द्वितीय के लिए काम करते थे. पिता ने ही लक्ष्मी बाई का पालन पोषण किया. इस दौरान उन्होंने घुड़सवारी, तीरंदाजी, आत्मरक्षा और निशानेबाजी की ट्रेनिंग ली. मनु दोनों हाथों से तलवार चलाने में पारंगत थीं. नाना साहब, तात्या टोपे और अजीमुल्लाह खान मनु के बचपन के सहयोगी थे. 1842 में जब वह 14 साल की थीं, तब उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधर राव नेवलेकर से हो गई. उस दौर में शादी के बाद लड़कियों के नाम बदल दिए जाते थे, जिसकी वजह से उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया. 


झांसी पर कब्जे का प्लान
शादी के बाद लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन महज चार महीने में ही उसकी मृत्यु हो गई. कुछ समय के बाद उनके पति और झांसी के राजा का भी निधन हो गया. उधर, झांसी पर कब्जे के लिए ब्रिटिश इंडिया कंपनी के वायसराय डलहौजी ने यही समय बेहतर समझा और रानी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. ताकि वो झांसी को अंग्रेजी हुकूमत के हवाले कर दें, लेकिन पति और बेटे को खोने के बाद रानी लक्ष्मी बाई ने अपने साम्राज्य और प्रजा की रक्षा मन बना लिया और अपने ही रिश्तेदार के एक बच्चे को अपना दत्तक पुत्र बना लिया, जिनका नाम था दामोदर.


अंग्रेजों से रानी का युद्ध
जब अंग्रेजी हुकूमत को यह बात पता चली तो उसने दामोदर को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया. फिर अंग्रेजी हुकूमत के हवाले झांसी का किला करने को कहा और साम्राज्य पर कब्जे की पूरी प्लानिंग कर ली. उधर, रानी भी चुप बैठने वालों में नहीं थीं, उन्होंने काशी बाई समेत 14000 बागियों की एक बड़ी फौज तैयार कर ली और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ युद्ध के मैदान में कूद पड़ीं. रिपोर्ट्स की मानें तो 23 मार्च 1858 को ब्रिटिश फौज ने झांसी पर आक्रमण किया और 30 मार्च को बमबारी करके किले की दीवार में सेंध लगा दी. 17 जून 1858 को लक्ष्मीबाई आखिरी जंग के लिए निकली. पीठ पर दत्तक पुत्र को बांधकर हाथ में तलवार लिए झांसी की रानी ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए. लॉर्ड कैनिंग की रिपोर्ट की मानें तो, एक सैनिक ने रानी लक्ष्मीबाई को पीछे से गोली मार दी. फिर एक सैनिक ने एक तलवार से उनकी हत्या कर दी.


दत्तक पुत्र का क्या हुआ?
रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद उनके दत्तक पुत्र दामोदर राव का जीवन बहुत कठिनाई से बीता. अंग्रेजों ने उन्हें झांसी का उत्तराधिकारी नहीं माना. सरकारी दस्तावेजों में उन्हें कोई जगह नहीं मिली. कहा जाता है कि दामोदर राव को तड़प-तड़प कर भूखे मरने के लिए छोड़ दिया गया. वे गलियों में घुमते, जंगलों में जाते और भीख मांगकर अपना गुजारा करते थे. कुछ समय बाद ब्रिटिश शासकों ने उन्हें थोड़ी सी पेंशन सुविधा उपलब्ध कराई. दामोदर राव ने इंदौर में ही पढ़ाई की और फिर शादी भी की. कुछ समय बाद ही उनकी पत्नी का निधन हो गया. इसके बाद उन्होंने दूसरी शादी की, जिससे उनके बेटे लक्ष्मणराव का जन्म हुआ. 28 मई 1906 को 56 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. दामोदर राव चित्रकार थे. उन्होंने अपनी मां की याद में कई चित्र बनाए हैं. 


गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिशाल
रानी लक्ष्मीबाई बुंदेलखण्ड की गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिशाल थीं. ऐसा कहा जाता है कि 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई ने बांदा के नवाब अली बहादुर द्वितीय को राखी भेजकर मदद मांगी थी. जिसके बाद अपनी बहन के लिए बांदा नवाब 10000 सैनिकों के साथ आजादी के संग्राम में आगे आए. बुंदेलखंड में आज भी रक्षाबंधन हिंदू- मुस्लिम भाई-बहन उसी उत्साह से मनाते हैं. अंग्रेजों से हुए अंतिम युद्ध में नवाब अली बहादुर उनके साथ थे. भोपाल की बेगम का एक एजेंट भवानी प्रसाद, जो उस वक्त मध्य भारत के अंग्रेजी एजेंट सर रॉबर्ट हैमिल्टन की छावनी में था, उसने रानी के अंतिम युद्ध और रानी की 17 जून को मृत्यु के समाचार को, एक पत्र के जरिए 18 जून को बेगम को सूचना दी थी. हालांकि, इस पत्र में लिखी कई बातों को कुछ इतिहासकार पूरी तरह से सच नहीं मानते.


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