Saifai News: मुलायम सिंह यादव का पैतृक गांव सैफई जहां कभी सितारों का मेला लगता था. अमिताभ बच्चन, विपाशा बसु, अभिषेक बच्चन, माधूरी दीक्षित, सलमान खान जैसे नामचीन कलाकार सैफई उत्सव में आकर समां बांधते थे, आज वहां सन्नाटा पसरा है. सैफई आज अपने माटी के लाल को अंतिम विदाई दे रहा है. डिग्री कॉलेज, छोटा हवाई अड्डा, हेलीपैड, स्विमिंग पूल, पॉलीटेक्निक जैसे तमाम सुविधाओं से लैस सैफई सुख-सुविधाओं में कई बड़े शहरों को भी मात देता है.


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सैफई गांव में हर तरफ बदहाली और बेबसी के साए मंडराते थे 
लेखक सुनील जोगी की किताब एक और लोहियाः मुलायम सिंह यादव के मुताबिक, मुलायम सिंह की मां मूर्ती देवी पुराने दिनों को याद करते हुए बताया था कि सैफई, कुछ झोपड़ियों और कच्चे मकानों का समूह था.यहां फैली दूर-दूर कर, ऊसर जमीन! गांव में मात्र एक कुंआ था और लोग बैलगाड़ी से इधर-उधर आते जाते थे.सैफई पास के शहरों से बिल्कुल कटा हुआ था. इसलिए यह विकास के मामले में पिछड़ गया था, लेकिन इस गांव मे रहने वाले धैर्यवान और शांत प्रकृति के थे.ग्रामीणों ने विषम परिस्थितियों के बावजूद कभी किसी जन प्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी से इसकी शिकायत नहीं की. मुलायम सिंह के पिता सुघर सिंह प्रगतिवादी विचारधारा के व्यक्ति थे. उनके प्रयास और लोगों के सहयोग के कारण बाद में गांव में कुछ प्रगति हुई. 


सैफई गांव में नहीं था एक हाईस्कूल 
सियासी गलियारों में नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव जन्म 21 नवंबर 1939 को यमुना नदी के किनारे स्थित इटावा जिले के सैफई गांव के एक यादव परिवार में हुआ था. उनके पिता सुघर सिंह किसान थे. बचपन से ही मुलायम विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. वे आस-पास रहने वाले अन्य बालकों से अलग हटकर थे. मुलायम सिंह यादव स्कूल के दिनों से ही समाज और गांव के विकास के बारे में सोचने लगे थे. सैफई गांव उस समय पिछड़ा था. शिक्षा की किरण उस समय तक सैफई गांव तक नहीं पहुंची थी; क्योंकि अधिकांश लोग गांव में ही खेती करते थे. उनके बच्चे बड़े होकर यही पेशा अपना लेते थे. 


मुख्यमंत्री बनते ही मुलायम ने बदली गांव की तस्वीर 
हाईस्कूल गांव में नहीं होने के कारण पैरेंट्स बच्चों को पढ़ाई के लिए गांव से बाहर नहीं भेजना चाहते थे. उस समय पूरे सैफई गांव में सिर्फ गांव के प्रधान महेंद्र सिंह ही शिक्षित थे. मुलायम सिंह यादव में भी पढ़ने लिखने की ललक थी.वे अपने पिता से पढ़ने की जिद करते थे, इसलिए उनकी जिद के आगे पिता को झुकना पड़ा. उन्होंने मुलायम सिंह की पढ़ाई में पूरा सहयोग किया. पढ़ाई पूरी कर मुलायम शिक्षक बने और उनके मन में एक बात हमेशा से रहती थी कि वह गांव को सबसे हाईटेक गांव बनाएंगे. ऐसा समय भी आया, जब सैफई की विकास की चर्चा पूरे प्रदेश में होने लगी. यह समय आया 1989 में जब मुलायम सिंह यादव  पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 


मुलायम सिंह यादव ने सैफई में सड़क, शिक्षा, बिजली ,पानी और स्वास्थ्य व्यवस्था पर विशेष रूप से ध्यान दिया. फिर सैफई का कायापलट होने की शुरुआत हुई. उन्होंने गांव में वर्ल्ड क्लास स्टेडियम से लेकर नाइट लैंडिंग सुविधा वाला एयरपोर्ट तक बना दिया. साथ ही एम्स की टक्कर का सुपरस्पेशिएलिटी से लैस मेडिकल कॉलेज बनवाया. साथ ही महानगरों की तरह गांव में चौड़ी-चौड़ी सड़कों का निर्माण कराया. 


सैफई महोत्सव से पूरे देश में गांव की बनी अलग पहचान
मुलायम सिंह यादव ने 1997 में सैफई महोत्सव की शुरुआत की थी. सैफई महोत्सव के दौरान गांव में बॉलीवुड के कलाकारों से लेकर देश के विख्यात कवियों की लाइन लग जाती थी. सैफई गांव में कवि सम्मेलन से लेकर बॉलीवुड नाइट तक जैसे कार्यक्रम होते थे. पहला सैफई महोत्सव तीन दिन का हुआ था, इसके बाद इसका स्वरूप बढ़ता रहा. समाजवादी पार्टी की सरकार में हर साल दिसंबर-जनवरी में होने वाले 15 दिन के सैफई महोत्सव में अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेलकूद के साथ ही फिल्मी तड़का भी लगता रहा. यहां फिल्मी दुनिया के बड़े से बड़े कलाकार आए और लोगों का मनोरंजन किया. 


लायन सफारी का हुआ निर्माण 
मुलायम सिंह यादव का सपना था कि अपने पैतृक जिले में एक लायन सफारी बनाया जाए. उनके इस सपने को उनके बेटे अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद पूरा किया. इटावा में करीब 350 हेक्टेयर में में कारोड़ों रुपये खर्च कर के लायन सफारी बनाया गया है. 


मुलायम सिंह जब साल 1996 में देश के रक्षा मंत्री बने तो इटावा-मैनपुरी रेलवे मार्ग का काम शुरू कराया. ग्रामीण आयुर्विज्ञान संस्थान के नाम से मेडिकल कालेज की नींव रखी थी और जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो यह कॉलेज मेडिकल यूनिवर्सिटी के रूप में विकसित और जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो यह कॉलेज मेडिकल यूनिवर्सिटी के रूप में विकसित हुआ.