Varanasi Holi 2022: मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन माता पार्वती का गौना कराने बाद देवता और भक्तों के साथ महादेव होली खेलते हैं, लेकिन भूत-प्रेत, पिशाच आदि के साथ नहीं खेल पाते हैं. इसलिए अगले दिन बाबा मणिकर्णिका घाट पर नहाने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता भस्म से होली खेलते हैं.
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Varanasi Holi 2022: पूरे देश के हर मंदिरों में हर्षोल्लास के साथ रंगभरी एकादशी पर्व पर लोग भगवान के संग होली खेलते हैं. सोमवार यानी 14 मार्च को रंगभरी एकादशी थी. इसके दूसरे दिन यानी की मंगलवार को एक शहर में ऐसी होली खेली जाती है. जिसे आप कभी सोच भी नहीं सकते हैं. इस शहर में श्मशान पर चिताओं के भस्म से होली खेली जाती है. यह होली है उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर काशी की, जहां की परंपराएं पूरे देश से काफी अलग और अनोखी है. काशी के महाश्मशान घाट पर मसाने की होली खेली जाती है. मान्यता है कि इस दिन बाबा विश्वनाथ दिगंबर रूप में अपने भक्तों संग होली खेलते हैं.
ये है मान्यता है
आपको बता दें, मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन माता पार्वती का गौना कराने बाद देवता और भक्तों के साथ महादेव होली खेलते हैं, लेकिन भूत-प्रेत, पिशाच आदि के साथ नहीं खेल पाते हैं. इसलिए अगले दिन बाबा मणिकर्णिका घाट पर नहाने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता भस्म से होली खेलते हैं.
दुनिया का इकलौता शहर
काशी के मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्त महाश्मशान में जलने वाले इंसानों के राख से भस्म होली खेलते हैं. होली का त्योहार रंग-गुलाल, प्यार का उत्सव है. यूपी के साथ ही पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में होली कई तरह से मनाई जाती है, लेकिन मोक्ष नगरी काशी की होली बिल्कुल अलग, अद्धभुत, अकल्पनीय है. बनारस दुनिया का इकलौता ऐसा शहर है, जहां धधकती चिताओं के बीच भस्म होली खेली जाती है.
24 घंटे घाटों पर जलती हैं चिताएं
बनारस की होली भी बनारस वालों की तरह अड़भंगी है. इस शहर में मृत्यु भी उत्सव है. रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन बाबा मशाननाथ की विधि-विधान पूजा के बाद घाट पर जलती चिताओं के बीच घंटों भस्म से होली खेली जाती है. आपको बता दें, बनारस के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर सदियों से चिताओं की आंच कभी ठंडी नहीं पड़ी है. 24 घंटे घाटों पर चिताओं की आग जलती रहती है.
दिगंबर खेलें मसाने में होरी
काशी की विश्व प्रसिद्ध महाश्मशान होली देखने के लिए दुनिया भर से लोग यहां आते हैं. घाट पर इतनी भीड़ रहती है की लोगों के पैर रखने की भी जगह नहीं रहती है. नजारा ऐसा दिखता है कि जैसे भूतों के भगवान महादेव खुद होली खेल रहे हों. इस बार भी वाराणसी के घाटों पर चिताओं के भस्म की होली खेली जा रही है.ऐसे में काशी के घाट हर-हर महादेव के जयकारों से गूंज उठी है. भस्म से होली खेलने के साथ ही गंगा घाट की फिजाओं में "खेलें मसाने में होरी दिगंबर खेलें मसाने में होरी" के बोल सुनाई देते हैं.
महादेव का प्रसाद
बता दें, भांग और ठंडाई के बिना बनारसी होली अधूरी मानी जाती है.यहां भांग को महादेव का प्रसाद मानते हैं. होली पर यहां भांग का खास इंतजाम किया जाता है. भांग, ठंडाई की मिठास और ढोल-नगाड़े की थाप पर जब काशी के लोग झूम कर नाचते हैं, तो आस-पास से जाते हुए लोग खुद को इस होली में शामिल किए बिना रह नहीं पाते हैं.
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