सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल हैं, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति. इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है.
केवल वे लोग जिन्हें लोगों पर भरोसा और आत्मविश्वास नहीं है या जो जनता का भरोसा जीतने में असमर्थ हैं, वही हिंसक रास्ते अपनाते हैं.
मेरी रुचि सत्ता के कब्जे में नहीं, बल्कि लोगों द्वारा सत्ता के नियंत्रण में है.
लोकतंत्र को शांति के बिना सुरक्षित और मजबूत नहीं बनाया जा सकता. शांति और लोकतंत्र एक सिक्के के दो पहलू हैं. एक के बिना दूसरा बचा नहीं रह सकता.
जब सत्ता बंदूक की नली से बाहर आती है और बंदूक आम लोगों के हाथों में नहीं रहती है, तब सत्ता हमेशा सबसे आगे की पंक्ति वाले क्रांतिकारियों के बीच सबसे क्रूर मुट्ठीभर लोगों द्वारा हड़प ली जाती है
जब तक हर व्यक्ति के दिल में राष्ट्रवाद की भावना का विकास नहीं होगा तब तक देश का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता है. भारत में सांस्कृतिक एकता होते हुए भी राजनीतिक एकता का अभाव है.
राजनीतिक दलीय प्रणाली में जनता की स्थिति उन भेड़ों की तरह होती है जो निश्चित अवधि के बाद अपने लिए ग्वाला चुन लेती है. ऐसी लोकतंत्रीय शासन प्रणाली में मैं उस स्वतन्त्रता के दर्शन कर नहीं पाता जिसके लिए मैंने तथा जनता ने संघर्ष किया था.
राष्ट्रीय एकता के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति धार्मिक अन्धविश्वासों से बाहर निकलकर अपने अन्दर एक बौद्धिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करे.
भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं. वे तभी पूरी हो सकती हैं जब पूरी व्यवस्था बदल दी जाए. सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति सम्पूर्ण क्रान्ति जरूरी है.