लोकसभा चुनाव 2024 में BJP की हैट्रिक रोकने में जुटा विपक्ष, क्या दक्षिण और पश्चिम रहेगा केंद्र?
Politics News: आज तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने शुक्रवार को दिल्ली स्थित अपने आवास पर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की. केसीआर और अखिलेश यादव के बीच तकरीबन 2 घंटे तक मुलाकात का दौर चला. इस दौरान सपा के वरिष्ठ नेता राम गोपाल यादव (Ram gopal yadav) भी मौजूद रहे. दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद एक बार फिर तीसरे मोर्चे को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. राजनीतिक उधेड़बुन और कयास बाजी का दौर शुरू हो गया है
लखनऊ: देश की राजनीति साल 2014 के आम चुनाव के बाद तेजी से बदली है. जब पहली बार शानदार प्रदर्शन करते हुए भाजपा पूर्ण बहुमत से भी ज्यादा नंबर लाकर सदन में पहुंची. वहीं, 2019 में भी भाजपा ने दोबारा पहले से भी बेहतर प्रदर्शन करते हुए सरकार बनाई. अब 2024 का रण सजने लगा है. देश की राजनीति में कई सियासी समीकरण बनते दिख रहे हैं, क्योंकि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरता है. शायद इसीलिए आज तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (K Chandrashekar Rao) ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से मुलाकात की. इस मुलाकात को कई मायने में खास बताया जा रहा है.
केसीआर ने अखिलेश यादव से की मुलाकात
आज तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने शुक्रवार को दिल्ली स्थित अपने आवास पर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की. केसीआर और अखिलेश यादव के बीच तकरीबन 2 घंटे तक मुलाकात का दौर चला. इस दौरान सपा के वरिष्ठ नेता राम गोपाल यादव (Ram gopal yadav) भी मौजूद रहे. दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद एक बार फिर तीसरे मोर्चे को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. राजनीतिक उधेड़बुन और कयास बाजी का दौर शुरू हो गया है. अगर आपको याद हो तो विधानसभा चुनाव 2022 के समय अखिलेश यादव के साथ आपने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (Mamta Banrjee) की तस्वीरें देखी होंगी.
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ममता और अखिलेश ने बीजेपी के लिए 'खदेड़ा होबे' का दिया था नारा
आपको बता दें कि ममता बनर्जी ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन के लिए चुनावी कैंपेनिंग भी की थी. सपा गठबंधन के मंच पर ममता और अखिलेश ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए यूपी में 'खदेड़ा होबे' का नारा भी दिया था, लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में सपा गठबंधन बीजेपी के सामने कहीं दूर-दूर तक नहीं टिक सका.
2017 के चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलाया था हाथ
हालांकि, अखिलेश यादव को नए गठजोड़ करने में तो महारथ हासिल है ही, लेकिन उनके सभी गठजोड़ केवल एक चुनावी सीजन ही पार कर पाते हैं. चुनाव के बाद वो गठबंधन अपने आप धराशायी हो जाता है. आपको याद होगा 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ. तब नारा दिया गया 'यूपी के दो लड़के करेंगे कमाल', फिर चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद दोनों लड़के एक-दूसरे से जुदा हो गए.
2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा एक मंच पर
दोबारा चुनाव आया, अखिलेश यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव में नया समीकरण ट्राई किया. चुनाव से पहले का इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें भाजपा को हराने के लिए 19-20 नहीं, अगर 17 और 16 भी होना पड़ा तो वह हो जाएंगे. तब उन्होंने एक पुराने नारे 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्री राम' पर काम करते हुए तमाम गतिरोध भुला दिए. चुनाव में बसपा और सपा एक मंच पर आई. चुनाव के नतीजों के बाद क्या हुआ वो जग जाहिर है.
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अब तक भाजपा के खिलाफ नहीं टिक सका कोई गठजोड़
अखिलेश यादव ने 2022 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर (OM Prakash Rajbhar)समेत कई दलों को लेकर गठबंधन बनाया, लेकिन वह भी कुछ खास नहीं कर पाया. सपा की तरह अन्य विपक्षी दल भी कई मौके पर एकत्र होने और खुद को मजबूत करने की कोशिश करते रहे हैं. हालांकि, अब तक भाजपा के खिलाफ कोई समीकरण या गठजोड़ नहीं टिक सका है. महाराष्ट्र में उद्धव (Uddhav Thackeray)सरकार का क्या हुआ, वो आप जानते ही हैं.
इस मुलाकात के ये हैं सियासी मायने
आज तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और अखिलेश यादव की मुलाकात के भी कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. आपको बता दें कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर (KCR) की भारतीय जनता पार्टी (BJP) से तल्खी किसी से छुपी हुई नहीं है, जिसका हालिया उदाहरण राष्ट्रपति चुनाव है. जब राष्ट्रपति चुनाव के समय चंद्रशेखर राव ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए उन्हें साहूकारों का दोस्त बता डाला था.
ये राजनीतिक त्रिकोण रोक पाएगा बीजेपी का विजय रथ
आने वाले दिनों में यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि तीसरे मोर्चे के बनने में केसीआर क्या भूमिका निभाते हैं. फिलहाल, कांग्रेस की वर्तमान स्थिति से बिल्कुल नहीं लगता कि वह मोदी का राजनीति काट ढूंढ़ने में सफल हो पाएंगे. ऐसे में विपक्षी खेमे में केसीआर एक ऐसा नाम है, जो मोदी को चुनौती देने वाले में बड़ा चेहरा है. हालांकि, ममता बनर्जी भी बड़ा चेहरा मानी जा रही हैं. आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस, ममता बनर्जी और अन्य विपक्षी दल एक साथ आते हैं या नहीं. कहते हैं न कि राजनीति में कोई न परमानेंट दोस्त होता है ना दुश्मन. अब सवाल ये है कि उत्तर, पश्चिम और दक्षिण का ये राजनीतिक त्रिकोण, बीजेपी का विजय रथ रोक पाएगा या नहीं.