Muharram 2022: मोहर्रम के मौके पर जगह-जगह मातमी जुलूस निकाला गया. इस दौरान मुस्लिम समाज ने इमाम हुसैन को याद किया. उत्तराखंड के टिहरी के पास विकासनगर में सोगवारों ने खून को बहाने के बजाय दान करना बेहतर समझा. इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करने के इस तरीके की लोग सराहना कर रहे हैं.
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मुकेश भट्ट/टिहरी: मोहर्रम पर हज़रत मोहम्मद हुसैन और शोहदा-ए-कर्बला की याद में विकासनगर के अंबाडी में मातमी जुलूस निकाला गया, जिसमें सैकड़ों सोगवारों ने शिरकत की. अंबाड़ी बाजार से ताजिए के साथ शुरू हुआ मातमी जुलूस मस्जिद में पहुंचकर संपन्न हुआ. जुलूस की खास बात यह रही कि सोगवारों ने खून को बहाने के बजाय दान करना बेहतर समझा. इस दौरान बड़ी संख्या में सोगवारो के साथ मुस्लिम समुदाय के अन्य लोगों ने रक्तदान कर मातमी जुलूस में शिरकत की. मुस्लिम समुदाय की इस पहल का समाज के हर तबके ने स्वागत किया. मोहर्रम पर पिछले पांच सालों से बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय रक्तदान कर लोगों को जीवन दान देने का अलग ही संदेश समाज को दे रहे हैं, जिसकी हर तरफ सराहना हो रही है. मौलाना जाकिर अली ने कहा कि हुसैन ने हमें इंसानियत का पैगाम दिया है. रक्दान में कोई भेदभाव नहीं होता है. खून हर व्यक्ति का एक जैसा होता है. इसलिए हम सभी रक्तदान किया है.
इमाम हुसैन को श्रद्धांजली
अंजुमन हैदर बल्ती अंबाडी के अध्यक्ष ने कहा कि पिछले पांच साल से रक्तदान का यह कार्यक्रम में मोहर्रम के मौके पर आयोजित किया जाता है. इमाम हुसैन को इससे अच्छी श्रद्धांजली नहीं हो सकती. उनका कहना है कि समय के साथ सोच बदलनी होगी. उनको ने कहा कि किसी भी गरीब व्यक्ति को यदि रक्त की जरुरत पड़ती है तो हम पूरी कोशिश करेंगे कि उन्हें मिल सके.
मातम मनाने के पीछे की मान्यता
ऐसी मान्यता है कि मोहर्रम के महीने में ही पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों की हत्या कर दी गई थी. हजरत हुसैन और उनके 71 साथी इराक के शहर कर्बला में यजीद की सेना से इस्लाम पर अधिकार की जंग लड़ते हुए कुर्बान हो गये थे. ऐसी मान्यता है कि इस्लाम में सिर्फ एक ही खुदा की इबादत करने के लिए कहा गया है.शिया समुदाय मोहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार को याद करते हैं. इस मौके पर शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस के रूप में मातम मनाया जाता है.