Mathura: वृंदावन में गज ग्राह लीला का हुआ मंचन, 13 दिवसीय झूलन उत्सव का हुआ समापन
Mathura: वृंदावन के रंगनाथ मंदिर में शुक्रवार को गज ग्राह लीला का मंचन किया गया. गरुण पर विराजमान भगवान रंगनाथ के जयकारे से मंदिर परिसर गूंज उठा. ऐसी मान्यता है कि सतयुग में एक बार जलाशय में स्नान कर रहे हाथी को मगरमच्छ ने पकड़ लिया. तब मगरमच्छ की पकड़ से भगवान ने हाथी को मुक्त कराया था...
मथुरा: कान्हा की नगरी में गज ग्राह लीला का हुआ आयोजन किया गया. वृंदावन के विशालतम श्री रंगनाथ मंदिर में शुक्रवार को गज ग्राह लीला का भव्य मंचन किया गया. गरुण पर विराजमान भगवान रंगनाथ की जय के जयकार से मंदिर परिसर गूंज उठा. बता दें कि श्रावण पूर्णिमा पर्व पर दक्षिणात्य शैली के प्रसिद्ध रंगनाथ मंदिर में, गज ग्राह लीला का मंचन किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि सतयुग में एक बार जलाशय में स्नान कर रहे गज यानी हाथी को जल के अंदर ग्राह यानी मगरमच्छ ने पकड़ लिया. मगरमच्छ ने उसे पानी के अंदर खींचना शुरु किया.
भगवान रंगनाथ की सवारी ऐसे गर्भगृह से निकली
आपको बता दें कि काफी प्रयास के बाद जब हाथी, मगरमच्छ की पकड़ से मुक्त नहीं हो पाया, तब उसने भगवान रंगनाथ को पुकारा. अपने भक्त की कातर ध्वनि सुनकर भगवान रंगनाथ गरुण पर सवार होकर वहां पहुंचे और सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध कर, उसे मोक्ष प्रदान किया. वहीं, मंदिर प्रबंधन भगवान द्वारा भक्त की रक्षा करने की इस लीला का हर साल मंचन किया जाता है.
मंदिर परिसर में गूंज उठा भगवान रंगनाथ का जयकारा
शुक्रवार को भी परंपरा के अनुसार सोने के बने गरुण वाहन पर विराजमान होकर सुदर्शन चक्रधारी भगवान रंगनाथ की सवारी गर्भगृह से निकली. यह सवारी पूर्वी द्वार से होते हुए पुष्करणी पर पहुंची. जहां गज एवम ग्राह के प्रतीक से लीला का मंचन हुआ. इसके बाद भगवान ने जैसे ही मगरमच्छ का वध किया गया, मंदिर परिसर रंगनाथ भगवान की जय जयकार से गूंज उठा.
13 दिवसीय झूलन उत्सव का हुआ समापन
आपको बता दें कि इसके बाद भगवान की सवारी दोबारा गर्भगृह के लिए रवाना हो गई. मंचन के बाद गर्भ गृह से भगवान रंगनाथ माता गोदा के साथ गरुड़ स्तंभ के समीप झूलन स्थल पर पहुंचे. जहां भगवान रंगनाथ चांदी के झूले में विराजमान हुए. इसके साथ ही हरियाली तीज से शुरू हुए 13 दिवसीय झूलन उत्सव का समापन हुआ. इस दौरान मंदिर के पुरोहित विजय मिश्र ने बताया कि श्री रंगनाथ मंदिर में उत्सव की परंपरा है. यहां हर दिन उत्सव होता है, इसीलिए इसे दिव्यदेश कहा जाता है. यहां गज ग्राह की लीला का दर्शन मंदिर की स्थापना के साथ से ही चला आ रहा है.
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