ये मंदिर 1000 साल पुराना है. यहां पांडवों ने तपस्या की थी...माता का ये मंदिर यमुना और चंबल नदी के पास बसा हुआ है.... पहले यहां पर अधिकतर डाकू अपना अड्डा बनाते थे..... 2-3 दशकों से डांकुओं का साम्राज्य खत्म होने के बाद....
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जितेन्द्र सोनी/जालौन: यूपी के जालौन के बीहड़ क्षेत्र में बने मंदिर में कभी आस्था के आगे डाकू अपना सर झुकाते थे. वहां पर आम लोगों का आना-जाना न के बराबर होता था. लेकिन आज हालात बदल चुके हैं. जिन बीहड़ों में कभी डांकुओं की गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थीं वहां आज मंदिर के घंटों की आवाज सुनाई देती है. ऐसा ही एक मंदिर यूपी के जालौन के बीहड़ों में स्थित है. यहां पर मां के दर्शनों के लिए नवरात्रि में भारी भीड़ उमड़ती है.
दस्यु मुक्त हुआ बीहड़
इसका मुख्य कारण है बीहड़ अब दस्यु मुक्त हो गया है. पिछले कई दशकों तक जनपद जालौन सहित आस-पास के जनपदों इटावा,औरैया आदि में दस्युओं ने काफी हड़कंप मचा रखा था. जिस कारण लोगों में डकैतों के प्रति भय व्याप्त हो गया था और लोग जालौन वाली माता के दर्शनों के लिए कम ही आते थे.
यहां बसा है मंदिर
ये मंदिर यमुना और चम्बल नदी के पास बसा हुआ है. पहले यहां पर अधिकतर डाकू अपना अड्डा बनाते थे. 2-3 दशकों से डांकुओं का साम्राज्य खत्म होने से अब लोग भय मुक्त होकर दर्शन करने आते हैं. नवरात्रि के समय यहां भक्तों की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हो जाती है. मंदिर से जुड़े किस्से और डाकुओं की कहानी लोगों के लिए आस्था और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
डकैत भी टेकते थे माता के मंदिर मत्था
बता दें कि बीहड़ के जंगलों में जिस डकैत ने भी राज्य किया हो, उसकी विशेषता रही है कि वह जालौन वाली माता के मंदिर में दर्शन करने के साथ ही घंटे भी चढ़ाते थे. डकैत मलखान सिंह, पहलवान सिंह, निर्भय सिंह गुर्जर, फक्कड़ बाबा, फूलन देवी, लवली पाण्डेय, अरविन्द गुर्जर आदि ऐसे ही डकैत थे. ये डकैत समय-समय पर इन मंदिरों में गुपचुप तरीके से माता के मंदिर पर माथा टेकने आते थे. लेकिन डाकूओं के खात्मे के बाद एक बार फिर लोगों का ध्यान इस मंदिर की तरफ बढ़ने लगा है.
पांडवों के द्वारा किया गया था स्थापित
इस मंदिर की विशेषता है कि ये द्वापर युग में पांडवों के द्वारा स्थापित किया गया था. तभी से ये एक प्रमुख स्थान रहा है. ये चंदेल राजाओं के समय खूब प्रसिद हुआ. लेकिन डकैतों के कारण आजादी के बाद ये स्थान चंबल का इलाका कहलाने लगा. डकैतों के डर से इस मंदिर के दर्शन के लिए कम ही भक्त जाया करते थे, लेकिन पुलिस और एस.टी.ऍफ़. की सक्रियता के चलते अब अधिकांश डकैत मुठभेड़ के दौरान मारे जा चुके हैं या कुछ ने मारे जाने के भय से समर्पण कर दिया है, जिसके चलते जालौन जनपद के बीहड़ अब डकैतों से मुक्त हो चुके हैं.
सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात
आज परिणाम यह है कि जालौन वाली माता के दर्शन के लिए हजारों की संख्या में रोज श्रद्धालु बीहड़ में स्थित मंदिर में पहुच रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी पुलिस और पी.ऐ.सी. ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये हैं. जिसके चलते लोगों में डकैतों का भय ख़त्म हो गया है और मंदिर के आस-पास एक मेले का माहौल नजर आता है.
महर्षि वेदव्यास द्वारा मंदिर की स्थापना
स्थानीय निवासियों ने बताया कि मंदिर 1000 साल पुराना है. यहां पांडवों ने तपस्या की थी. महर्षि वेदव्यास द्वारा मंदिर की स्थापना की गई थी. यहां डकैत आते थे लेकिन किसी को परेशान नहीं करते थे. हालांकि कई किवदंतिया भी इस मंदिर से जुडी हैं. एक भक्त के मरे हुए बेटे के जिन्दा होने की बात की भी काफी चर्चा है. स्थानीय निवासी बताते हैं कि मां भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.
पहले करते थे डैकत पूजा-मंदिर के पुजारी
मंदिर के पुजारी ने बताया कि कौरव पांडवों के समय का ये मंदिर है और इस मंदिर की स्थापना वेदव्यास जी ने की थी. आज से 20 साल पहले ये डकैतों का मंदिर हुआ करता था. यहां सबकी मनोकमाएं पूरी होती हैं डकैतों से जनता को कभी कोई परेशानी नहीं हुई. डकैत किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते थे.
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