यूपी के इस शहर की बात निरालीः `काला नमक` चावल को क्यों कहा जाता है `बुद्ध का महाप्रसाद`? जानें खासियत
आजकल दुनिया एक बार फिर जैविक खेती की ओर जा रही है. `काला नमक` चावल की विशेषता ही यह है कि इसे जैविक खेती के जरिए ही उगाया जाता है. वैसे तो भारत में सुगंधित चावलों की कई किस्में पाई जाती हैं, लेकिन `काला नमक` चावल की बात ही अलग है. इसकी विशेषता सभी से हटकर है.
सिद्धार्थनगरः अगर आप उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से जुड़ी वहां की खासियत और ऐतिहासिक जानकारियों को जानने में दिलचस्पी रखते हैं, तो यह जानकारी आपको जरूर अच्छी लगेगी. यूपी में आज भी ऐसे अनगिनत किस्से दफन हैं, जिनके बारे में शायद आप जानते भी नहीं होंगे. इनमें मुगलकालीन किस्से भी शामिल हैं. ये किस्से उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर हैं. यूपी के जिलों की खास बात यह है कि हर जिले की एक अलग विशेषता है, जो सभी जिलों को एक-दूसरे से अलग पहचान देती है.
इसी क्रम में आज हम सिद्धार्थनगर के बारे में बात करेंगे. सिद्धार्थनगर को 'काला नमक' चावल के लिए जाना जाता है. चावल की यह किस्म अपने गुणों के लिए प्रसिद्ध है. सिंगापुर और दुबई में भी 'काला नमक' चावल की डिमांड है. आज जानेंगे सिद्धार्थनगर के चावल की इस किस्म और इसके उद्योग से जुड़ी हर एक दिलचस्प बात...
'काला नमक' चावल के लिए मशहूर है सिद्धार्थनगर
'काला नमक' चावल एक प्रकार का सुगंधित और मुलायम चावल है. इसके विशेष गुणों के कारण इसकी एक अलग पहचान है. सिद्धार्थनगर जिले में कई जगहों पर इसका उत्पादन किया जाता है. यहां वर्तमान समय में कुल 45 चावल उद्योग की इकाइयां संचालित की जा रही हैं. यहां से तैयार किया गया चावल, प्रदेश और राष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जाता है. 'काला नमक' चावल कि खुशबू के लिए कहा जाता है कि यह अगर किसी एक घर में बनाया जाता है, तो इसकी खुशबू पूरे गली-मोहल्ले तक बिखर जाती है.
इसके अलावा यह कई तरह से फायदेमंद होता है. जैसे इसमें कई सारे औषधीय गुण भी मौजूद हैं. भरपूर पैदावार होने के कारण यह किसानों के लिए भी काफी फायदेमंद है. इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि चावल की इस किस्म को महात्मा बुद्ध का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है.
जानें क्यों कहलाता है महात्मा बुद्ध का महाप्रसाद
कहा जाता है कि जब चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था, तब 5वीं ईसा पूर्व के बौद्ध साहित्य उसके हाथ लगे थे, जिसके बारे में उसने बाद में लिखा. उसने अपनी यात्रा वृतांत में बताया है कि महात्मा बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद जब पहली बार कपिलवस्तु पहुंचें, तो गांव वालों ने उनसे 'प्रसाद' की मांग की. तब बुद्ध ने उन्हें 'काला नमक' चावल आशीर्वाद स्वरुप देकर दलदली जगह में बोने के लिए कहा. गौतम बुद्ध ने कहा, "चावल में विशिष्ट सुगंध होगी, जो हमेशा लोगों को मेरी याद दिलाएगी". यही वजह बताई जाती है कि यह धान कहीं और बोया जाता है, तो अपनी गुणवत्ता और सुगंध खो देता है.
'काला नमक' बढ़िया क्वालिटी वाले चावल की किस्म है
काले रंग की भूसी होने के कारण यह काला नमक चावल के नाम से जाना जाता है. करीब 600 ईसा पूर्व या 'बुद्ध काल' से इस चावल का इतिहास है. चावल की यह किस्म महात्मा 'बुद्ध का महाप्रसाद' कहलाती है, इसलिए इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. प्राचीन समय में यह चावल मूल रूप से भारत के उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल के तराई भागों में उगाया जाता है.
इसमें यूपी के आज का सिद्धार्थनगर, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, बस्ती, गोंडा और कुशीनगर जिले शामिल हैं. वैसे तो भारत में सुगंधित चावलों की कई किस्में पाई जाती हैं, लेकिन 'काला नमक' चावल की बात ही अलग है. इसकी विशेषता सभी से हटकर है.
जैविक खेती के लिए उपयुक्त है यह अति प्राचीन किस्म
आजकल दुनिया एक बार फिर जैविक खेती की ओर जा रही है. 'काला नमक' चावल की विशेषता ही यह है कि इसे जैविक खेती के जरिए ही उगाया जाता है. धान की इस विशेष किस्म को उर्वरकों और कीटनाशकों की मदद से ही नहीं उगाया जाता है. जिससे इसकी खेती में किसानों की जेब का बोझ कम रहता है और फसल की लागत भी बहुत कम हो जाती है.
वहीं, इसकी पैदावार उसी इलाके में धान की दूसरी किस्मों से 40- 50 प्रतिशत ज्यादा होती है. इसके उत्पादन के लिए कम पानी लगता है. इसके उत्पादन में एक किलो चावल के लिए 1500 से 2500 लीटर पानी लगता है, जबकि अन्य किस्मों के लिए 3 से 4 हजार लीटर पानी की जरूरत होती है.
'काला नमक' चावल के फायदे हैं अनेक
इस चावल में एंथोसायनिन जैसे एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं, जो दिल की बीमारियों की रोकथाम में मदद करते हैं. यह चावल आयरन, जिंक और विटामिन से भरपूर होता है. इसके अलावा इसमें प्रोटीन भी पाई जाती है. यह चावल ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने और खून से जुड़ी समस्याओं को ठीक करने में मददगार पाया गया है. इसमें मौजूद फाइबर मोटापे और कमजोरी से भी बचाता है. पोषक तत्वों से भरपूर होने के चलते विदेशों में इसकी मांग बढ़ गई है.
2013 में मिला जीआई टैग
इस चावल को 2013 में जियोग्राफिकिल इंडिकेटर (जीआई ) टैग मिलने से सिद्धार्थनगर और आसपास के जिलों को इसकी मान्यता मिली. जिनमें पूर्वांचल के महाराजगंज, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, संत कबीरनगर, बलरामपुर, बहराइच, बस्ती, कुशीनगर, गोंडा, बाराबंकी, देवरिया और गोंडा जिले शामिल हैं. गोविंद बल्लभ पंत यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर एचएन सिंह की एक स्टडी के मुताबिक, बासमती के अपेक्षा 'काला नमक' के उत्पादन में लागत से लगभग दोगुना से ज्यादा लाभ है.
सिद्धार्थनगर परिचय
दिसंबर 29, 1988 को सिद्धार्थनगर जिले की स्थापना हुई थी. जिले की सीमाएं नेपाल से जुड़ी हुई हैं. नदी के तट से सिलिका रेत को खनिज के तौर पर इकठ्ठा किया जाता है. इस जिले की जमीन का अधिकांश हिस्सा उपजाऊ है. यहां पर चावल, गेहूं, सरसों और आलू की फसलों की खेती होती है, यहां पर प्रमुख रूप से 'काला नमक' चावल प्रसिद्ध है.
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