प्यार, पॉलिटिक्स और पॉवर की फिल्मी थ्रिलर से कम नहीं अमरमणि त्रिपाठी की कहानी, बस एक गलती ले डूबी
Amar mani Tripathi Political Career: मशहूर कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड (Madhumita Shukla Murder Case) में दोषी अमरमणि त्रिपाठी और मधुमणि त्रिपाठी की रिहाई हो रही है. मधुमिता के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि हत्या के दौरान वह 7 महीने की प्रेग्नेंट थीं. उनके पेट में अमरमणि का बच्चा था. आइये जानते हैं उस `बाहुबली` अमरमणि के सियासी सफर की, जिसने अपनी प्रेमिका की हत्या करवा दी थी.
Who is Amar mani Tripathi: 20 साल से उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी (Amar mani Tripathi) और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी (Madhu mani Tripathi) रिहा हो रहे हैं. पति-पत्नी को बहुचर्चित कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड (Madhumita Shukla Murder Case) में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. हाल ही में सेहत और जेल में अच्छे व्यवहार को देखते हुए उनकी सजा में कटौती की गई. जेल में दो दशक (20 साल) गुजारने वाले अमरमणि त्रिपाठी का उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा कद था. खासकर पूर्वांचल में उनकी तूती बोलती थी. ऐसे में आइये अमरमणि त्रिपाठी के सियासत में अर्श से लेकर फर्श तक के सफर के बारे में जानते हैं.
हरिशंकर तिवारी हैं अमरमणि त्रिपाठी के गुरु (Hari Shankar Tiwari and Amar Mani Tripathi)
अमरमणि उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने जेल में रहते हुए जीत हासिल की है. सूबे में सपा की सरकार रही हो, बसपा की या भाजपा की, वह हमेशा सत्ता का सुख भोगते रहे. उन्होंने राजनीति और अपराध दोनों में खूब नाम कमाया. उनके ऊपर हत्या, मारपीट, किडनैपिंग, लूटपाट जैसे कई गंभीर मामले दर्ज हैं. कहा जाता है कि अपराध को छिपाने के लिए ही अमरमणि सियासत में आए थे. अमरमणि त्रिपाठी को पूर्वांचल के डॉन कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी का दाहिना हाथ कहा जाता था. वो ही अमरमणि के गुरु थे.
कांग्रेस के टिकट पर नौतनवा से जीता था पहला चुनाव (Amar Mani Tripathi Political Career)
हरिशंकर तिवारी ने अमरमणि को 1980 के चुनाव में वीरेंद्र शाही के खिलाफ लक्ष्मीपुर सीट से चुनावी मैदान में उतारा था. इस चुनाव में उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी का भी समर्थन मिला. हालांकि, वह यह चुनाव हार गए. इसके बाद 1985 में वह दोबारा लक्ष्मीपुर से चुनाव लड़े, लेकिन इस बार भी शिकस्त मिली. महाराजगंज की लक्ष्मीपुर सीट वर्ष 2008 के परिसीमन के बाद नौतनवां कही जाने लगी. साल 1996 में अमरमणि ने पहली बार कांग्रेस के टिकट पर नौतनवा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. हालांकि, तब यूपी में भाजपा-बसपा गठबंधन की सरकार बनी. इसके बाद वह कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. भाजपा ने उन्हें मंत्री बनाया. समय के साथ-साथ पूर्वांचल में अमरमणि की धाक मजबूत होती गई.
2001 में बड़े कारोबारी के बेटे के अपहरण में सामने आया नाम
इसी बीच वर्ष 2001 में बस्ती से एक बड़े कारोबारी के पुत्र राहुल मदेसिया के अपहरण मामले में अमरमणि का नाम सामने आया. मामला लखनऊ से लेकर राजधानी दिल्ली तक पहुंच गया. तब उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. मामला बड़े कारोबरी से जुड़ा था, ऐसे में केंद्र की ओर से राज्य सरकार पर बच्चे को हर हाल में ढूंढ निकालने का दबाव था. राज्य से केंद्र तक हलचल मची, तो पुलिस ने तलाश तेज करते हुए बच्चे को ढूंढ निकाला.
अपहरण मामले की जांच हुई तो पता चला कि 15 वर्षीय लड़के का अपहरण के बाद अमरमणि के बंगले में रखा गया था. इस बात को लेकर भाजपा सरकार सवालों के घेरे में आ गई. विवाद गहराने लगा तो तत्कालीन सीएम राजनाथ सिंह ने अमरमणि को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. इसके बाद भी सरकारें बदलती रहीं, अमरमणि त्रिपाठी को मंत्री पद मिलता रहा.
भाजपा से बसपा फिर सपा का थामा दामन
विधानसभा चुनाव 2002 की तैयारियों के बीच भाजपा से निकाले गए अमरमणि ने हाथी की सवारी की. बसपा ने उन्हें नौतनवा से कैंडिडेट बनाया. वे फिर वहां से जीते. मायावती की सरकार बनी, उसमें भी अमरमणि रहे. हालांकि, बसपा-भाजपा के गठबंधन सरकार एक साल तक ही चली. इसके बाद सत्ता समाजवादी पार्टी के हाथ में आ गई. मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने. सरकार बदली तो अमरमणि ने भी पाला बदल लिया. मुलायम सिंह यादव ने अमरमणि को अपनी कैबिनेट में शामिल किया. यही वह दौर था जब अमरमणि की कवयित्री मधुमिता शुक्ला से नजदीकियां बढ़ीं.
मधुमिता से हुई मुलाकात (Amar Mani Tripathi and Madhumita Shukla)
कवयित्री मधुमिता शुक्ला से मुलाकात के वक्त अमरमणि शादीशुदा थे. उनके पत्नी मधुमणि से बच्चे भी थे. इसके बावजूद वह मधुमिता पर दिल हार बैठे. कवयित्री के साथ अमरमणि का रिश्ता उनकी पत्नी को नागवार गुजरा. नतीजतन एक युवा और उभरती कवयित्री को जिंदगी से हाथ धोना पड़ा. 2003 में मधुमिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस मामले में नौतनवा विधायक पर हत्या का आरोप लगा, जिसके बाद पूर्वांचल के बाहुबली का सियासी करियर गर्त में चला गया.
बेटा संभाल रहा राजनीतिक विरासत (Amar Mani Tripathi Family)
वहीं, अमरमणि के मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में जेल जाने के बाद उनके बेटे अमनमणि ने राजनीतिक विरासत को संभाला. उन्होंने 2012 में सियासत में कदम रखा, लेकिन उन्हें शिकस्त मिली. इसके बाद 2017 के विधानसभा में अपने पिता की तरह जेल में रहते हुए अमनमणि भी नौतनवा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे और जीतकर विधायक बने. हालांकि 2022 के विधानसभा चुनाव में अमनमणि को हार मिली. पिता अमरमणि की तरह अमनमणि का दामन भी दागदार रहा है. उन पर साल 2015 में अपनी पत्नी सारा सिंह की हत्या करने का आरोप लगा था.
कौन थीं कवयित्री मधुमिता शुक्ला, जिन पर दिल हार बैठे थे शादीशुदा बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी
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