Lumpy Skin Disease: (एलएसडी) वायरस ने उत्तर प्रदेश के कई जिलों में दस्तक दे दी है. देश के आठ राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में लंपी वायरस से अब तक 7,300 से अधिक मवेशियों की मौत हो चुकी है. संक्रमण पर काबू पाने के लिए टीकाकरण अभियान में तेजी लाई गई है. इस रोग से सावधानी बरतने के लिए यूपी के सभी जिलों को अलर्ट किया गया है. यूपी के गोंडा और बलरामपुर जिले में इसके केस सामने आए हैं जिनकी रिपोर्टिंग दर्ज की गई. वहीं यूपी के बाद अब उत्तराखंड पशु विभाग भी अलर्ट मोड पर है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

लंपी त्वचा रोग की रोकथाम के लिए यूपी सरकार ने टीम-9 का गठन किया है. प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह ने लंपी रोग के प्रभावी नियंत्रण एवं बचाव के लिए युद्धस्तर पर काम करने के लिए टीम-09 को लगा दिया है. उन्होंने लंपी रोग से प्रभावित सात मण्डलों में 29 अगस्त से 3 सितंबर तक छह दिवसीय अभियान चलाकर जरूरी व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने के निर्देश दिए. लखनऊ में अब तक तीन हजार से ज्यादा पशु इस संक्रमण से बीमार हो चुके हैं. बुधवार को नागल में भी दो पशुओं की मौत हुई है. इस रोग से पशुओं के मरने और बीमारी के कारण पशुपालकों को काफी नुकसान हो रहा है. 


कैसे फैलता है यह रोग


लंपी वायरस पशुओं में फैलने वाला रोग है. यह रोग काटने वाली मक्खियों, मच्छरों एवं जूं के सीधे संपर्क में आने से पशुओं में फैलता है. ये दूषित पानी से भी फैल सकता है. लंपी संक्रमित पशु में कई बार दो से पांच सप्ताह तक इसके लक्षण नहीं दिखते हैं. फिर अचानक यह रोग पशुओं में नजर आने लगता है. इस रोग एक खास बात है कि यह रोग पशुओं से मनुष्यों में नहीं फैलता है. बता दें यह रोग पहली बार 1929 में जाम्बिया में सामने आया और फिर अफ्रीकी देशों में फैला.   


लंपी वायरस के लक्षण


इस संक्रमण के लक्षण की बात करें तो पशु के शरीर का तापमान 106 डिग्री फारेनहाइट होना, पशु को कम भूख लगना, पशु के चेहरे, गर्दन, थूथन, पलकों समेत पूरे शरीर में गोल उभरी हुई गांठें दिखना. फेफड़ों में संक्रमण के कारण निमोनिया हो जाता है. पैरों में सूजन, लंगड़ापन, नर पशु में काम करने की क्षमता कम हो जाती है. चिकित्सकों का अनुमान है कि इस रोग के फैलने की आशंका 20% है और मृत्यु दर 5% तक है. 


रोग के नियंत्रण के उपाय


लंपी स्किन रोग से प्रभावित पशुओं को अलग रखें. मक्खी, मच्छर, जूं आदि को मारें. इस बीमारी ग्रस्त पशु की मृत्यु होने पर शव को खुला न छोड़ें. उसको जमीन में दबा दें और पूरे क्षेत्र में कीटाणुनाशक दवाओं का छिड़काव करें. इस रोग से प्रभावित पशुओं में बकरी पॉक्स वैक्सीन का प्रयोग भी कर सकते हैं. प्रभावित पशु की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए मल्टी विटामिन जैसी दवाएं दी जाएं.