कहा जाता है कि कुंभकर्ण और मेघनाद ने रावण को भगवान राम के खिलाफ लड़ने से रोकने की कोशिश की थी. यही वजह है 300 साल बाद लखनऊ में कुंभकरम और मेघनाद का पुतला नहीं जलाया जाएगा.
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सौरभ पांडे/लखनऊ: दशहरे को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में आस्था के नए-नए रंग देखने को मिलते हैं. उत्तर प्रदेश में 300 से अधिक वर्षों के बाद ऐशबाग रामलीला समिति ने इस दशहरे पर रावण के साथ कुंभकरण और मेघनाद के पुतले जलाने की प्रथा को बंद करने का निर्णय लिया है. दावा गया है कि भगवान राम के खिलाफ कुंभकर्ण और मेघनाद युद्ध नहीं करना चाहते थे. लेकिन रावण ही हठधर्मिता के कारण उन्हें युद्ध में भाग लेना पड़ा.
रामायण में उल्लेख होने का दावा
लखनऊ की ऐशबाग रामलीला कमेटी ने इसको देखते हुए 300 सालों की चली आ रही परंपरा को बदलने का फैसला लिया है. इस बारे में राम लीला ऐशबाग (Aishbagh Samiti) के सचिव आदित्य द्विवेदी का कहना है कि इस प्रकार के फैसले का कारण सभी रामायण (Ramayan) ग्रंथों में किए गए उल्लेख हैं. कुंभकर्ण (Kumbhakaran) और मेघनाद (Meghnath) ने रावण को भगवान राम के खिलाफ लड़ने से रोकने की कोशिश की थी. वह भगवान राम को विष्णु का अवतार मानते थे. लेकिन जब रावण ने उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्हें युद्ध में भाग लेना पड़ा. ऐसे में भगवान राम के साथ सीधा युद्ध इन दोनों ने नहीं किया था.
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कट्टरपंथियों के खिलाफ शंखनाद
रामलीला ऐशबाग के सचिव आदित्य द्विवेदी के मुताबिक इस बार रावण की थीम सर तन से जुदा, कट्टरपंथी विचारधारा और राष्ट्र विरोधी मानसिकता का विनाश होगा. हम सब प्रार्थना करेंगे कि रावण के साथ समाज की यह तीन बुराइयां भी जलकर खाक हो जाए. इस बार दशहरे पर 70 फिट ऊंचा रावण तैयार होगा और शाम 8.30 बजे रावण का दहन होगा. रामलीला समिति द्वारा बुराइयों को खत्म करने का आह्वान स्थानीय लोगों को खूब पसंद आ रहा है.