Kushinagar: कुशीनगर के ऐसे 5 गांव जहां आजादी से पहले और बाद में मात्र 14 मुकदमे ही हुए दर्ज
Kushinagar: आज के समय जहां हर तरफ से संगीन अपराधों की खबरें आती हैं, तब कुशीनगर के ये पांच गांव मिसाल बनाते नजर आते हैं. इन गांवों में आजादी के पहले और आजादी के बाद अब तक केवल 14 मुकदमे दर्ज हुए हैं.
प्रमोद कुमार/कुशीनगर: देश में दिन प्रतिदिन चोरी, लूटमार, हत्या, दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराध व घटनाएं शहरों से लेकर गांवों तक होते हैं. ऐसे में इन्हें रोकने के लिए पुलिस थाने बनाये गए ताकि लोग अपनी शिकायत दर्ज करवा कर न्याय पा सकें, लेकिन उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में बीते 75 वर्षों में ऐसे पांच गांव हैं, जहां आजादी से पहले और आजादी के बाद भी आज तक सिर्फ 14 ही अपराध दर्ज हुए हैं.
नेबुआ नौरंगिया थाना क्षेत्र का गांव हाजिरी पट्टी जहां बुजुर्गों की गजब की सोच ने एकता का मिसाल पेश करते हुए जात पात भेदभाव खत्म करने के साथ ही गांव में होने वाले झगड़े भी थाने तक नहीं गए. आजादी के बाद में सिर्फ 1985 में पहली एक मारपीट की घटना हुई. थाने में दर्ज रिकॉर्ड भी इसकी गवाही देता है. जिसमें हाजिरी पट्टी गांव में मात्र एक ही मुकदमा दर्ज किया गया. गांव में करीब पांच सौ लोग रहते हैं, जिनमें दलित,गुप्ता जाति के लोग शामिल हैं, दलित की संख्या सबसे अधिक है. जिसमे अधिकांश लोग पढ़े लिखे हैं और खेती किसानी में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
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दूसरा नौगांवा गांव है, जहां आबादी मात्र 700 के करीब है. यहां सिर्फ 1979 में चोरी, 2013 में एनसीआर अपराध मात्र दर्ज हुआ है. वहीं तीसरा गांव विजयी छपरा गांव में 600 की आबादी है, यहां पर भी 75 वर्ष के अंदर सन 2000 में सिर्फ मारपीट, 2014 में मारपीट, 2016 में चालबाजी, 2017 में मारपीट और दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ तो चौथा गांव सिसवा में 2008 में मारपीट, 2011 में आपादा, 2020 में मारपीट, बसौली गांव में 1980 मे चोरी,1994 मे मारपीट, 2016 में मारपीट, 2021 मे अपहरण का अपराध दर्ज हुआ.
मुकदमा दर्ज न करने की वजह
गांव वालों की माने तो सिसवा गांव में बहुत कम ही व्यक्ति हैं, जो शिकायत लेकर थाने जाते हैं. गांव के ललन गुप्ता बताते हैं कि यहां सभी लोग मिलजुलकर रहते हैं. जात-पात का कोई भेदभाव नहीं है. हमारे गाव में कभी कोई कोई झगड़ा नहीं हुआ, अगर कोई विवाद हुआ भी तो गाव के ही संभ्रात लोगों ने दोनों पक्षों को समझाबुझाकर सुलझा दिया. जमीन का बंटवारा भी गांव के लोग ही करा देते हैं. लेखपाल सिर्फ राजस्व अभिलेखों में नाम दर्ज करने का काम करते हैं.
गांव के बुजुर्ग भी कहते है कि पुलिस 75 साल में गांवों में बहुत कम बुलाई गई है. पुराने वक्त में भी गांव में बुजुर्गों द्वारा पंचायत से विवाद का निस्तारण करना एक प्रथा की तरह था. जिस वजह से अंग्रेजी शासन काल मे भी न अंग्रेजी पुलिस की जरूरत पड़ी और न ही देश आजाद होने के बाद भारतीय पुलिस की. ऐसे में अधिकांश मामले गांव में ही बैठकर बुजुर्गों द्वारा हल किये जाने और गांव में अपराध का ग्राफ कम होना यह साबित करता है कि अगर अपराध पर पूर्णत रोकना चाहे तो क्या नहीं मुमकिन है.
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नेबुआ नौरंगिया थाने के प्रभारी क्या कहते हैं
नेबुआ नौरंगिया थाने के इंस्पेक्टर अतुल कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि यह बहुत अच्छी बात है कि थाना क्षेत्र में पांच ऐसे भी गांव हैं, जहां 75 वर्ष के अंदर सिर्फ 14 अपराध दर्ज हैं. थाना क्षेत्र में ऐसे गांव में रहने वाले लोगों की वजह से साप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा मिलता है और शाति व्यवस्था भी बनी रहती है. हमारी पहल है कि मेरे थाना क्षेत्र के अन्य गांवो को भी यह जागरूकता फैले और हमभी यही प्रयास कर रहे है कि लोग अपनी समस्या गांव के बुजुर्गों को बैठा कर गांव में ही इसका निस्तारण करें.
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