Jaunpur: मंदिर को लेकर दो गांवों की लड़ाई में जब खुद भोलेनाथ ने किया फैसला, शिवलिंग में दिखता है बाबा का स्वरूप
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में स्थापित त्रिलोचन महादेव के मंदिर का अपना इतिहास है.
अजीत सिंह/जौनपुर: उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में स्थापित त्रिलोचन महादेव के मंदिर का अपना इतिहास है. बताया जाता है कि यहां पर खुद बाबा भोलेनाथ जमीन भेदकर प्रकट हुए थे. बडे बुजुर्ग और मंदिर से जुडे़ लोग बताते हैं कि जिस स्थान पर आज विशाल मंदिर स्थापित है वहां पहले जंगल हुआ करता था. चरवाहे अपने जानवरों को जंगल में खाने-पीने के लिए छोड़ देते थे.
खुदाई में मिला शिवलिंग
एक किसान की गाय रोज जंगल में जाती थी और लौटती थी. वह दूध नही देती थी. एक दिन चरवाहे ने देखा कि मेरी गाय एक स्थान पर जाकर खुद से अपना दूध गिरा रही थी. उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ. अपना भ्रम दूर करने के लिए दूसरे दिन भी गाय को जंगल में छोड़ा. तो चरवाहा देखता है कि वह सीधे जाकर उसी स्थान पर जाकर अपना दूध गिराती है. चरवाहे ने यह बात आकर गांव में बताई. गांववाले तुरन्त समझ गये कि वहां पर जरूर कुछ रहस्य छिपा हुआ है.अगले दिन सुबह भारी संख्या में ग्रामीणों ने वहां पहुंचकर खुदाई का काम शुरू किया तो एक शिवलिंग मिला.
दो गांवों के बीच मंदिर को लेकर विवाद
शिवलिंग मिलने के बाद से वहां पर पूजा-अर्चना शुरू हो गई. आसपास के गांव के लोगों ने मिलकर एक मंदिर की स्थापना कराई. कुछ दिन बाद यहां के मंदिर को लेकर समीपवर्ती दो गांवों, रेहटी और डिंगुरपुर में विवाद था कि यह मंदिर किस गांव की सरहद के भीतर है. कई पंचायतें हुई किंतु बात नहीं बनी और नौबत मारपीट और खून-खराबे तक आ गई. दोनों गांवों के बुजुर्गो ने फैसला किया कि जब वे जगत स्वामी हैं तो यह फैसला भी उन्हीं को करना है कि यह मंदिर किस गांव की सरहद के अंदर है.
ताला खोलने पर गांव वाले रह गए दंग
दोनों पक्षों ने मंदिर को बाहर से बंद कर अपना-अपना ताला जड़ दिया फिर अपने घर चले गए. अगले दिन दोनों पक्षों के लोग मंदिर के सामने पहुंचे और ताला खुला तो लोगों की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. शिवलिंग स्पष्ट रूप से उत्तर दिशा में रेहटी ग्राम की तरफ झुक गया था. उसी रूप में शिवलिंग आज भी है, तभी से उस शिव मंदिर को रेहटी गांव में माना गया.
इस प्राचीन शिव मंदिर के सामने रहस्यमय ऐतिहासिक कुंड भी है जिसमें हमेशा जल रहता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस कुंड में स्नान करने से बुखार और चर्म रोगियों को लाभ मिलता है. इस कुंड का संपर्क जल द्वारा अंदर से सई नदी से है जो वहां से करीब 9 किमी दूर है. इस संबंध में कहा जाता है कि एक बार कुंड की खुदाई प्रशासन की तरफ से हुई थी, जिसमें सेवार नामक घास मिली. यह घास नदी में ही पायी जाती है, तभी से अनुमान लगाया कि कुंड का जल स्रोत अंदर ही अंदर जाकर सई-गोमती संगम स्थल से मिला हुआ है.
स्वयंभू हैं शिवलिंग
इस संबंध में मंदिर के व्यवस्थापक मुरलीधर ने बताया शिव मंदिर की धार्मिक मान्यताएं हैं. शिवलिंग स्वयंभू हैं, 60 से 70 के दशक में शिवलिंग की लंबाई 2 फुट था अब बढ़कर 3 फिट हो गया है. शिवलिंग में आंख-नाक और चेहरा भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. इस मंदिर के लिए लोगों में अटूट आस्था है. यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. खासकर सावन मास में लोगों की भीड़ बढ़ जाती है. ऐसी मान्यता है जो सच्चे मन से इनकी पूजा करते हैं उनकी मुंह मांगी मुरादें पूरी होती है.
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