सीतापुर: देश भर में आदि शक्ति देवी मां के कई मंदिर और तीर्थ स्थल हैं, जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैले हैं. आज हम आपको उन्हीं में से एक प्रमुख धाम के बारे में बताने जा रहे हैं. यह पवित्र तीर्थस्थल यूपी में सीतापुर के नैमिषारण्य तीर्थ स्थित कालीपीठ मंदिर में स्थापित है. खास बात यह है कि इस मंदिर में विराजमान मां धूमावती का दर्शन और पूजन नवरात्रि में केवल शनिवार के दिन ही किया जाता है. जी हां, बाकी दिन माता के दर्शन नहीं कर सकते. ऐसे में आज माता धूमावती के दर्शन करने के लिए पूरे दिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती रही. 


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कैसे पड़ा माता धूमावती नाम?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती को भूख लगी तो उन्होंने अपने पति महादेव से भोजन मांगा. लेकिन महादेव उस समय समाधि में लीन थे, तो उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई. इस पर माता ने गुस्से में महादेव को ही निगल लिया. चूंकि महादेव ने हलाहल विष का पान किया था, तो माता के शरीर से धुआं निकलने लगा. तभी से माता का नाम धूमावती पड़ गया. वहीं, पति को निगलने के कारण माता विधवा स्वरूप हो गईं.


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सुहागिनें नहीं छू सकती हैं माता की मूर्ति 
इस नवरात्रि में माता धूमावती के दर्शन का संयोग एक बार का ही है. बता दें कि नवरात्रि के शनिवार को ही माता धूमावती के पट खोले जाते हैं. तभी उनके दर्शन संभव हैं. ऐसे में आज सुबह से ही दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहा. किवदंती है कि सौभाग्यवती महिलाओं को माता का दर्शन मना है. हालांकि, मंदिर के पुजारी ने बताया कि ऐसा नहीं है. सुहागिनों को केवल माता की मूर्ति छूना मना है. बाकी पूजा का निषेध नहीं है. पुजारी ने कहा कि जो महाकाल भगवान शंकर को उदर में धारण कर सकती हैं. वह महिलाओं के सौभाग्य भक्षक काल को भी निगल कर चिर सौभाग्य का वरदान देती हैं. सौभाग्यवती महिलाओं के अलावा विधवा, विधुर, कन्याएं और बालक माता को स्पर्श भी कर सकते हैं. माता की यह मूर्ति रूप श्री नैमिषारण्य के कालीपीठ संस्थान में स्थित है.


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क्यों हर दिन नहीं कर सकते माता के दर्शन
मंदिर के पुजारी ने मां की महिमा का गुणगान करते हुए बताया कि दस महाविद्या उग्र देवी धूमावती देवी का स्वरूप विधवा का है. इनका वाहन कौवा है. माता सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं. खुले केश उनके रूप को और भी भयंकर बना देते हैं. यही वजह है कि मां धूमावती के प्रतिदिन दर्शन न करने की परंपरा है. 


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