त्रिपुरेश त्रिपाठी/देवरिया:  सत्र की शुरुआत अप्रैल से हो चुकी है लेकिन जुलाई आ जाने के बाद भी बच्चों के हाथों में किताबें नहीं आ सकी हैं. शिक्षा विभाग का सरकारी स्कूलों में बच्चों को किताबें मुहैया कराने का दावा अभी भी कोरा साबित हो रहा है. यह हाल तब देखने को मिल रहा है जब किताबों के वितरण की जिम्मेदारी निभाने वालों पर शासन द्वारा लगातार नकेल कसी जा रही है. बड़ा सवाल इसलिए खड़ा होता है कि आखिर बिना किताबों के बच्चों कैसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल करेंगे.


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आपको बता दें नए सत्र का सेशन अप्रैल माह से ही शुरू हो गया है जबकि जुलाई माह बीतने वाला है और अब तक सरकारी स्कूलों में किताबें नहीं पहुंची हैं. जिस कारण बच्चों को पढ़ने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. छात्र पुरानी किताबों से ही काम चला रहे हैं. जब जी मीडिया की टीम ने प्राथमिक स्कूल की तरफ रुख किया तो अधिकांश छात्र सिर्फ कॉपी लेकर स्कूल आए थे. उनके पास किताबे नहीं थीं. वहीं कुछ स्कूलों में अध्यापकों ने अपने पास से छात्रों को कॉपी दिया था. 



छात्रों का कहना है कि किताब नहीं मिलने से उन्हें परेशानी हो रही है. वहीं, अध्यापकों का कहना है कि दिक्कतें कुछ हैं, ब्लैकबोर्ड पर पढ़ा रहे हैं, पुरानी किताबों से काम चला रहे हैं. इस पर जब हमने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से बात की तो उनका कहना था कि कोई दिक्कत नहीं है. पुरानी किताबों से पठन-पाठन कार्य चल रहा है, हफ्ते दस दिन के अंदर नई किताबों की आपूर्ति हो जाएगी. 



अब सवाल इस बात का है कि अप्रैल से नया सेशन चल रहा है और चार महीने बीतने जा रहे हैं लेकिन अभी तक किताबों की आपूर्ति नहीं हुई है. ऐसे में नई किताबों का क्या मतलब रह गया, आधा सेशन बीतने जा रहा है और बच्चे किताबो का इंतजार कर रहे हैं. बच्चों का इंतजार सरकारी सिस्टम पर सवाल खड़ा कर रहा है. 


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