हमीरपुर में एक व्यक्ति जिनकी उम्र 105 साल है, उन्होंने ऐसा काम कर दिखाया है जिससे लोग उन्हें बुंदेलखंड का 'दशरथ मांझी' और 'भागीरथ' कह रहे हैं. दरअसल बैजनाथ बुंदेलखंड में पानी की किल्लत से इतने परेशान हुए कि उन्होंने खुद ही तालाब खोदने की ठान ली. बस फिर क्या था. एक हजार से अधिक दिनों तक लगातार फावड़ा चलाकर उन्होंने वह कर दिखाया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी.
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रविंद्र निगम/हमीरपुर: बुंदेलखंड को साहस और संघर्ष का प्रतीक कहा जाता है. यहां ऐसी प्रतिभाएं हैं जिन्होंने अपने संघर्षों से कामयाबी की नई लकीर खींची है. यदि हौसलों में उड़ान हो तो उम्र बाधा नहीं बनती है. यह बात बुंदेलखंड के दशरथ मांझी और भागीरथ कहे जाने वाले बैजनाथ राजपूत ने साबित कर दिखाई है. बैजनाथ राजपूत की उम्र 105 साल है. उम्र के इस पड़ाव में आकर भी उन्होंने अकेले दम पर तीन एकड़ का तालाब खोद डाला. ऐसा उन्होंने बुंदेलखंड में सूखे की समस्या को देखते हुए किया है.इस काम में उन्हें पांच साल का समय लगा.
हमीरपुर उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव ब्रह्मानंद धाम बरहरा के रहने वाले बैजनाथ राजपूत का जन्म 1914 में हुआ था. होमगार्ड से सेवानिवृत्त होकर उन्होंने गांव को अपना ठिकाना बनाया. यहां खेती का काम संभाला. एक कुटिया बनाई और उसी में रहने लगे. इस बीच सूखे की समस्या ने कुछ इस कदर चुनौतियां खड़ी हुई कि खुद ही उसका समाधान खोजने लगे. कहीं से कोई मदद मिलती न देख खुद ही तीन एक का तालाब बना डाला.
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खेतों में आई हरियाली
बैजनाथ के इस प्रयास से तालाब में बरसात का पानी संग्रहित करने में मदद मिलती है. इससे जल संरक्षण के साथ ही भूमि का जल स्तर बढ़ रहा है. इसके अलावा आसपास के जो खेत पानी के बिना सूख रहे थे, वहां अब फसलों की हरियाली नजर आती है. तालाब में जल संरक्षण से उनके बाग भी लहलहा रहे हैं. बाग में आम और अमरुद ही नहीं नींबू, इलायची, करौंदा और आंवला जैसे पेड़ भी लगे हैं. खास बात यह है अपने खेतों से तैयार फल और सब्जियों को वह गांव में ही बांट देते हैं.
प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा
उम्र का शतक पार कर चुके बैजनाथ अपनी सेहत का राज योग और आयुर्वेद को देते हैं. उनका कहना है कि मैं अपनी दिनचर्या व्यवस्थित रखने के साथ योग जरुर करता हूं. छोटी-मोटी बीमारियों के वक्त गिलोय का काढ़ा, नीम पत्ती, तुलसी की पत्तियों से बनी दवाओं का सेवन करते हैं.
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