जितेन्द्र सोनी/जालौन: दीपावली का त्योहार बुंदेलखंड में काफी रोमांचक होता है. यहां दीपावली आने से पहले ही गांव सहित शहरों में दिवारी नृत्य (Divari Dance) की चौपालें सज जाती हैं. जिसमें ढोलक की थाप पर थिरकते जिस्म के साथ लाठियों का अचूक वार करते हुए तमाम युवा दिखाई देते हैं. इस नृत्य में युद्ध कला को दर्शाया जाता है, जिसे देख कर लोग दांतों तले अंगुलियां दबाने पर मजबूर हो जाते हैं. दिवारी नृत्य करते युवाओं के पैंतरे देख कर ऐसा लगता है मनो यह लोग दीपावली मानाने नहीं बल्कि युद्ध का मैदान जीतने निकले हों.


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बुंदेलखंड के जालौन नगर की नवीन गल्ला मंडी में बुंदेली दिवारी नृत्य का आयोजन किया गया, जिसको देखने के लिए सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ी. इस बार बुंदेलखंड के इतिहास में पहली बार अनोखे अंदाज में दिवाली मनाई गई. पहले प्रभु श्रीराम के राज्याभिषेक की लीला प्रदर्शित की गई और उसके बाद श्री राम की जीवन गाथा को दर्शाया गया. इस दौरान बुंदेली दिवारी नृत्य के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम और भव्य आतिशबाजी का प्रदर्शन भी किया गया. इस आयोजित बुंदेली दिवारी नृत्य में एसपी जालौन रवि कुमार समेत जिले के आला अधिकारी मौजूद रहे. 


दिवारी नृत्य में मौनी मौनी नर्तक करते हैं गांवों का भ्रमण 
दीपावली की धूम तो पूरी दुनिया में होती है, लेकिन एक इलाका ऐसा भी है जहां दिवाली के एक दिन बाद दिवारी नृत्य की बहुत ही पुरानी परंपरा चली आ रही है. लक्ष्मी पूजा के अगले दिन यह गोवर्धन पूजा पर मौन परमा से जुड़ी है. इस बार सूर्य ग्रहण के चलते गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन की जगह एक दिन बाद यानी बुधवार होगी होगी, लेकिन अक्सर दीपावली के अगले दिन ही गोवर्धन और मौनिया डांस की परंपरा निभाई जाती रही है. इस दिन पूरे बुंदेलखंड में मौनिया नृत्य की टोलियां गांव गांव भ्रमण करती हैं. मौनी नर्तकों के 12-12 गांव भ्रमण करने की ये परंपरा हजारों साल पुरानी है. इसे गोवर्धन पर्वत उठाने के बाद भगवान कृष्ण की भक्ति में प्रकृति पूजक परम्परा के तौर पर मनाया जाता है, जिसमें दिवारी गीत शामिल होते हैं. इसे दिवारी नृत्य भी कहते हैं. 


बुंदेलखंड का है फेमस नृत्य 
मोनिया बुंदेलखंड के लगभग सभी जिलों में सबसे फेमस और पारंपरिक नृत्य है.  मौनी सैरा ऐसा लोकनृत्य है जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है. यह पूरी तरह कृष्ण भक्ति को समर्पित है, जिसमें प्रकृति और गोवंश के प्रति संरक्षण को मैसेज दिया जाता है. गोवर्धन पूजा को लोग अन्नकूट पूजा के नाम से भी जानते हैं. दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है. दीपावली की तरह ही बुंदेलखंड में दीपावली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा का भी महत्व है. इस दिन अधिकांश गांवों में कई टोलियां ग्वालों के भेष में निकलती हैं. सभी गाय बछड़े के संरक्षण के लिए मौनिया नृत्य करते हुए साज बाज और पारंपरिक गीतों की धुन पर नाचते हुए निकलते हैं. 


काफी दिलचस्प है दिवारी नृत्य की कहानी 
बुंदेलखंड के ऐरच में ही भक्त प्रहलाद के राज का इतिहास बताया जाता है. यहां प्रहलाद के पुत्र वैरोचन थे जिनका पुत्र ही आगे चलकर बलि हुआ. यहां से भगवान विष्णु के वामन अवतार कर कथा प्रचलित है. इतिहासकार बताते हैं कि राजा बलि को छलने के लिए ही वामन अवतार लिया गया था. इसके पहले वैरोचन की पत्नी जब सती हो रही थीं तो उन्हें भगवान ने दर्शन देकर कहा था कि आपके होने वाले पुत्र के सामने हम स्वयं भिक्षा मांगने के लिए आएंगे. इसे सुनकर सती होने के लिए पहुंची उनकी पत्नी ने दिवारी गायन शुरू किया था. इसमें उन्होंने गाया था. 'भली भई सो ना जरी अरे वैरोचन के साथ, मेरे सुत के सामने कऊं हरि पसारे हाथ'. इस गीत के साथ ही मौनिया नृत्य शुरू कर देते हैं जो पूरे 12 घंटे तक 12 ग्रामों में चलता है. बताया जाता है कि यह 12 साल तक चलता है और उसके बाद मौनी दशाश्वमेध घाट पर इसका विसर्जन कर देते हैं.


बुंदेलखंड के इतिहासकार के पी सिंह बताते हैं कि प्राचीन मान्यता के अनुसार जब श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे बैठे हुए थे, तब उनकी सारी गायें खो जाती हैं. अपनी गायों को न पाकर भगवान श्रीकृष्ण दुखी होकर मौन हो गए. इसके बाद भगवान कृष्ण के सभी ग्वाल दोस्त परेशान होने लगे जब ग्वालों ने सभी गायों को तलाश लिया और उन्हें लेकर लाये तब भगवान कृष्ण ने अपना मौन तोड़ा. इसी मान्यता के अनुरूप श्रीकृष्ण के भक्त गांव गांव से मौन व्रत रखकर दीपावली के एक दिन बाद मौन परमा के दिन इस नृत्य को करते हुए 12 गांव की परिक्रमा लगाते हैं और मंदिर जाकर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करते हैं.