जितेंद्र सोनी/जालौन: बुंदेलखंड में वैसे तो कई ऐतिहासिक इमारतें हैं, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, लेकिन धार्मिक लिहाज से भी बुंदेलखंड का अलग महत्व है. बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहे जाने वाली कालपी नगरी में नाग पंचमी के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है. साथ ही यहां पर 95 फीट लंबी नागिन और 180 फीट लंबे नाग देवता की पूजा की जाती है. इस मौके पर यहां 200 वर्षों से मेला और दंगल के आयोजन की परंपरा चली आ रही है.


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दरअसल, जालौन के कालपी कस्बे को सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नगरी के रूप में जाना जाता है और इसे बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. सांस्कृतिक धरोहरों में से एक कालपी कस्बे में नाग पंचमी के दिन लंका मीनार पर डेढ़ 200 वर्षों से मेला और दंगल का आयोजन होता चला आ रहा है. उरई मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर कालपी नगर में नाग पंचमी के दिन भक्त यहां पर आकर नागदेवता की पूजा-अर्चना करते हैं. परिसर में बने नाग और नागिन का विधि-विधान से पूजा के बाद दोपहर में दंगल का आयोजन किया जाता है.


95 फीट लंबी नागिन तो, 180 फीट लंबे नाग की होती है पूजा
कालपी नगर में लंका मीनार पर 180 फीट के नाग देवता और 95 फीट की नागिन का रूप बना हुआ है. यह लंका मीनार नगर के मोहल्ला रामगंज में मौजूद है. इसे बाबू मथुरा प्रसाद ने सन 1875 में बनवाया था. इस लंका मीनार को बनने में 25 वर्षों का समय लगा था और इसकी लंबाई तकरीबन 30 मीटर है. लंका मीनार के मालिक विवेक निगम ने बताया कि उनके दादाजी ने नाग पंचमी के दिन लंका मीनार पर मेले और दंगल का आयोजन शुरू किया था. जो पिछले 200 वर्षों से निरंतर चल रहा है. इस साल भी यहां दंगल का आयोजन किया जा रहा है.


लंका मीनार के ठीक सामने विराजमान है शिव शंकर
लंका मीनार के ठीक सामने भगवान शिव शंकर का मंदिर मौजूद है भक्त यहां पर आकर सबसे पहले शिव शंकर की मूर्ति पर जल अर्पित करते हैं. इसके बाद नाग देवता की पूजा करते हैं. 180 फीट लंबे नाग देवता लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं. वहीं, दूरदराज इलाकों से आकर लोग यहां पर अपने अर्जियां लगाते हैं. स्थानीय लोगों की माने तो यहां पर यहां पर मेले और दंगल की परंपरा बेहद पुरानी है और आसपास के जिलों से भी लोग यहां पर पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं.


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