छात्र राजनीति हो या फिर राष्ट्रीय राजनीति. मुलायम सिंह यादव ने अपने नाम का ऐसा सिक्का जमाया कि कोई उनकी चाहकर भी अनदेखी नहीं कर सकता था. सीएम से लेकर वह देश के रक्षामंत्री बने. एक मौका ऐसा भी आया कि जब उनका नाम प्रधानमंत्री पद की रेस में भी शामिल हो गया था, हालांकि उनका यह सपना अधूरा रह गया.
इटावा जिले के सैफई गांव में 22 नवंबर 1939 को मूर्ति देवी और सुघर सिंह यादव के घर मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ. उनकी शुरुआती पढ़ाई अपने गृह जनपद में ही हुई। बाद में वह आगे की पढ़ाई के लिए इटावा पहुंचे.
साल 1962 मे जब पहली बार छात्र संघ चुनाव की घोषणा हुई तो उन्होंने भी चुनाव लड़ने का फैसला किया और छात्र संघ के अध्यक्ष बन गए. छात्र राजनीति के दौरान ही वह अपने राजनीतिक गुरु चौधरी नत्थू सिंह के संपर्क में आए और उनकी मेहनत देख गुरु का आशीर्वाद मिला.
एक छोटे से गांव से आने वाले मुलायम सिंह यादव महज 28 साल की उम्र में ही विधायक बन गए. वह 1967 के विधानसभा चुनाव में जसवंतनगर की सीट से पहली बार विधायक चुने गए.
उत्तर प्रदेश की राम नरेश यादव सरकार में मंत्री भी बने. इसके बाद 1980 में वह लोकदल के अध्यक्ष चुने गए और 1982 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष चुने गए.
उन्होंने महज कुछ ही साल में अपने नाम का सिक्का उत्तर प्रदेश की राजनीति में जमा लिया. वह पहली बार साल 1989 में मुख्यमंत्री बने. वह 1993 में कांशीराम और मायावती की पार्टी बसपा की मदद से दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. तीसरी बार साल 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
1996 में वह मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए. इस चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और फिर तीसरा मोर्चा रेस में आया. इस बार मुलायम सिंह किंगमेकर की भूमिका में थे, लेकिन वह प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए और देश के रक्षा मंत्री बने.
मुलायम सिंह यादव 9 बार विधायक रहे, इसके अलावा 1996 से 2019 तक 7 बार जीतकर लोकसभा पहुंचे. 57 साल के राजनीतिक सफर में 9 बार विधायक और 7 बार सांसद और तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. यह कारनामा अब तक कोई दूसरा नहीं कर पाया है.
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