सहारनपुर डीएम ने लगाई दारुल उलूम की वेबसाइट पर रोक, जानें क्या है मामला?
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सहारनपुर डीएम ने लगाई दारुल उलूम की वेबसाइट पर रोक, जानें क्या है मामला?

दारुल उलूम देवबंद के फतवे और बच्चों के मुद्दे पर भ्रमित करने वाले बयान के मामले में पिछले दिनों काफी विवाद मचा है. इस मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से सहारनपुर डीएम को कार्रवाई करने को कहा गया ..

सहारनपुर डीएम ने लगाई दारुल उलूम की वेबसाइट पर रोक, जानें क्या है मामला?

नीना जैन/ सहारनपुर: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले दारुल उलूम की वेबसाइट मामले में बड़ी कार्रवाई की गई है. सहारनपुर के डीएम ने दारुल उलूम की वेबसाइट पर रोक लगा दी है. दारुल उलूम देवबंद की ओर से जारी फतवे को बाल अधिकारों के खिलाफ माना गया है. जिसके बाद संस्था की वेबसाइट को बंद कराया जा रहा है. 

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सहारनपुर डीएम को कार्रवाई करने का आदेश
दारुल उलूम देवबंद के फतवे और बच्चों के मुद्दे पर भ्रमित करने वाले बयान के मामले में पिछले दिनों काफी विवाद मचा है. इस मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से सहारनपुर डीएम को कार्रवाई करने को कहा गया था. इस नोटिस में कहा गया था कि दारुल उलूम अपनी वेबसाइट पर फतवा जारी कर रहा है या भ्रामक बयान दे रहा है. ये पूरी तरह से गलत है. 

एनसीपीआर में शिकायत दर्ज 
बच्चों और उनकी शिक्षा के मामलों पर जारी फतवे को लेकर एनसीपीआर में शिकायत दर्ज कराई गई थी. इस मामले में सहारनपुर डीएम को दारुल उलूम की वेबसाइट की जांच कराने, भ्रामक सामग्री हटाने और संविधान, आईपीसी, किशोर न्याय अधिनियम 2015 और शिक्षा के अधिकार के प्रावधान के तहत कार्रवाई कर 10 दिनों में रिपोर्ट भेजने को कहा गया था. अब वेबसाइट को बंद कराए जाने का मामला सामने आ रहा है.

जारी किया गया था फतवा
बता दें कि दारुल उलूम की तरफ से गोद लिए हुए बच्चों को लेकर फतवा जारी किया गया था. इस फतवे में कहा गया था कि गोद लिए गए बच्चे को असल बच्चे का दर्जा नहीं दिया जा सकता. बच्चा गोद लेना गैरकानूनी नहीं है. फतवे में कहा गया कि केवल बच्चे को गोद लेने से वास्तविक बच्चे का कानून उस पर लागू नहीं होगा. इस फतवे में कहा गया कि ये जरूरी होगा कि मैच्योर होने के बाद शरिया पर्दा का पालन करे. गोद लिए गए बच्चे को संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलने और किसी भी मामले में उसके उत्तराधिकारी नहीं होने की भी बात भी कही गई. जिसके बाद फतवे पर विवाद शुरू हो गया और इसे बच्चों के अधिकार हनन से जोड़कर देखा गया.

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