नितिन श्रीवास्तव/बाराबंकी: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में ऐसे कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए, जो देश को आजादी दिलाने के लिए कुर्बान हो गए. वर्ष 1930 में महात्मा गांधी के दांडी मार्च के बाद जिले में आजादी को लेकर लोगों में क्रांति की आग धधक उठी. साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन को लेकर देश में छिड़ी मुहिम में यहां के लोग भी कूद पड़े. यहां 18 ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जो अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जेल गए. इन लोगों ने अंग्रेजी अफसर को न सिर्फ जूतों की माला पहनाई बल्कि डाकघर और रेलवे स्टेशन भी लूटा. अंग्रेजों ने गांव के कुओं में मिट्टी का तेल और राशन फेंक दिया था. .


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जानकारी के मुताबिक इन क्रांतिकारियों में हरख के शिव नारायण, रामचंदर, श्रीकृष्ण, श्रीराम, मक्का लाल, सर्वजीत सिंह, राम चंद्र, रामेश्वर, कामता प्रसाद, सर्वजीत, कल्लूदास, कालीचरण, बैजनाथ प्रसाद, रामगोपाल, रामकिशुन, द्वारिका प्रसाद और मास्टर समेत 18 लोग शामिल थे. वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री कमला पति त्रिपाठी ने सभी को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था. गांव के पास स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नाम से द्वार भी बना है.


गांव में खेला था नाटक
बाराबंकी के हरख में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे राम चन्द्र के बेटे उपेंद्र और भूपेंद्र ने बताया कि उन्हें गर्व है कि उनके पिता आजादी के लिए जेल गए. साल 1942 में एक एवी हार्डी नाम का अंग्रेज जिले का डीएम था. हार्डी को सबक सिखाने के लिए गांव वालों ने उसे गांव बुलाया और उसके सामने अवधी भाषा में एक नाटक खेला. गांव के ही एक व्यक्ति ने हार्डी का रोल निभाया. एक सीन में हार्डी बने व्यक्ति को जूतों की माला पहनाई गई. अवधी भाषा मे खेले गए इस नाटक को अंग्रेज डीएम हार्डी समझ नहीं पाया. अगले दिन जब उसे असलियत पता चली तो उसने पुलिस के जरिए गांव में कोहराम मचा दिया. 


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लोगों के घरों में रखे अनाज को उस अंग्रेज अफसरों ने फेंक दिया. इतना ही नहीं गांव कुओं में मिट्टी का तेल डलवाया जिससे कोई उनका पानी न पी सके. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम चन्द्र की पत्नी रमा कांति देवी ने बताया कि अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए उन्होंने अपने साथियों के साथ डाक घर लूटा और बिंदौरा रेलवे स्टेशन को आग के हवाले कर दिया. उन्हें गर्व है कि उनके पति ने देश को आजादी दिलाने में अपना बलिदान दिया.


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