ज्ञानवापी आज मस्जिद, कभी यहां होती थी पूजा-अर्चना? जानें क्या कहता है इतिहास?
दरअसल साल 1809 में मस्जिद परिसर के बाहर नमाज पढ़ने को लेकर सांप्रदायिक दंगे हुए थे..... साल 1984 में दिल्ली की धर्म संसद में हिंदू पक्ष को अयोध्या काशी और मथुरा पर दावा करने को कहा गया था...... 1991 में वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर कर ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने के साथ ही मस्जिद को ढहाने की मांग की गई..
शुभम विश्वकर्मा/वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर और उसी परिक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद का केस भले ही साल 1991 से वाराणसी की स्थानीय अदालत में चल रहा हो और फिर हाईकोर्ट के आदेश के बाद मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही है. ताजा विवाद मस्जिद परिसर के अंदर मौजूद श्रृंगार गौरी की रोज पूजा-अर्चना की मांग को लेकर है. कोर्ट ने पूजा की मांग वाली याचिका के बाद मस्जिद में आर्कियोलॉजिकल सर्वे का आदेश दिया है. इस रिपोर्ट में बताएंगे कि कैसे ये विवाद शुरू हुआ और कब से शुरू हुआ.
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मंदिर के विस्तारीकरण के समय हुआ था विवाद
इस बार विवाद का कारण काशी विश्ननाथ धाम नहीं बल्कि मस्जिद परिसर के अंदर मौजूद श्रृंगार गौरी का मंदिर है. पिछली बार विवाद उस समय हुआ जब मंदिर का विस्तारिकरण किया जा रहा था. खैर मंदिर मस्जिद का मामला ठंड़ा पड़ा और मंदिर का भव्य निर्माण हुआ. अब एक बार फिर से ये मंदिर और मस्जिद का मामला सुर्खियों में बना हुआ है. दरअसल विवाद यह है कि मस्जिद परिसर के अंदर माता श्रृंगार गौरी का एक मंदिर है. इसी मंदिर में रोज पूजा-अर्चना की मांग को लेकर एक याचिका दाखिल की गई है. कोर्ट ने पूजा की मांग वाली याचिका के बाद मस्जिद में आर्कियोलॉजिकल सर्वे का आदेश दे दिया, जिसके बाद सर्वे की टीम मस्जिद परिसर में पहुंची और इसी के साथ विवाद अपने चरम पर पहुंच गया..
मंदिर के इतिहास के साथ जानेंगे इसकी कहानी
अब इस मस्जिद और मंदिर के बीच का विवाद क्या है इसे जानने के लिए हम आपको इतिहास में लेकर चलते हैं. साल 1993 से पहले माता श्रृंगार गौरी के मंदिर में प्रतिदिन पूजा-अर्चना होती थी. ये पूजा-पाठ पूरे विधि विधान से होती थी. यहां लोग दर्शन करने के लिए आते थे और दर्शन के बाद मंदिर की परिक्रमा करते थे.
परिक्रमा और पूजा के लिए क्यों बंद किया गया मंदिर?
दरअसल साल 1809 में मस्जिद परिसर के बाहर नमाज पढ़ने को लेकर सांप्रदायिक दंगे हुए थे. साल 1984 में दिल्ली की धर्म संसद में हिंदू पक्ष को अयोध्या काशी और मथुरा पर दावा करने को कहा गया था. 1991 में वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर कर ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने के साथ ही मस्जिद को ढहाने की मांग की गई. इन कारणों के चलते साल 1993 में सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए माता श्रृंगार गौरी के परिक्रमा को बंद कर दिया गया. परिक्रमा के बंद होते ही इस मंदिर में दर्शनार्थियों का दर्शन-पूजन भी पूरी तरह से बंद हो गया.
1993 से साल 2004 तक चलता रहा ये सिलसिला
2004 में कुछ हिंदू संगठनों ने मंदिर के दर्शन पूजन को लेकर आवाज उठाई और तय हुआ कि माता श्रृंगार गौरी के इस धाम को कम से कम एक दिन के लिए खोला जाए.
श्रद्धालुओं की मांग के बाद से इस मंदिर को खोला गया
मां के मंदिर को मस्जिद के दक्षिणी भाग के दीवार पर रखा गया और पूजा अर्चना के साथ शुरुआत की गई. शुरू में इस धाम में हिंदू नववर्ष यानी कि नवरात्री के चौथे दिन पूजा शुरू की गई, जिसे आगे चल कर प्रतिदिन किया जाने लगा..अब सवाल ये है कि जब दर्शन और पूजा हर दिन किया जा सकता है तो याचिका किस बात की..?
कोर्ट में पूजा के लिए दाखिल हुई थी याचिका
18 अगस्त 2021 को 5 महिलाएं ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश और हनुमान जी समेत परिसर में मौजूद अन्य देवताओं की रोजाना पूजा-अर्चना की इजाजत मांगते हुए हुए कोर्ट पहुंची थीं. ये याचिका विधिवत पूजा की थी यानी कि बिल्कुल वैसे ही जैसे पहले हुआ करती थी. मामले को संज्ञान में लेते हुए कोर्ट ने 18 अगस्त को मंदिर की हालत जानने के लिए 3 दिन के मुआयना यानी कि प्रारंभिक जांच-पड़ताल का आदेश दे दिया गया. 18 अगस्त के बाद से दो बार अलग-अलग कोर्ट कमिश्नरों की नियुक्ति की गई लेकिन किन्ही कारणों से इस परिसर की वीडियोग्राफी सहित जांच पड़ताल न हो सकी.
कोर्ट ने दिया था वीडियोग्राफी और सर्वे का आदेश
26 अप्रैल 2022 को वाराणसी सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देव विग्रहों के सत्यापन के लिए वीडियोग्राफी और सर्वे का आदेश दिया था. कोर्ट के आदेश के बावजूद मुस्लिम पक्ष के भारी विरोध की वजह से यहां 6 मई को शुरू हुआ और 3 दिन के सर्वे का काम पूरा नहीं हो पाया.
दोनों पक्ष कर रहे हैं ये बात
मुस्लिम पक्ष सर्वे के लिए मस्जिद के अंदर जाने को गलत बता रहा है. मुस्लिम पक्ष के वकील अभय यादव ने कहा कि हम यह मानते हैं कि श्रृंगार गौरी की प्रतिमा है लेकिन वह मस्जिद की पश्चिमी दीवार के बाहर है. ऐसे में मस्जिद में जाकर सर्वे की जरूरत ही नहीं है. वहीं हिंदू पक्ष का कहना है कि शृंगार देवी के अस्तित्व के प्रमाण के लिए पूरे परिसर का सर्वे जरूरी है. इस विवाद को लेकर कोर्ट ने 11 मई की तारीख तय की, जिस पर दोनों ही पक्ष की निगाहें बनी हुई है.
आपको बता दें कि ऑर्डर यानी कि आदेश और Decision यानी कि फैसले में फर्क होता है. मंदिर-मस्जिद जैसे मामलों में कोर्ट फैसले से पहले आदेश यानी कि आर्डर जारी करती है. आर्डर अंतिम निर्णय नहीं होता है और इस पर दोनों पक्षों मे से कोई भी आपत्ति दर्ज करा सकता है जबकि Decision यानी फैसला अंतिम होता है जिसके बाद कोई सुनवाई नहीं होती.
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