रजत सिंह/ लखनऊ:  उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा लिए गए फैसले के बाद अब नई आरक्षण सूची जारी की जाएगी. कोर्ट ने अपने फैसले में 1995 के बदले साल 2015 को आधार वर्ष मानने का निर्देश दिया है. इस फैसले का असर एक ओर जहां चुनाव की तारीखों पर पड़ने वाला है. वहीं, दूसरी ओर प्रत्याशियों को भी अच्छा-खासा नुकसान हो सकता है. दरअसल, पहली सूची आने के बाद प्रत्याशियों ने प्रचार के लिए खर्च करना शुरू कर दिया था. अगर ऐसे में सीट पर आरक्षण बदलता है, तो उसका नुकसान उन्हें उठाना पड़ेगा. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

UP Panchayat Chunav 2021: क्या है आधार वर्ष? क्या बदलने से बदल जाएगी आरक्षण प्रक्रिया


कितना हो सकता है नुकसान?
पूर्वांचल के अपने क्षेत्र संख्या से जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहे एक प्रत्याशी ने बताया कि उन्होंने पूरे जोरो-शोरों से प्रचार शुरू कर दिया था. उनके क्षेत्र संख्या में 27 गांव आते हैं. ऐसे में हर गांव में लगभग 20-30 होर्डिंग भी लगवाई. इसके लिए करीब 500 होर्डिंग छपवाई थीं. एक होर्डिंग की कीमत 150 रुपये पड़ी. ऐसे में सिर्फ होर्डिंग के ऊपर ही 75 हजार रुपये खर्च किए. वहीं, पोस्टर, हैंडबिल और पैम्पलेट के ऊपर भी 20 हजार रुपये का खर्च आया है. इसके अलावा प्रचार के दौरान गाड़ी, पेट्रोल के साथ कार्यकर्ताओं पर खर्चापानी भी किया.


व्यय   कीमत (रुपये)  खर्च (रुपये)
होर्डिंग (500)  150/पीस 75,000
पैम्पलेट और पोस्टर (4000)  5/पीस  20,000
 गाड़ी और पेट्रोल  -  10,000  (अनुमानित)
अन्य व्यय -  12,000 (अनुमानित)
कुल व्यय   1,17,000 

प्रत्याशी ने अंत में इस बात को भी जोड़ा कि,आयोग ने 1.5 लाख रुपये ही खर्च निर्धारित किया है. लेकिन चुनाव जीतने के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है. ऐसे में अब अगर सीट बदल जाती है, तो मेरा नुकासन हो जाएगा. प्रत्याशी ने भी बताया कि उनकी सीट ओबीसी के लिए आरक्षित की गई थी. ऐसे में अगर सामान्य होती है, तो कोई दिक्कत नहीं होगी. यहां तक कि अगर ओबीसी महिला होती है, तो वह अपनी मां को मैदान में उतार देंगे. लेकिन अगर एससी-एसटी हो जाती है, तो उन्होंने नुकसान उठाना पड़ेगा. 


इसके अलावा पूर्वांचल क्षेत्र के ही एक ग्राम पद के प्रत्याशी ने बताया कि अब तक करीब 20 हजार रुपये खर्च कर चुका हैं. इनमें बैनर्स, पोस्टर के साथ-साथ पार्टी (लोगों की दावत) का भी खर्च शामिल है. हालांकि, सभी प्रत्याशियों ने ऐसा नहीं किया. कुछ प्रत्याशियों ने अभी तक 5 से 6 हजार रुपये ही खर्च किए हैं. वहीं, बीडीसी प्रत्याशी ने भी 5 से 10 हजार रुपये खर्च किए हैं. ग्राम प्रधान पद के प्रत्याशी ने बताया कि एक और दिक्कत है कि मेरी दुकान थी. प्रचार के लिए मैं अक्सर गायब रहता था. ये मान के लिए चलिए पिछले 10 दिनों में रोज करीब 700 रुपये का नुकसान हुआ है. 


चुनाव में कितना खर्च कर सकते हैं प्रत्याशी
चुनाव में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार को कम करने के लिए चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा तय की है. चुनाव के बाद प्रत्याशियों को यह ब्योरा चुनाव आयोग को देना भी होता है. जारी नियम के मुताबिक, ग्राम पंचायत सदस्य- 10 हजार रुपये, ग्राम प्रधान-75 हजार रुपये, क्षेत्र पंचायत सदस्य(बीडीसी)- 75 हजार रुपये और जिला पंचायत सदस्य-1.5 लाख रुपये खर्च कर सकते हैं. 


WATCH LIVE TV