Chandrayaan 3 Launch : 14 जुलाई भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जाएगा. इसरो का मून मिशन 'चंद्रयान 3' चांद के लिए उड़ान भर चुका है.चंद्रमा की सतह पर अपनी छाप छोड़ने के लिए इसरो का मून मिशन चंद्रयान 3 अंतरिक्ष के लिए रवाना हो चुका है.इसरो ने इसका सफल प्रक्षेपण किया है. आंध्रप्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से यह लॉन्च किया गया है.चंद्रयान-3 को फेल्यर बेस्ड मॉडल कहा जा रहा है यानी कब और क्या गड़बड़ी की आशंका रहती है उससे निपटने की तैयारी कई गई  है.चंद्रयान 3 की लैंडिंग का क्षेत्र इस बार 50 गुना ज्यादा बड़ा है. इस  बार लैंडर की बनावट ऐसी रखी गई है कि उसका एक पाया दो मीटर ऊंची चट्टान पर पड़ जाए, तो भी वह असंतुलित होकर ढह नहीं जाएगा. 


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इंसानी जीवन की संभावनाएं पता लगाएगा


विशेषज्ञों के मुताबिक पिछले 50 सालों में कई मिशन प्लान और एग्जिक्यूट किए गए हैं, लेकिन चंद्रयान-2 ने पहली बार चांद पर पानी की खोज की. भले ही उसका लैंडर बाहर सुरक्षित नहीं आ पाया पर इस बार हम आश्वस्त हैं कि वो ज़रूर होगा. बताया जा रहा है कि कि पिछली बार लैंडर के लिए जिस टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया था, उसमें अब बहुत बदलाव हुए हैं. इस मिशन में चंद्रयान का एक रोवर निकलेगा (एक छोटा सा रोबोट) जो कि चांद की सतह पर उतरेगा और दक्षिणी ध्रुव में इसकी पोजिशनिंग होगी. यहीं पर रोवर इस बात की खोज करेगा कि चांद के इस हिस्से में उसे क्या-क्या ख़निज,पानी आदि मिल सकता है. इस खोज से मिले निष्कर्ष से तय होगा कि भविष्य में चांद में कॉलोनियां बसाई जा सकती हैं या नहीं.


जोखिम भी कम नहीं


एक एक्सपर्ट रिपोर्ट के मुताबिक चूंकि चांद पर जब आप कोई यान भेजा जाता है, तो पूरी तरह से उसका नियंत्रण कंप्यूटर्स के पास होता है. वह पूरी तरह से आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस की मदद से काम करता है.
चांद पर कोई जीपीएस नहीं है. जैसे हम धरती पर कोई गाड़ी चलाते हैं तो जीपीएस के माध्यम से कई जानकारियां हमें मिल जाती हैं. ड्राइवरलेस कारें जीपीएस तकनीक से ही काम करती हैं लेकिन चांद पर ये काम नहीं करती. वहां आपको पता नहीं चलेगा कि आप कहां पर हैं, किस हिस्से में हैं, कितनी दूर हैं? इन सभी चीज़ों का अनुमान उसे ऑनबोर्ड सेंसर से लगाना है, तो इससे दो-तीन नई मुश्किलें पैदा हो जाती हैं. अच्छी बात ये है कि इस बार इन सभी चीज़ों का ध्यान रखा गया है.


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