Holi History Hardoi (आशीष द्विवेदी): रंग पर्व होली का त्योहार देश में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. होली को मनाने से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित हैं, कहा जाता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत के इस त्योहार की शुरुआत यूपी के हरदोई जिले से ही हुई थी. जिसके पहले हिरणाकश्यप की नगरी के नाम से जाना कहा जाता था. मान्यताओं के मुताबिक यहां आज भी वह कुंड मौजूद है, जिसमें होलिका प्रह्लाद को लेकर बैठी थीं. 


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सतयुग में हिरण्यकश्यप नाम का राजा यहां पर राज करता था. भगवान विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध कर दिया था. जिसके चलते वह भगवान विष्णु से वैर मानता था जबकि हिरण्यकश्यप का बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु की भक्ति में ही लीन रहता था. उसने अपने पुत्र को तमाम यातनाएं दी और मारने का प्रयत्न भी किया. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि शीतल चादर ओढ़ने के बाद वह नहीं जलेगी.उसने होलिका से प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठने के लिए कहा भगवान विष्णु के चमत्कार से प्रहलाद तो बच गए लेकिन होलिका अग्नि कुंड में जलकर भस्म हो गयी. जिसके बाद से ही होली की शुरुआत हुई.


धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि ऋषि कश्यप और दिति के पुत्र हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष अधर्मी और राक्षसी प्रवृत्ति के थे. ब्रह्मा जी की तपस्या के बाद अजेय और अमरता का वरदान पाकर हिरण्याक्ष का आतंक बढ़ा तो भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर उसका वध कर दिया. जिसके चलते हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से शत्रुता मानने लगा. हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी की कड़ी तपस्या की और ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसके प्राणों को कोई डर रहेगा.ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करवा खुद को अमर समझने लगा और उसका आतंक बढ़ता गया. 


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हिरण्यकश्यप ने इंद्र का सिंहासन छीन लिया और अपना आधिपत्य जमाकर तीनों लोक में सभी को प्रताड़ित करने लगा. भगवान विष्णु के उसके भाई हिरण्याक्ष का वध करने के कारण वह उनसे शत्रुता मानता था और बदला लेना चाहता था. उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा तक बंद करा दी थी जबकि उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था और भगवान की भक्ति में ही लीन रहता था. अपने पुत्र प्रहलाद में भगवान विष्णु की आस्था देखकर वह अपने पुत्र से भी नफरत करने लगा. उसने प्रहलाद की हत्या कराने के लिए अनेक जतन किये और उसे तमाम यातनाएं दी.


हिरण्यकश्यप के प्रह्लाद को तमाम यातनाएं देने के बाद भी भगवान विष्णु की कृपा से उसका बाल बांका ना हुआ. जिसके चलते होलिका हिरण्यकश्यप के पास पहुंची और प्रहलाद को अग्नि कुंड में लेकर बैठने का आग्रह किया. उसने किराना कश्यप को ब्रह्मा जी की वरदानी शीतल चादर का हवाला दिया. उसने कहा कि वह प्रहलाद को लेकर अग्निकुंड में बैठ जाएगी, जिससे वह जलकर भस्म हो जाएगा और उसे कोई नुकसान नहीं होगा. कहा जाता है कि विशाल रूप में लकड़ियां और घास फूस इकट्ठा की गई थीं. जिसके बाद होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि कुंड में बैठ गयी. भगवान विष्णु कृपा से ब्रह्मा जी की वरदानी शीतल चादर उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गई प्रहलाद तो बच गए लेकिन होलिका उसी आग में जलकर भस्म हो गयी. 


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हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु से नफरत के चलते अपनी राजधानी का नाम हरिद्रोही रखा था।भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की और नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध कर उसके अत्याचार से सभी को मुक्ति दिलाई थी. भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा लेने के लिए दूसरा अवतार बामन के रूप में लिया था. जिसके बाद से ही भगवान विष्णु के 2 अवतार लेने की वजह से ही इस जगह को हरिदोई कहा जाने लगा और फिर धीरे-धीरे इसका अपभ्रंश हरदोई हो गया. 


भगवान विष्णु के अनन्य भक्त प्रहलाद को लेकर होलिका जिस कुंड में बैठी थी,वह देखरेख के अभाव में जीर्ण शीर्ण हो चुका था. तत्कालीन जिलाधिकारी ने इसका जीर्णोद्धार कराया. साथ ही कुंड के बीचो बीच खंबे के ऊपर नरसिंह भगवान की मूर्ति भी स्थापित कराई, जिसमें भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में हिरण्यकश्यप का वध करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इसी कुंड में होलिका प्रहलाद को लेकर बैठी थी भगवान के चमत्कार से प्रहलाद की जान बच गई थी और होलिका जलकर भस्म हो गई थीं.